UP: हीरा बनाने वाली मशीनें बाजार में, 90 प्रतिशत गिरे कृत्रिम हीरे के भाव... 150 साल में बनता है असली हीरा
लैब में तैयार होने वाला हीरा देखने और गुण में बिल्कुल असली जैसा होता है। वहीं, मशीन से बनने वाले हीरे 7 से 15 दिन में तैयार हो जाते हैं।
विस्तार
लैब में तैयार होने वाले कृत्रिम हीरों से सराफा बाजार पटा पड़ा है। ये इतने वास्तविक हैं कि असली और नकली में भेद कर पाना बेहद मुश्किल है। आईआईटी द्वारा तैयार 5 हजार रियेक्टर सूरत सहित उत्तर प्रदेश के कई शहरों में दिनरात नकली हीरे बना रहे हैं। हाल ये हो गया कि महज चार साल में एक कैरेट कृत्रिम हीरे के दाम 4 लाख से गिरकर 25 हजार पर आ गए। वहीं असली हीरों का बाजार फिर दमक उठा है। जिसका नतीजा है आठ महीने में 15 फीसदी का मुनाफा असली हीरों ने दिया है। असली-नकली हीरों की पड़ताल करती रिपोर्ट......
- एक तरफ सोना-चांदी रोजाना कीमतों के नए रिकार्ड गढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ हीरे की मंद होती चमक भी लौट रही है। पिछले साल हीरा बाजार के लिए बेहद उतार चढ़ाव भरे रहे। वर्ष 2018 में पहली बार लैब में तैयार किया गया हीरा दुनिया के सामने आया। वर्ष 2020 में एक कैरेट के कृत्रिम और एक कैरेट के असली हीरे के दाम 4 लाख रुपये थे।
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- बीच में यही असली हीरा गिरकर 3 लाख से 3.25 लाख पर आ गया लेकिन 4 लाख वाला नकली हीरा 25 हजार रुपये में आ गिरा। अगले एक साल में ये 15 से 20 हजार रुपये में आने के आसार हैं। असली हीरे से बढ़ते प्रेम का नतीजा है कि कुल बाजार में 20 फीसदी हिस्सेदारी डायमंड ज्वैलरी की है।
क्यों बेहाल हो गया लैब वाला हीरा
करीब दो साल पहले वित्त मंत्रालय ने आईआईटी चेन्नई को लैब में हीरे तैयार वाले रियेक्टर का प्रोजेक्ट दिया था। फिर आईआईटी कानपुर, आईआईटी बाम्बे सहित अन्य आईआईटी में भी इसे बनाने की होड़ मची। उनकी तकनीक से पहले बेहद महंगा रियेक्टर अब दो करोड़ का बिक रहा है। 50 लाख निवेश कर शेष रकम लोन लेकर सूरत में हजारों मशीनें लगी हैं।
यूपी, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी ये मशीने धड़ल्ले से लग रही हैं। अब डिमांड से ज्यादा सप्लाई हो गई। पिछले महीने हांगकांग में आयोजित दुनिया के सबसे बड़े ज्वैलरी शो में सोने की ज्वैलरी के साथ लैब वाला नकली हीरा फ्री में देने की घोषणा ने इस बाजार की हालत और पस्त कर दी। अब तो हीरों की सर्टिफाई करने वाले अंतर्राष्ट्रीय रत्न संस्थान (जीआईए) ने फोर सी ग्रेडिंग को लैब ग्रोन डायमंड यानी कृत्रिम डायमंड को सर्टिफाई करना बंद कर दिया है। हीरों का प्रमाणीकरण न होने की वजह से इनकी कीमतों में इतनी गिरावट आई है।
असली हीरा कैसे बनता है
प्राकृतिक हीरा धरती के गर्भ में 150 किलोमीटर नीचे बेहद उच्च तापमान में 10 लाख साल में तैयार होता है। भूकंप व ज्वालामुखी फटने से मैग्मा के साथ ऊपर आता है। इसे दस किलोमीटर नीचे खदान से निकाला जाता है। इन कच्चे हीरों को बाहर निकालकर तराशा जाता है। कटिंग व पालिश के बाद ये अलग-अलग रूप में तैयार होते हैं।
नकली हीरा कैसे बनता है
ये हीरे लैब में तैयार होते हैं इसीलिए इन्हें शार्ट में एलजीडी भी कहा जाता है। ये दो तरीके से लैब में बनते हैं। पहला हाई प्रेशर हाई टेम्पेरचर (एचपीएचटी) और दूसरा केमिकल वेपर डिस्पोजिशन (सीबीडी)। ये डायमंड का रियेक्टर होता है, जिसमें इसे तैयार किया जाता है। इन रिपेक्टरों से एक हीरा 7-15 दिन में ही बन जाता है।
असली के नाम पर नकली न खरीद लें
असली और नकली हीरे में पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है। असली के नाम पर नकली हीरा कोई न थमा दे, इससे बचने के लिए सर्टिफिकेट जरूर लें, जिसमें नेचुरल डायमंड साफ लिखा हो। भरोसेमंद और साख वाले ज्वैलर्स से ही खरीदें जिसके पास हीरे की पहचान करने वाला हाईटेक माइक्रोस्कोप हो।
हीरा प्यार, समर्पण और रिश्तों का प्रतिबिंब
जेमोलाजिकल इंस्टीट्यूट के सर्टिफाइड जेमोलाजिस्ट श्रेयांस कपूर का कहना है कि असली हीरा दस लाख साल में प्रकृति तैयार करती है जबकि लैब में ये 15-20 दिन में तैयार हो जाता है। हीरा प्यार, समर्पण और रिश्तों का प्रतिबिंब माना जाता है। यही वजह है कि लैब में तैयार होने वाले नकली हीरों की कीमत महज चार वर्ष में 90 फीसदी तक गिर गई है। आने वाले एक साल में इसमें और गिरावट आएगी। वहीं प्राकृतिक हीरे की मांग दोबारा तेज होने से इसने 10 से 15 फीसदी तक रिटर्न दिया है।