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यूपी: 456 निजी आईटीआई संस्थानों के कई पाठ्यक्रम होंगे बंद, इलेक्ट्रीशियन, फिटर आदि में नहीं हो रहे प्रवेश

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: ishwar ashish Updated Thu, 03 Jul 2025 09:47 AM IST
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सार

प्रदेश के जिलों में संचालित निजी आईटीआई की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। 456 निजी आईटीआई में बीते तीन वर्षों में कुछ पाठ्यक्रमों में एक भी दाखिला नहीं हुआ है।

UP: Many courses of 456 private ITI institutes will be closed
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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उत्तर प्रदेश के निजी प्रौद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में चल रहे इलेक्ट्रीशियन, फिटर व वेल्डर जैसे प्रमुख पाठ्यक्रमों में भी विद्यार्थी दाखिला नहीं लेना चाहते हैं। प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) की जांच में खुलासा हुआ है कि प्रदेश में 456 निजी आईटीआई में बीते तीन वर्षों में कुछ पाठ्यक्रमों में एक भी दाखिला नहीं हुआ है। ऐसे में अब इन संस्थानों में संचालित कोर्स की मान्यता खत्म करने के साथ इस सत्र में इन कोर्सेस में प्रवेश पर रोक लगेगी।
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लखनऊ मंडल सहित वाराणसी, आजमगढ़, आगरा, कानपुर, गाजियाबाद व अन्य जिलों में संचालित निजी आईटीआई की स्थिति बेहद खराब है। यहां बच्चों के लिए मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थियों के लिए बेहतर वर्कशॉप नहीं है। यही वजह है कि यहां लंबे समय से प्रवेश की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है।
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डीजीटी के उप महानिदेशक ईश्वर सिंह के अनुसार, निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में सत्र 2022 से 2024 तक शून्य प्रवेश थे। अधिकारियों के निरीक्षण में परिसर की स्थिति भी सही नहीं पाई गई। निरीक्षण रिपोर्टों के आधार पर सत्र 2025-26 में प्रवेश नहीं होंगे। 

इन पाठ्यक्रमों में नहीं हुए प्रवेश
निजी आईटीआई में संचालित इलेक्ट्रीशियन, इलेक्ट्रॉनिक्स, फीटर, वेल्डर, कंप्यूटर ऑपरेटर और प्रोग्रामिंग असिस्टेंट (कोपा), स्विंग टेक्नोलॉजी, ब्यूटीशियन व अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं हुए हैं। डीजीटी के अनुसार, इन पाठ्यक्रमों में 30 से 34 सीटों पर प्रवेश की क्षमता थी, लेकिन बीते तीन वर्षों में एक भी प्रवेश नहीं हुआ।

प्रवेश न होने की यह रही वजह
राजकीय आईटीआई की अपेक्षा निजी आईटीआई में प्रवेश फीस अधिक है। पाठ्यक्रम के अनुसार, प्रयोगशाला व प्रशिक्षण कार्य के लिए जरूरी उपकरण नहीं हैं। जिन आईटीआई में कोर्स बंद हो रहे हैं उनमें ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हैं। संस्थानों की ओर से लंबे प्रयास के बावजूद प्रवेश में स्थिति नहीं सुधरी।
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