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ICMR: अस्थमा-टीबी का इलाज होगा आसान, भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट की तैयार

परीक्षित निर्भय Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Wed, 30 Jul 2025 05:13 AM IST
सार

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस तकनीक को जल्द बाजार तक पहुंचाने के लिए भारत में ही उत्पादन कराने का फैसला किया है। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों से जांच किट बनाने के लिए आवेदन भी मांगा है।
 

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Indian scientists developed immunodiagnostic kit asthma and TB treatment become easier
अस्थमा (सांकेतिक) - फोटो : Freepik
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विस्तार
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भारत ने ऐसी स्वदेशी आधुनिक जांच तकनीक की खोज की है, जिससे अस्थमा और टीबी इलाज में बड़ा बदलाव आएगा। वैज्ञानिकों ने इस नई तकनीक से इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट तैयार किया, जो मरीज के खून में मौजूद एस्परगिलस फ्यूमिगेटस (फंगस) से जुड़े एंटीबॉडी को पहचानकर ब्रोंकियल अस्थमा और टीबी में सटीक डायग्नोसिस में मदद करेगी।

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस तकनीक को जल्द बाजार तक पहुंचाने के लिए भारत में ही उत्पादन कराने का फैसला किया है। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों से जांच किट बनाने के लिए आवेदन भी मांगा है। इस तकनीक को दिल्ली के अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान, वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट और राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड ट्यूबरकुलोसिस के डॉक्टरों ने मान्यता दी है। यहां ब्रोंकियल अस्थमा के 1307 और संदिग्ध टीबी के 254 मरीजों पर जांच के बाद इस तकनीक को असरदार पाया गया।
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अस्थमा से 3.7 करोड़ लोग पीड़ित
भारत में फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां खासतौर पर अस्थमा और टीबी तेजी से बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में करीब 30 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं जबकि टीबी हर साल 15 लाख लोगों की मौत का कारण है। भारत में अकेले अस्थमा के 3.7 करोड़ मामले हैं और टीबी अब भी एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है। इन दोनों बीमारियों से ग्रस्त मरीजों में एस्परगिलस फ्यूमिगेटस नामक फंगस और कठिनाइयां पैदा करती है और उनकी जान का जोखिम बढ़ाती हैं।

लागत सस्ती, छोटे शहरों में आसानी से पहुंचेगी
आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ ने इम्यूनोडायग्नोस्टिक किट विकसित की है। इस किट को सिंथेटिक पेप्टाइड आधारित तकनीक पर विकसित किया गया है। इसका बड़ा फायदा यह है कि यह उच्च संवेदनशीलता और सटीकता देती है। कम लागत वाली इस तकनीक को छोटे शहरों और जिला अस्पतालों तक आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है। लंबी शेल्फ लाइफ के कारण इसे स्टोर और ट्रांसपोर्ट करना आसान होगा।

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सार्वजनिक स्वास्थ्य में बड़ा लाभ
आईसीएमआर ने कहा है, इस किट के जरिये जल्दी डायग्नोसिस से मरीजों को सही समय पर इलाज मिल सकेगा, जिससे ब्रोन्किइक्टेसिस और अंतिम अवस्था की फेफड़ों की क्षति को रोका जा सकेगा। टीबी और अस्थमा के मामलों में फंगल संक्रमण को सही समय पर पहचानना मुश्किल होता है। वर्तमान में इस्तेमाल हो रहे टेस्ट जैसे इम्यूनो कैप, इम्यूलाइट 2000, प्लेटेलिया एस्परगिलस एलाइजा जांच में सटीकता के मामले में काफी अंतर पाया गया है। नई स्वदेशी तकनीक इस अंतर को दूर कर सकती है।

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