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कफ सिरप का कहर: दो साल की योजिता 22 दिन तक लड़ती रही जिंदगी से जंग, किडनी फेल होने से मौत; सदमें में परिवार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, छिंदवाड़ा
Published by: तरुणेंद्र चतुर्वेदी
Updated Tue, 07 Oct 2025 05:58 PM IST
सार
MP Cough Syrup Death News : जहरीली कोल्ड्रिफ कफ सिरप ने मध्य प्रदेश को जो गहरे जख्म दिए हैं। छिंदवाड़ा की एक दो साल की मासूम बच्ची 22 दिन तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ती रही
। अंत में हार गई।
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सुशांत ठाकरे एक चित्र में अपनी बेटी योजिता के साथ ।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
'पापा घर ले चलो...'यही आखिरी शब्द थे दो साल की योजिता ठाकरे के। यह कहते-कहते उसकी सांसें थम गईं। योजिता बीमार पड़ी, इलाज शुरू हुआ, फिर अचानक उसकी किडनी फेल हो गई। परिजनों ने 22 दिन तक नागपुर में इलाज करवाया, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद 4 अक्टूबर को वह जिंदगी की जंग हार गई।
13 लाख रुपए खर्च, 16 बार डायलिसिस... फिर भी न बची जान
छिंदवाड़ा के सुशांत ठाकरे, जो एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं, इन्होंने अपनी बेटी को बचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। परिवार ने करीब 13 लाख रुपए इलाज पर खर्च किए। दोस्तों, रिश्तेदारों और एनजीओ से मदद ली, सोशल मीडिया पर क्राउडफंडिंग की। नागपुर के नेल्सन हॉस्पिटल में योजिता को भर्ती कराया गया, जहां 16 बार डायलिसिस किया गया। हर गुजरते दिन के साथ पिता की उम्मीदें और अस्पताल का बिल दोनों बढ़ते गए। लेकिन बेटी नहीं बच सकी।
बड़ा सवाल?
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि परिजनों को इस बात का अहसास तक भी नहीं था कि सिरप में जहर है। जहरीली सिरप पीने की वजह से बच्चों की तबीयत बिगड़ रही है। जब मीडिया में खबरें आईं तब पता चला कि बच्चों को दी जाने वाली खांसी की कफ सिरप जहरीली है। इसके बाद तमाम सरकारी अमला हरकत में आया। तब-तक काफी देर हो चुकी थी।
पहले स्थानीय डॉक्टर ने दी दवा, फिर रेफर किया नागपुर
योजिता को 8 सितंबर की शाम बुखार आया था। पिता उसे लेकर पहले डॉ. ठाकुर के पास पहुंचे, पर वे क्लिनिक पर नहीं थे। मजबूर होकर डॉ. प्रवीण सोनी से इलाज कराया। उन्होंने दवाइयां दीं और घर भेज दिया। अगली सुबह बच्ची की तबीयत बिगड़ गई, उल्टियां शुरू हो गईं। जब दोबारा डॉक्टर के पास ले गए तो उन्होंने बताया कि किडनी में इंफेक्शन है और छिंदवाड़ा में इलाज संभव नहीं, इसलिए नागपुर रेफर कर दिया।
परिवार ने तोड़ी एफडी, एनजीओ और स्कूल के शिक्षकों ने की मदद
सुशांत के बड़े भाई ने अपनी एफडी तोड़ दी, बहनों और ससुराल पक्ष ने भी मदद की। मुंबई के एक एनजीओ ने एक लाख रुपए दिए।साथ ही स्कूल के साथी शिक्षक और मोहल्ले के लोग भी आगे आए। लेकिन तमाम कोशिशों और 22 दिन के इलाज के बाद भी 4 अक्टूबर को योजिता ने दम तोड़ दिया।
ये भी पढ़ें- Deadly Cough Syrup: छिंदवाड़ा में दो और मौत, लगातार बढ़ रहा आंकड़ा, अब धानी और जेयूशा ने तोड़ा दम
प्रशासन ने दी 4 लाख की मदद, पिता बोले, "मेरी बेटी वापस नहीं आएगी"
प्रशासन ने 4 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन पिता सुशांत ठाकरे कहते हैं, ये पैसे मेरी बेटी की जिंदगी से कहीं ज्यादा कीमती नहीं। मैं चाहता हूं कि ऐसी गलती दोबारा किसी मासूम के साथ न हो। दोषी डॉक्टर और दवा कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
जिले में बढ़ रहा किडनी फेलियर का खतरा
छिंदवाड़ा में बीते दिनों कई बच्चों की किडनी फेल होने से मौत के मामले सामने आए हैं। योजिता का मामला भी उसी श्रृंखला से जुड़ा बताया जा रहा है। प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा गया है।
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13 लाख रुपए खर्च, 16 बार डायलिसिस... फिर भी न बची जान
छिंदवाड़ा के सुशांत ठाकरे, जो एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं, इन्होंने अपनी बेटी को बचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। परिवार ने करीब 13 लाख रुपए इलाज पर खर्च किए। दोस्तों, रिश्तेदारों और एनजीओ से मदद ली, सोशल मीडिया पर क्राउडफंडिंग की। नागपुर के नेल्सन हॉस्पिटल में योजिता को भर्ती कराया गया, जहां 16 बार डायलिसिस किया गया। हर गुजरते दिन के साथ पिता की उम्मीदें और अस्पताल का बिल दोनों बढ़ते गए। लेकिन बेटी नहीं बच सकी।
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बड़ा सवाल?
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि परिजनों को इस बात का अहसास तक भी नहीं था कि सिरप में जहर है। जहरीली सिरप पीने की वजह से बच्चों की तबीयत बिगड़ रही है। जब मीडिया में खबरें आईं तब पता चला कि बच्चों को दी जाने वाली खांसी की कफ सिरप जहरीली है। इसके बाद तमाम सरकारी अमला हरकत में आया। तब-तक काफी देर हो चुकी थी।
पहले स्थानीय डॉक्टर ने दी दवा, फिर रेफर किया नागपुर
योजिता को 8 सितंबर की शाम बुखार आया था। पिता उसे लेकर पहले डॉ. ठाकुर के पास पहुंचे, पर वे क्लिनिक पर नहीं थे। मजबूर होकर डॉ. प्रवीण सोनी से इलाज कराया। उन्होंने दवाइयां दीं और घर भेज दिया। अगली सुबह बच्ची की तबीयत बिगड़ गई, उल्टियां शुरू हो गईं। जब दोबारा डॉक्टर के पास ले गए तो उन्होंने बताया कि किडनी में इंफेक्शन है और छिंदवाड़ा में इलाज संभव नहीं, इसलिए नागपुर रेफर कर दिया।
परिवार ने तोड़ी एफडी, एनजीओ और स्कूल के शिक्षकों ने की मदद
सुशांत के बड़े भाई ने अपनी एफडी तोड़ दी, बहनों और ससुराल पक्ष ने भी मदद की। मुंबई के एक एनजीओ ने एक लाख रुपए दिए।साथ ही स्कूल के साथी शिक्षक और मोहल्ले के लोग भी आगे आए। लेकिन तमाम कोशिशों और 22 दिन के इलाज के बाद भी 4 अक्टूबर को योजिता ने दम तोड़ दिया।
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प्रशासन ने दी 4 लाख की मदद, पिता बोले, "मेरी बेटी वापस नहीं आएगी"
प्रशासन ने 4 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन पिता सुशांत ठाकरे कहते हैं, ये पैसे मेरी बेटी की जिंदगी से कहीं ज्यादा कीमती नहीं। मैं चाहता हूं कि ऐसी गलती दोबारा किसी मासूम के साथ न हो। दोषी डॉक्टर और दवा कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
जिले में बढ़ रहा किडनी फेलियर का खतरा
छिंदवाड़ा में बीते दिनों कई बच्चों की किडनी फेल होने से मौत के मामले सामने आए हैं। योजिता का मामला भी उसी श्रृंखला से जुड़ा बताया जा रहा है। प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा गया है।

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