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Deepotsav 2025: यहां है देश का इकलौता यमराज मंदिर; 275 साल पहले बना, नरक चौदस को होती है खास पूजा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, ग्वालियर
Published by: ग्वालियर ब्यूरो
Updated Sun, 19 Oct 2025 03:32 PM IST
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सार
यमराज की रूप चतुर्दशी को नरक चौदस भी कहा जाता है। इस रोज यमराज की पूजा अर्चना करने का खास महत्व है। इसको लेकर पौराणिक कथा है कि यमराज ने भगवान शिव की तपस्या की थी, इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज को वरदान दिया था कि आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर जो भी तुम्हारी पूजा अर्चना और अभिषेक करेगा, उसे जब सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलने के बाद उसकी आत्मा को कम से कम यातनाएं सहनी होंगी।

ग्वालियर स्थित यमराज का मंदिर
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विस्तार
यमराज का नाम सुनते ही हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हों। यमराज यानी लोगों के प्राण हरण कर ले जाने वाले भगवान... परंतु आपको सुनकर, जानकर आश्चर्य होगा कि ग्वालियर में यमराज का मंदिर भी है और दीपोत्सव शुरू होने से पहले यानी दीवाली के ठीक एक दिन पहले इस मंदिर मे यमराज की विशेष पूजा और उनका अभिषेक होता है। इस रोज यमराज की पूजा कर उन्हें खुश करने के लिए न केवल ग्वालियर चम्बल अंचल बल्कि देश भर से लोग पहुंचते हैं। देश का एकमात्र यमराज का मंदिर है जो लगभग पौने तीन सौ साल से भी ज्यादा पुराना है।

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ग्वालियर शहर के बीचों बीच फूल बाग इलाके मे स्थित मारकंडेश्वर मंदिर में स्थित है यमराज की यह प्रतिमा। बताते हैं कि यमराज के इस मंदिर की स्थापना सिंधिया वंश के राजाओं ने लगभग 275 साल पहले की थी। तब से निरंतर यहां पूजा अर्चना होती है। तांत्रिक महत्व होने के चलते यहां देश भर से लोग यहां पहुंचते हैं और यमराज की स्तुति पूजा करते हैं।
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ये भी पढ़ें- नरक चतुर्दशी: छोटी दिवाली पर क्यों होता है यमाष्टक का पाठ? जानें क्या है यम दीपक और यमाष्टक स्तोत्र का रहस्य
मार्कण्डेश्वर मंदिर के पूजारी पण्डित मनोज भार्गव बताते हैं कि यमराज की रूप चतुर्दशी को नरक चौदस भी कहा जाता है। इस रोज यमराज की पूजा अर्चना करने का खास महत्व है। इसको लेकर पौराणिक कथा है कि यमराज ने भगवान शिव की तपस्या की थी, इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यमराज को वरदान दिया था कि आज से तुम हमारे गण माने जाओगे और दीपावली से एक दिन पहले नरक चौदस पर जो भी तुम्हारी पूजा अर्चना और अभिषेक करेगा, उसे जब सांसारिक कर्म से मुक्ति मिलने के बाद उसकी आत्मा को कम से कम यातनाएं सहनी होंगी। साथ ही बाद में उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। तभी से नरक चौदस पर यमराज की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर के पुजारी पण्डित भार्गव का कहना है कि नरक चौदस के दिन यमराज की पूजा अर्चना भी ख़ास तरीके और नेवैद्य से की जाती है। पहले यमराज की प्रतिमा पर घी, तेल, पंचामृत, इत्र, फूल माला, दूध, दही शहद आदि से अनेक बार अभिषेक किया जाता है। उसके बाद स्तुति गान पूजा करने के बाद दीप दान किया जाता है। इनका दीपक भी खास रहता है। इसमें चांदी के चौमुखी दीपक से यमराज की आरती उतारी जाती है।
यमराज की पूजा करने के लिए देश भर से लोग ग्वालियर पहुंचते हैं और यमराज को रिझाने की कोशिश करते हैं। इस बार भी पहले से ही भक्तों का यहां पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। भक्तों का कहना है कि वे हर साल यहां पूजा करने पहुंचते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है। यमराज का ये मंदिर देश में अकेला होने के कारण पूरे देश की श्रद्धा का केंद्र है और इस वर्ष भी यहां नरक चौदस पर देश भर से श्रद्धालू पूजा अर्चना करने पहुंचे हैं।
ग्वालियर स्थित यमराज का मंदिर
ग्वालियर स्थित यमराज का मंदिर