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Amar Ujala Samvad: अरुण योगीराज को दीयों की रोशनी में मिला रामलला का चेहरा, पढ़ें मूर्ति से जुड़ी पूरी कहानी
अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 26 Feb 2024 11:35 AM IST
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सार
अरुण योगीराज ने कहा कि भगवान ने इस काम के लिए हमें चुना था। यह प्रक्रिया जून से शुरू हुई थी। तब से मुझे एक ही उत्तर देना था कि मूर्ति का निर्माण कैसे होगा। उस दिन जब प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसके बाद मैंने जनता के साथ रहने का फैसला किया। मेरे लिए यह जानना महत्वपूर्ण था कि देश के लोग मूर्ति को लेकर कैसा महसूस कर रहे हैं।

Arun Yogiraj
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
अमर उजाला संवाद की शुरुआत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण, रामलला के मूर्तिकार अरुण योगीराज और राज्य सभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद मूर्तिकार अरुण योगीराज से कुछ सवाल किए जिस पर उन्होंने दिल खोलकर अपनी बात रखी।
बालकराम के भाव उकेरना कितना कठिन था?
अरुण योगीराज ने कहा कि हमें कहा गया था कि पांच साल के लला की प्रतिमा का निर्माण करना है, लेकिन ये सिर्फ पांच वर्ष का बालक न हो, उसमें श्रीराम निहित हों। शिल्प शास्त्र भी विज्ञान है। हमारे पास कुछ माप होते हैं। बाल स्वरूप के साथ श्रीराम का गांभीर्य लाना था। मैंने बच्चों के साथ बहुत वक्त बिताया।
पहले दो महीने मुझे कुछ नहीं सूझा क्योंकि यह सवाल था कि लोग स्वीकार करेंगे या नहीं। मैंने दीपावली अयोध्या में मनाई। उस वक्त रात में मुझे अच्छा चेहरा मिल गया। माता-पिता बच्चों के साथ दीपावली मना रहे थे, तब दीपों की रोशनी में मुझे वह चेहरा मिल गया। दीपावली के दीयों के बीच रामलला के चेहरे को उकेरने की प्रेरणा मिली।
मूर्ति को आकार देकर कैसा लगा?
इससे पहले, अरुण योगीराज ने कहा कि भगवान ने इस काम के लिए हमें चुना था। यह प्रक्रिया जून से शुरू हुई थी। तब से मुझे एक ही उत्तर देना था कि मूर्ति का निर्माण कैसे होगा। उस दिन जब प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसके बाद मैंने जनता के साथ रहने का फैसला किया। मेरे लिए यह जानना महत्वपूर्ण था कि देश के लोग मूर्ति को लेकर कैसा महसूस कर रहे हैं। उस दिन देश की प्रतिक्रिया देखकर आज मैं कह सकता हूं कि मुझे अपने काम पर गर्व है।

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बालकराम के भाव उकेरना कितना कठिन था?
अरुण योगीराज ने कहा कि हमें कहा गया था कि पांच साल के लला की प्रतिमा का निर्माण करना है, लेकिन ये सिर्फ पांच वर्ष का बालक न हो, उसमें श्रीराम निहित हों। शिल्प शास्त्र भी विज्ञान है। हमारे पास कुछ माप होते हैं। बाल स्वरूप के साथ श्रीराम का गांभीर्य लाना था। मैंने बच्चों के साथ बहुत वक्त बिताया।
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पहले दो महीने मुझे कुछ नहीं सूझा क्योंकि यह सवाल था कि लोग स्वीकार करेंगे या नहीं। मैंने दीपावली अयोध्या में मनाई। उस वक्त रात में मुझे अच्छा चेहरा मिल गया। माता-पिता बच्चों के साथ दीपावली मना रहे थे, तब दीपों की रोशनी में मुझे वह चेहरा मिल गया। दीपावली के दीयों के बीच रामलला के चेहरे को उकेरने की प्रेरणा मिली।
मूर्ति को आकार देकर कैसा लगा?
इससे पहले, अरुण योगीराज ने कहा कि भगवान ने इस काम के लिए हमें चुना था। यह प्रक्रिया जून से शुरू हुई थी। तब से मुझे एक ही उत्तर देना था कि मूर्ति का निर्माण कैसे होगा। उस दिन जब प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसके बाद मैंने जनता के साथ रहने का फैसला किया। मेरे लिए यह जानना महत्वपूर्ण था कि देश के लोग मूर्ति को लेकर कैसा महसूस कर रहे हैं। उस दिन देश की प्रतिक्रिया देखकर आज मैं कह सकता हूं कि मुझे अपने काम पर गर्व है।
प्राण-प्रतिष्ठा के दिन कैसा अनुभव रहा?
अरुण योगीराज ने कहा कि हम लोग 500 साल से इस क्षण का इंतजार कर रहे थे। सभी की आंखों में आंसू थे। मेरी भी आंखों में आंसू थे। सपना पूरा हो रहा था। ऐतिहासिक पल था। भगवान की कृपा थी कि मूर्ति बनाने का काम मेरे हाथ से हुआ।
अरुण योगीराज ने कहा कि हम लोग 500 साल से इस क्षण का इंतजार कर रहे थे। सभी की आंखों में आंसू थे। मेरी भी आंखों में आंसू थे। सपना पूरा हो रहा था। ऐतिहासिक पल था। भगवान की कृपा थी कि मूर्ति बनाने का काम मेरे हाथ से हुआ।
राम की आंखें कैसे तराशी
बालक राम की वह आंखें कैसे तराशी इस सवाल के जवाब में योगीराज ने कहा कि मैंने पत्थर के साथ इतना समय बिताया कि मैं पत्थर से बात कर लेता हूं। नेत्र तराशने से पहले सरयू नदी में स्नान करके हनुमान गढ़ी में दर्शन करना है। मैंने बहुत सारी आंखे बनाई हैं लेकिन उस समय मैं ब्लैंक हो गया था। मैंने राम से ही निवेदन किया कि आप जैसी आंखें चाहते हैं वैसी आंखें बनवा लीजिए। मैं उन आंखों को देश के साथ कनेक्ट करना चाहता था। यह भगवान की कृपा है कि वह नेत्र सबको अच्छे लग रहे हैं।
पांच वर्ष के बालक के साथ राम भी चाहिए था
योगीराज अरुण ने कहा कि हमें पांच साल के बालक का रूप भी देना था और राम की गंभीरता भी लेकर आनी थी। इसके लिए मैंने बच्चों के साथ बहुत समय बिताया है। ताकि मैं समझ सकूं कि पांच साल का बच्चा आखिर होता कैसा है। यह पहली बार था कि मैं इसको लेकर नर्वस था। दीवाली की रात मैं अयोध्या में था। उसी रात मुझे दीपों की रोशनी में राम का चेहरा मिला।