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Election 2023: प्रहलाद पटेल से पहले भी दमोह के कई भाजपा सांसद लड़ चुके हैं विधानसभा चुनाव, ऐसा है इतिहास
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दमोह
Published by: अंकिता विश्वकर्मा
Updated Tue, 26 Sep 2023 01:33 PM IST
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सार
Election 2023: भाजपा ने सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दमोह लोकसभा से भाजपा सांसद कोई भी रहे उसे विधानसभा का चुनाव लड़ना ही पड़ता है।

भाजपा ने सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाने की परंपरा आगे बढ़ाई
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
भाजपा ने सोमवार की रात अपने विधानसभा प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी, जिसमें दमोह लोकसभा से सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर से विधायक पद का उम्मीदवार बनाया है। इसके साथ ही भाजपा ने इस परंपरा को भी आगे बढ़ा दिया है कि दमोह से भाजपा का सांसद कोई भी रहे उसे विधानसभा का चुनाव लड़ना ही पड़ता है, क्योंकि प्रहलाद पटेल के पहले दमोह से जितने भी लोग सांसद रहे, वह सभी कहीं न कहीं से विधानसभा का चुनाव लड़े और चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं।
बता दें, 2009 में दमोह लोकसभा से सागर जिले की बंडा विधानसभा निवासी शिवराज सिंह लोधी सांसद थे। जबकि इसके पहले वह विधानसभा का चुनाव बंडा से लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। उनके पहले चंद्रभान सिंह दमोह पन्ना लोकसभा से सांसद हुआ करते थे, लेकिन सांसद बनने के पहले वह जबेरा विधानसभा से विधायक का चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। चंद्रभान सिंह के पहले पूर्व मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया भी दमोह लोकसभा से चार बार सांसद रहे, लेकिन इसके साथ ही वह हटा और पथरिया से विधानसभा का चुनाव भी लड़े और मंत्री भी बने। हालांकि 2013 विधानसभा चुनाव में छतरपुर जिले के राजनगर सीट से वह कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नाती राजा से चुनाव हार गए थे और उसके बाद 2018 विधानसभा चुनाव में टिकिट न मिलने पर उन्होंने पार्टी से बगावत कर दमोह और पथरिया से निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जहां बीजेपी यह दोनों ही सीट हार गई थी और सरकार भी नहीं बन पाई थी।
भाजपा ने सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दमोह लोकसभा से भाजपा सांसद कोई भी रहे उसे विधानसभा का चुनाव लड़ना ही पड़ता है।
1989 से दमोह लोकसभा परभाजपा का कब्जा
बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट पर 34 साल से भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर अंतिम बार 1985 में सागर के रहने वाले डालचंद जैन ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। 1989 में हुए चुनाव में भाजपा के लोकेंद्र सिंह ने पहली बार कमल खिलाया था। तब से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। खास बात यह है कि 1980 में कांग्रेस के प्रभुनारायण टंडन केवल दमोह के स्थानीय निवासी के रूप में चुनाव लड़े थे। बाकी सभी बाहरी प्रत्याशी ही कांग्रेस से जीते थे। 1962 में अस्तित्व में आई दमोह लोकसभा संसदीय क्षेत्र से सबसे ज्यादा चार चुनाव जीतने वाले पूर्व मंत्री डॉ. रामकृषण कुसमरिया हैं। 1962 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1977 में ये सीट भारतीय लोकदल की झोली में चली गई। 1980 और 1984 में यहां से एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। 1989 से लेकर 2019 के मध्य हुए आम चुनावों में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।
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बता दें, 2009 में दमोह लोकसभा से सागर जिले की बंडा विधानसभा निवासी शिवराज सिंह लोधी सांसद थे। जबकि इसके पहले वह विधानसभा का चुनाव बंडा से लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। उनके पहले चंद्रभान सिंह दमोह पन्ना लोकसभा से सांसद हुआ करते थे, लेकिन सांसद बनने के पहले वह जबेरा विधानसभा से विधायक का चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे। चंद्रभान सिंह के पहले पूर्व मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया भी दमोह लोकसभा से चार बार सांसद रहे, लेकिन इसके साथ ही वह हटा और पथरिया से विधानसभा का चुनाव भी लड़े और मंत्री भी बने। हालांकि 2013 विधानसभा चुनाव में छतरपुर जिले के राजनगर सीट से वह कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नाती राजा से चुनाव हार गए थे और उसके बाद 2018 विधानसभा चुनाव में टिकिट न मिलने पर उन्होंने पार्टी से बगावत कर दमोह और पथरिया से निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जहां बीजेपी यह दोनों ही सीट हार गई थी और सरकार भी नहीं बन पाई थी।
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भाजपा ने सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दमोह सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दमोह लोकसभा से भाजपा सांसद कोई भी रहे उसे विधानसभा का चुनाव लड़ना ही पड़ता है।
1989 से दमोह लोकसभा परभाजपा का कब्जा
बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट पर 34 साल से भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर अंतिम बार 1985 में सागर के रहने वाले डालचंद जैन ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। 1989 में हुए चुनाव में भाजपा के लोकेंद्र सिंह ने पहली बार कमल खिलाया था। तब से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। खास बात यह है कि 1980 में कांग्रेस के प्रभुनारायण टंडन केवल दमोह के स्थानीय निवासी के रूप में चुनाव लड़े थे। बाकी सभी बाहरी प्रत्याशी ही कांग्रेस से जीते थे। 1962 में अस्तित्व में आई दमोह लोकसभा संसदीय क्षेत्र से सबसे ज्यादा चार चुनाव जीतने वाले पूर्व मंत्री डॉ. रामकृषण कुसमरिया हैं। 1962 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1977 में ये सीट भारतीय लोकदल की झोली में चली गई। 1980 और 1984 में यहां से एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। 1989 से लेकर 2019 के मध्य हुए आम चुनावों में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है।
Election 2023: दमोह के कई भाजपा सांसद लड़ चुके हैं विधानसभा चुनाव, प्रहलाद पटेल से पहले ये रह चुके हैं विधायक