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औने-पौने दामों में बिक रहा धान: समर्थन मूल्य 2369 रुपये, 1600 से 1800 में लिया जा रहा, बिचौलियों की चांदी
आशीष गुप्ता, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: ishwar ashish
Updated Thu, 30 Oct 2025 10:45 AM IST
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सार
लखनऊ में खरीद देरी से शुरू होने के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 2369 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जबकि छोटे व्यापारी किसानों से 1600 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर ही खरीद रहे हैं।
बख्शी का तालाब में किसानों से खरीद के बाद धान से लदा ट्रक।
- फोटो : amar ujala
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विस्तार
इस बार अच्छी बारिश के चलते धान की पैदावार तो भरपूर हुई, लेकिन किसानों को उसका उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। जिले में एक नवंबर से सरकारी खरीद शुरू होगी, पर उससे पहले ही किसानों का हजारों क्विंटल धान बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों में बिक चुका है।
खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के तहत जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हरदोई, लखीमपुर खीरी, सीतापुर जैसे जिलों में खरीद चल रही है, वहीं लखनऊ में खरीद देरी से शुरू होने के कारण किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 2369 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जबकि छोटे व्यापारी किसानों से 1600 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर ही खरीद रहे हैं।
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मंडी सूनी, बिचौलियों की चांदी: लखनऊ मंडी में आवक कम होने से आसपास के बाजारों खासकर बख्शी का तालाब (बीकेटी) में हर दिन सैकड़ों क्विंटल धान बिक रहा है। पिछले एक महीने में केवल बीकेटी क्षेत्र से ही करीब 3000 क्विंटल धान बिक चुका है। बड़े ट्रकों में भरकर यह धान बाहर के जिलों और राज्यों तक जा रहा है।
किसानों की मजबूरी: भौली गांव के किसान धीरेंद्र प्रताप सिंह और देवरी रुखारा के मकरंद सिंह यादव बताते हैं कि सरकारी खरीद शुरू न होने से मजबूरी में कम दामों पर बेचना पड़ रहा है। ऊपर से सत्यापन की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि कई किसान उससे बचना ही बेहतर समझते हैं। कृषि विशेषज्ञ सत्येंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि रबी फसलों की बुवाई के लिए किसानों को खाद, बीज और कीटनाशक के पैसे चाहिए। सरकारी खरीद में देरी और जागरूकता की कमी से किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।
मिलर्स को भी पड़ रहा भारी: डालीगंज के राइस मिलर घनश्याम अग्रवाल और चिनहट के राजेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकारी खरीद कम होने से सालभर पर्याप्त धान नहीं मिल पाता। पहले लेवी सिस्टम से संतुलन बना रहता था। अब सरकार अगर नीति न बदले तो कम से कम खरीद जल्द शुरू हो और देर तक चले। इससे खरीद बढ़ेगी और हम लोगों को कुटाई के लिए धान मिल सकेगा। खरीद कम होगी तो कम धान मिलेगा। ऐसे में मिल ही नहीं चल पाएगी। हर महीने 4-5 लाख रुपये का खर्चा है।
प्रशासन की सफाई: धान खरीद की नोडल अधिकारी व एडीएम (नागरिक आपूर्ति) ज्योति गौतम ने बताया कि इस बार जिले के राइस मिलर्स को प्राथमिकता दी जाएगी। एक नवंबर से 30 केंद्रों पर खरीद शुरू होगी ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके।