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गजब है: 38 साल की महिला ने दिया दसवें बच्चे को जन्म, पति बोला अब करा लेंगे ऑपरेशन, पहले बेटे की उम्र 17 साल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दमोह
Published by: दमोह ब्यूरो
Updated Fri, 12 Dec 2025 08:22 PM IST
सार
दमोह के रनेह गांव की 38 वर्षीय कुसुम आदिवासी ने दसवें बच्चे को जन्म दिया। नौ प्रसव घर पर हुए थे, लेकिन हाई-रिस्क गर्भ होने से आशा कार्यकर्ताओं की समझाइश पर पीएचसी में सुरक्षित डिलीवरी कराई गई। जच्चा-बच्चा स्वस्थ हैं। पति ने अब ऑपरेशन कराने की बात कही है।
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दमोह में महिला ने दसवें बच्चे को दिया जन्म
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
दमोह के हटा ब्लॉक में आने वाले रनेह गांव निवासी कुसुम आदिवासी ने दसवें बच्चे को जन्म दिया है। जच्चा, बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। यह बात सुनने में अजीब जरूर लगे, लेकिन यह सच है। महिला के बड़े बेटे की उम्र 17 साल है। अब पति ने ऑपरेशन कराने की बात कही है। सबसे बड़ी बात यह है महिला के 9 बच्चों की डिलेवरी घर में हुई थी और दसवें बच्चे में रिस्क था। इसलिए आशा कार्यकर्ता की समझाइश पर महिला के डिलीवरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कराई गई है।
बता दें कि महिला कुसुम आदिवासी की उम्र 38 साल है, जबकि पति नंदराम की उम्र 43 साल और वह मजदूरी करते हैं। उनका विवाह करीब 18 साल पहले कुसुम आदिवासी के साथ हुआ था। नंदराम ने बताया कि उनकी पत्नी कुसुम को गुरुवार को प्रसव पीड़ा हुई थी. जिसके बाद उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रनेह में भर्ती कराया गया। वहां पर उसने दसवीं संतान के रूप में एक बेटे को जन्म दिया है। उनका एक 17 साल का बेटा है तथा 10 संतानों में तीन बेटे और सात बेटियां हैं। जब उनसे पूछा गया कि ऑपरेशन क्यों नहीं कराया तो उन्होंने कहा कि अब वह ऑपरेशन करा लेंगे। लगातार इतनी संतानें कैसे हो गईं, तो उनका जवाब था कि संतानें होती गईं, लेकिन अब नहीं होंगी अब ऑपरेशन करा लेंगे।
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नॉर्मल डिलीवरी हुई
महिला का प्रसव कराने वाली नर्स देवकी कुर्मी ने बताया कि महिला हाई रिस्क जोन में थी। उसे गुरुवार को यहां पर भर्ती कराया गया था। जहां उसकी नॉर्मल डिलीवरी हो गई। मां और बच्चा दोनों पूरी तरह से सुरक्षित और स्वस्थ हैं। प्रसूता को आशा कार्यकर्ता लेकर यहां पर आई थी। बच्चे का वजन 3.5 किलोग्राम है और वह बिल्कुल स्वस्थ है।
खून की थी कमी
कुसुम का दसवां गर्भ जोखिमों से भरा था। रक्त की कमी, घर पर प्रसव की आदत और ग्रामीण परंपराओं के कारण अस्पताल पहुंचना उसके लिए आसान नहीं था, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन ने हार नहीं मानी। एएनएम कुंती चौरसिया, आशा सुपरइवाजर और आशा कार्यकर्ता राजबाई लोधी लगातार नौ माह तक कुसुम के घर जाती रहीं। उसे प्रसव से जुड़े खतरे समझाए। जांच कराई, पोषण की सलाह दी और उसे विश्वास दिलाया कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्र उसके और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित है।
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पहले 9 बच्चे घर पर हुए
कुसुम आदिवासी का कहना है यदि आशा दीदी लोग समझाने न आतीं, तो शायद मैं फिर घर पर ही प्रसव कर लेती। जिससे मुझे व मेरे बच्चे को खतरा हो सकता था, लेकिन आज अस्पताल आने का फायदा समझ में आ गया। इसके पहले उसने अपने सभी बच्चों को घर पर ही जन्म दिया। उन्होंने सुरक्षित नॉर्मल प्रसव कराने पर सभी का आभार व्यक्त किया। आशा सुपरवाइजर कुंती चौरसिया का कहना है कि महिला कुसुम अस्पताल में प्रसव के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। उसका दसवां गर्भ जोखिमभरा था वह अस्पताल आने के लिए तैयार नहीं थी। हम लोगों ने लगातार उसे समझाइश दी गई। जिसके बाद वह अस्पताल आने के लिए तैयार हुई। रनेह पीएचसी में उसका सुरक्षित प्रसव हुआ।
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बता दें कि महिला कुसुम आदिवासी की उम्र 38 साल है, जबकि पति नंदराम की उम्र 43 साल और वह मजदूरी करते हैं। उनका विवाह करीब 18 साल पहले कुसुम आदिवासी के साथ हुआ था। नंदराम ने बताया कि उनकी पत्नी कुसुम को गुरुवार को प्रसव पीड़ा हुई थी. जिसके बाद उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रनेह में भर्ती कराया गया। वहां पर उसने दसवीं संतान के रूप में एक बेटे को जन्म दिया है। उनका एक 17 साल का बेटा है तथा 10 संतानों में तीन बेटे और सात बेटियां हैं। जब उनसे पूछा गया कि ऑपरेशन क्यों नहीं कराया तो उन्होंने कहा कि अब वह ऑपरेशन करा लेंगे। लगातार इतनी संतानें कैसे हो गईं, तो उनका जवाब था कि संतानें होती गईं, लेकिन अब नहीं होंगी अब ऑपरेशन करा लेंगे।
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नॉर्मल डिलीवरी हुई
महिला का प्रसव कराने वाली नर्स देवकी कुर्मी ने बताया कि महिला हाई रिस्क जोन में थी। उसे गुरुवार को यहां पर भर्ती कराया गया था। जहां उसकी नॉर्मल डिलीवरी हो गई। मां और बच्चा दोनों पूरी तरह से सुरक्षित और स्वस्थ हैं। प्रसूता को आशा कार्यकर्ता लेकर यहां पर आई थी। बच्चे का वजन 3.5 किलोग्राम है और वह बिल्कुल स्वस्थ है।
खून की थी कमी
कुसुम का दसवां गर्भ जोखिमों से भरा था। रक्त की कमी, घर पर प्रसव की आदत और ग्रामीण परंपराओं के कारण अस्पताल पहुंचना उसके लिए आसान नहीं था, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन ने हार नहीं मानी। एएनएम कुंती चौरसिया, आशा सुपरइवाजर और आशा कार्यकर्ता राजबाई लोधी लगातार नौ माह तक कुसुम के घर जाती रहीं। उसे प्रसव से जुड़े खतरे समझाए। जांच कराई, पोषण की सलाह दी और उसे विश्वास दिलाया कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्र उसके और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित है।
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पहले 9 बच्चे घर पर हुए
कुसुम आदिवासी का कहना है यदि आशा दीदी लोग समझाने न आतीं, तो शायद मैं फिर घर पर ही प्रसव कर लेती। जिससे मुझे व मेरे बच्चे को खतरा हो सकता था, लेकिन आज अस्पताल आने का फायदा समझ में आ गया। इसके पहले उसने अपने सभी बच्चों को घर पर ही जन्म दिया। उन्होंने सुरक्षित नॉर्मल प्रसव कराने पर सभी का आभार व्यक्त किया। आशा सुपरवाइजर कुंती चौरसिया का कहना है कि महिला कुसुम अस्पताल में प्रसव के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। उसका दसवां गर्भ जोखिमभरा था वह अस्पताल आने के लिए तैयार नहीं थी। हम लोगों ने लगातार उसे समझाइश दी गई। जिसके बाद वह अस्पताल आने के लिए तैयार हुई। रनेह पीएचसी में उसका सुरक्षित प्रसव हुआ।

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