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Pollution: कभी स्मॉग की चादर में ढका रहता था चीन, टेक्नोलॉजी के दम पर जीती प्रदूषण से जंग, जानें पूरी कहानी
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Sun, 21 Dec 2025 11:48 AM IST
सार
How China Cope Pollution With Technology: आज उत्तर भारत जिस जहरीली धुंध से परेशान है, कभी चीन भी उसी दौर से गुजर रहा था। लेकिन तकनीक और कड़े फैसलों ने वहां की हवा बदल दी। जानिए कैसे चीन ने इलेक्ट्रिक वाहनों, एआई और स्मार्ट मॉनिटरिंग के जरिए प्रदूषण को मात दी।
आज दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई शहर जिस दमघोंटू हवा से जूझ रहे हैं, करीब एक दशक पहले चीन के हालात भी कुछ ऐसे ही थे। वहां के शहरों में भी स्मॉग की चादर बिछी रहती थी और लोगों को सांस लेने में भारी दिक्कत होती थी। लेकिन चीन ने हार नहीं मानी और तकनीक के सही तालमेल से अपनी आबोहवा को पूरी तरह बदल दिया। आज चीन के कई शहरों में वायु गुणवत्ता में जो सुधार आया है, वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया है। आइए जानते हैं चीन ने तकनीक की मदद से कैसे प्रदूषण को मात दी और शहरों की हवा को सांस लेने लायक बनाया।
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Delhi Pollution
- फोटो : अमर उजाला
बीजिंग ओलंपिक और बदलाव की शुरुआत
चीन में प्रदूषण की यह समस्या 1978 के आर्थिक उदारीकरण के बाद शुरू हुई, जब वहां फैक्ट्रियों, बिजली घरों और गाड़ियों की तादाद अचानक बढ़ गई। कोयले पर निर्भरता और खेतों में जलती पराली ने हवा को जहरीला बना दिया था। इस समस्या ने पूरी दुनिया का ध्यान तब खींचा जब 2008 में बीजिंग ओलंपिक हुए। अंतरराष्ट्रीय दबाव और देश के भीतर बढ़ते गुस्से को देखते हुए चीन सरकार ने समझ लिया कि अब हाथ पर हाथ धरे बैठने का समय निकल चुका है।
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वायु प्रदूषण
- फोटो : Adobe Stock
परिवहन और ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव
चीन ने अपनी हवा सुधारने के लिए सबसे पहले उन रास्तों को चुना जो सबसे ज्यादा धुआं उगल रहे थे। सरकार ने कोयले के इस्तेमाल को धीरे-धीरे कम करना शुरू किया और इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण शेन्जेन शहर है, जिसने अपनी हजारों बसों के पूरे बेड़े को रातों-रात इलेक्ट्रिक में बदल दिया। इन फैसलों ने न केवल सड़कों से धुआं कम किया, बल्कि शहरों में शोर और प्रदूषण के स्तर को भी काफी हद तक नीचे गिरा दिया।
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वायु प्रदूषण
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टेक्नोलॉजी बना बदलाव का सबसे मजबूत स्तंभ
चीन की इस लड़ाई में आधुनिक तकनीक सबसे बड़ा हथियार साबित हुई। पूरे देश में हजारों की संख्या में एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए गए, जो चौबीसों घंटे हवा की शुद्धता पर नजर रखते हैं। प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों की सही पहचान के लिए सैटेलाइट और हाई-टेक ड्रोन्स का सहारा लिया गया। इतना ही नहीं, चीन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और बिग डेटा का इस्तेमाल करके एक ऐसा सिस्टम बनाया जो पहले ही बता देता है कि मौसम की स्थिति के हिसाब से प्रदूषण कब और कहां बढ़ सकता है। इससे प्रशासन को संकट आने से पहले ही तैयारी करने का मौका मिल जाता है।
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वायु प्रदूषण
- फोटो : Adobe Stock
पारदर्शिता और नियमों की सख्ती
सिर्फ तकनीक का इस्तेमाल ही काफी नहीं था, इसलिए चीन ने इसे आम जनता और उद्योगों की जवाबदेही से भी जोड़ा। फैक्ट्रियों में स्मार्ट सेंसर लगाए गए, जो प्रदूषण का स्तर तय सीमा से ऊपर जाते ही सीधे अधिकारियों को अलर्ट भेज देते थे। इससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म हो गई और नियम सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहे। साथ ही, आम लोगों के लिए मोबाइल एप बनाए गए ताकि वे अपने इलाके की हवा का हाल रियल-टाइम में देख सकें। इस पूरी पारदर्शिता ने सिस्टम को और भी ज्यादा मजबूत बना दिया।
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