{"_id":"5e68be9b8ebc3eeb2748bf79","slug":"know-about-ghanta-ghar-of-lucknow","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"रोचक है CAA के खिलाफ प्रदर्शन से चर्चा में आए लखनऊ के घंटाघर का इतिहास, गौरवशाली है अतीत","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
रोचक है CAA के खिलाफ प्रदर्शन से चर्चा में आए लखनऊ के घंटाघर का इतिहास, गौरवशाली है अतीत
न्यूज डेस्क/अमर उजाला, लखनऊ
Published by: ishwar ashish
Updated Wed, 11 Mar 2020 04:35 PM IST
विज्ञापन

- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
नवाबों के शहर लखनऊ में ऐसी तमाम इमारते हैं जो कि इस शहर को दुनिया भर में पहचान देती हैं पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लखनऊ के घंटाघर में प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने एक बार फिर ऐतिहासिक घंटाघर को चर्चा में ला दिया है। यहां पर सीएए के खिलाफ 50 दिन से अधिक महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं।

Trending Videos
घंटाघर प्रदर्शन के कारण हर रोज चर्चा में है। दरअसल, घंटाघर बहुत ही गौरवशाली अतीत खुद में समेटे है। एक वक्त था जब इसके बताए वक्त पर ही शहर चलता था। घड़ियाल की आवाज सुन कर लोग सतर्क हो जाते और अपने कामकाज तय करते। ये घंटाघर न सिर्फ समय बताने के लिए बल्कि अपनी वास्तुकला के सौंदर्य के लिए भी दुनिया भर में मशहूर था।
विज्ञापन
विज्ञापन
तमाम झंझावत झेलने के बाद आज भी यह इमारत लखनऊ की पहचान बनी हुई है। इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि नवाब नसीररुद्दीन हैदर ने इसके बनवाने की शुरुआत 1881 में की थी। इसका निर्माण 1887 में पूरा हुआ। इसका शानदार डिजाइन रस्केल पायने ने तैयार किया। घंटाघर भारत में विक्टोरियन गोथिक शैली का बेहतरीन उदाहरण है। इमामबाड़े के सामने मौजूद इस इमारत की ऊंचाई 221 फीट है।
'लेफ्टिनेंट गवर्नर जार्ज कूपर के स्वागत में घंटाघर 1887 में बनकर पूरा हुआ'
बिना सपोर्ट बनी इमारत
इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि अवध के पहले संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जार्ज कूपर के स्वागत में घंटाघर 1887 में बनकर पूरा हुआ था। उस जमाने में भी इसकी निर्माण लागत करीब 174 लाख रुपये आई थी। इसकी ऊंचाई 67 मीटर है। हैरतअंगेज बात ये है कि इतनी ऊंची इमारत को सहारा देने के लिए किसी खंभे का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
गन मेटल से बनी सुइयां
कहा जाता है कि घंटाघर में लगी घड़ी की सुइयां बंदूक की धातु से बनी है। सुइयां गन मेटल की बनी होने की वजह से भारतीय मौसम के अनुकूल है। बताते हैं कि कुछ लोग सर जॉर्ज ताजिर को समर्पित घंटाघर को विजय स्तंभ स्वरूप भी मानते हैं।
इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि अवध के पहले संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जार्ज कूपर के स्वागत में घंटाघर 1887 में बनकर पूरा हुआ था। उस जमाने में भी इसकी निर्माण लागत करीब 174 लाख रुपये आई थी। इसकी ऊंचाई 67 मीटर है। हैरतअंगेज बात ये है कि इतनी ऊंची इमारत को सहारा देने के लिए किसी खंभे का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
गन मेटल से बनी सुइयां
कहा जाता है कि घंटाघर में लगी घड़ी की सुइयां बंदूक की धातु से बनी है। सुइयां गन मेटल की बनी होने की वजह से भारतीय मौसम के अनुकूल है। बताते हैं कि कुछ लोग सर जॉर्ज ताजिर को समर्पित घंटाघर को विजय स्तंभ स्वरूप भी मानते हैं।
लंदन के लुईगेट हिल से लाई गई हैं सुइयां
लंदन की तर्ज पर हुआ निर्माण
योगेश प्रवीन बताते हैं कि घंटाघर का निर्माण लंदन के बिग बेन की तर्ज पर किया गया था। सुइयां लदंन के लुईगेट हिल से लाई गई हैं। वहीं, चौदह फीट लंबा और डेढ़ इंच मोटा पेंडुलम लंदन की वेस्टमिंस्टर क्लॉक की तुलना में काफी बड़ा है। इसमें घंटे के आसपास फूलों की पंखुड़ियों के आकार की बेल्स लगी हैं जो हर घंटे बजती हैं।
रात में भी दिखता था वक्त
घंटाघर में पांच घंटियां लगाई गई थीं। वो भी इस तरह से कि उनकी आवाज दूर तक सुनाई पड़े। हर घंटे, आधे घंटे, सवा और पौन घंटे का समय ये घंटियां बताती थीं। घंटाघर की बड़ी सुई 6 फीट लंबी और छोटी साढ़े चार फीट की है। रात के वक्त लोगों को सही वक्त बताने के लिए तांबे के 8 लैंप डायल के साथ लगे हैं। इन लैंपों के आगे पारदर्शी कांच लगा है और पीछे की ओर चांदी चढ़े परावर्तक लगे हैं। ये लैंप लोहे की घिर्रियों की मदद से उतारे और चढ़ाए जा सकते हैं।
योगेश प्रवीन बताते हैं कि घंटाघर का निर्माण लंदन के बिग बेन की तर्ज पर किया गया था। सुइयां लदंन के लुईगेट हिल से लाई गई हैं। वहीं, चौदह फीट लंबा और डेढ़ इंच मोटा पेंडुलम लंदन की वेस्टमिंस्टर क्लॉक की तुलना में काफी बड़ा है। इसमें घंटे के आसपास फूलों की पंखुड़ियों के आकार की बेल्स लगी हैं जो हर घंटे बजती हैं।
रात में भी दिखता था वक्त
घंटाघर में पांच घंटियां लगाई गई थीं। वो भी इस तरह से कि उनकी आवाज दूर तक सुनाई पड़े। हर घंटे, आधे घंटे, सवा और पौन घंटे का समय ये घंटियां बताती थीं। घंटाघर की बड़ी सुई 6 फीट लंबी और छोटी साढ़े चार फीट की है। रात के वक्त लोगों को सही वक्त बताने के लिए तांबे के 8 लैंप डायल के साथ लगे हैं। इन लैंपों के आगे पारदर्शी कांच लगा है और पीछे की ओर चांदी चढ़े परावर्तक लगे हैं। ये लैंप लोहे की घिर्रियों की मदद से उतारे और चढ़ाए जा सकते हैं।