{"_id":"65dc2230420c0a530c034b07","slug":"amar-ujala-samvad-acharya-mithilesh-nandini-sharan-says-ramlala-has-incarnated-again-in-kalyug-2024-02-26","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"Amar Ujala Samvad: आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण बोले- कलयुग में रामलला ने फिर से अवतार लिया है, यह अर्चावतार है","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Amar Ujala Samvad: आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण बोले- कलयुग में रामलला ने फिर से अवतार लिया है, यह अर्चावतार है
अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 26 Feb 2024 11:02 AM IST
विज्ञापन

Acharya Mithilesh Nandini
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
अमर उजाला संवाद कार्यक्रम का पहला सत्र राम मंदिर से राष्ट्र मंदिर विषय पर केंद्रित रहा। इस सेशन में आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि हमारी कई पीढ़ियां बीत गईं, लेकिन उन्हें यह अवसर नहीं मिल पाया था। सरयू का एक नाम नेत्रजा है। वे भगवान के नेत्रों से प्रकट हुई हैं। परमात्मा की कृपालता ही सरयू के रूप में प्रवाहित हुई है। अयोध्या ने कई बार आंसू बहाए हैं। 22 जनवरी इकलौती तारीख नहीं है। रामलला के दर्शन कर और आंसू बहाकर अयोध्या ने खुद को धन्य कर दिया है।
आंसुओं ने इस अयोध्या को तीर्थ में परिवर्तित कर दिया है। ईश्वर रचना नहीं है। जगत रचना है। रचा जाता है, नष्ट हो जाता है। ईश्वर सार्वभौम सत्ता है, कभी व्यक्त, कभी अव्यक्त। त्रेता में भगवान ने दशरथनंदन के रूप में अवतार लिया था। कलयुग में रामलला ने फिर से अवतार लिया है और यह अर्चावतार है। यह मनोरथ अवतार है।
22 जनवरी के बाद निरंतर यात्राएं करनी पड़ रही हैं। देश श्रीराम से इस तरह जुड़ा हुआ है, यह पहले अनुभव नहीं हुआ। अभी राजस्थान गया था। वहां लोगों ने कहा कि रामलला अयोध्या में ही नहीं आए, हमारे यहां भी आए। राजा राम लौटकर जब अयोध्या आए और भरत ने जब राज्य उन्हें लौटाया तो कहा कि मां की जिद पर आपने राज्य लौटा दिया था।
अब अवसर है कि मैं आपको यह राज्य लौटा दूं। जब तक नक्षत्र मंडल विद्यमान रहें, तब तक आप इस लोक के शासक होकर विद्यमान रहें। भरत की प्रतिज्ञा कैसे व्यर्थ हो सकती थी। श्रीराम ने उस प्रतिज्ञा को चरितार्थ करने के लिए फिर से अवतार लिया है।

Trending Videos
आंसुओं ने इस अयोध्या को तीर्थ में परिवर्तित कर दिया है। ईश्वर रचना नहीं है। जगत रचना है। रचा जाता है, नष्ट हो जाता है। ईश्वर सार्वभौम सत्ता है, कभी व्यक्त, कभी अव्यक्त। त्रेता में भगवान ने दशरथनंदन के रूप में अवतार लिया था। कलयुग में रामलला ने फिर से अवतार लिया है और यह अर्चावतार है। यह मनोरथ अवतार है।
विज्ञापन
विज्ञापन
22 जनवरी के बाद निरंतर यात्राएं करनी पड़ रही हैं। देश श्रीराम से इस तरह जुड़ा हुआ है, यह पहले अनुभव नहीं हुआ। अभी राजस्थान गया था। वहां लोगों ने कहा कि रामलला अयोध्या में ही नहीं आए, हमारे यहां भी आए। राजा राम लौटकर जब अयोध्या आए और भरत ने जब राज्य उन्हें लौटाया तो कहा कि मां की जिद पर आपने राज्य लौटा दिया था।
अब अवसर है कि मैं आपको यह राज्य लौटा दूं। जब तक नक्षत्र मंडल विद्यमान रहें, तब तक आप इस लोक के शासक होकर विद्यमान रहें। भरत की प्रतिज्ञा कैसे व्यर्थ हो सकती थी। श्रीराम ने उस प्रतिज्ञा को चरितार्थ करने के लिए फिर से अवतार लिया है।
मंदिर से राष्ट्र निर्माण कैसे होगा?
मंदिर से राष्ट्र निर्माण कैसे होगा, इस सवाल पर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि केवल मंदिर बन रहा है, ऐसा नहीं कह सकते। राम वो चरित्र हैं, जिनके राज्याभिषेक में वानर, भालू सम्मानित किए जाते हैं। अभी तक मनुष्यता के लिए स्वप्न है कि दरबारियों के अलावा भी कोई दरबार में सम्मान पाएं।
मंदिर से राष्ट्र निर्माण कैसे होगा, इस सवाल पर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि केवल मंदिर बन रहा है, ऐसा नहीं कह सकते। राम वो चरित्र हैं, जिनके राज्याभिषेक में वानर, भालू सम्मानित किए जाते हैं। अभी तक मनुष्यता के लिए स्वप्न है कि दरबारियों के अलावा भी कोई दरबार में सम्मान पाएं।
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ निषाद को गले लगा लेते हैं। महर्षि वेदव्यास भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र लिख रहे थे, लेकिन राम के लिए कहते हैं कि वे साधुवाद की कसौटी हैं- साधुवाद निकषणाय। राम अकेला चरित्र है, जिसने अपनी महानताओं का चयन करते हुए, दिव्यताओं को प्राप्त करते हुए भी मनुष्यता नहीं छोड़ी।
महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि श्रीराम का अवतार राक्षसों को मारने के लिए नहीं हुआ है, मनुष्य को मनुष्यता सीखाने के लिए उनका अवतार हुआ है। राम जन्मभूमि में रामलला की प्रतिष्ठा किसी एक मंदिर में आराध्य देव की प्रतिष्ठा नहीं है, बल्कि मनुष्यता को प्रतिष्ठित करने के लिए है। 22 जनवरी अकेला और अनूठा कार्यक्रम था, जिसमें संपूर्ण देश इकट्ठा हुआ है।
वीआईपी केवल रामलला थे, बाकी सब सामान्य थे। मनुष्यता आपसे अपेक्षा करती है कि अपने दंभ के बाहर निकलिए। रामलला ने उसका अनुभव कराया। रामो विग्रहवान् धर्मः। प्रत्येक का वैसे जीवन में होना, जो उसके अस्तित्व को चरितार्थ करे, यह श्रीराम ने सिखाया। मनुष्यता में साधुता, सत्य और पराक्रम होना चाहिए।