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Indore: पद्भश्री जोशीला बोले- निमाड़ी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार हुआ, नहीं मिला राजकीय भाषा का दर्जा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अभिषेक चेंडके Updated Tue, 25 Nov 2025 08:44 PM IST
सार

जोशीला ने कहा कि  हमने भारत सरकार को यह पूरा शब्दकोश प्रकाशित कर भेंट किया और चाहा कि सरकार के द्वारा निमाड़ी बोली को राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाए। जब हमने केन्द्र सरकार को सारे दस्तावेज सौंप दिए।

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Indore: Padma Shri Joshila said – Nimadi language was treated step-motherly, it did not get the status of offi
अभ्यास मंडल की व्याख्यानमाला। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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अभ्यास मंडल की शीतकालीन व्याख्यानमाला के तीसरे दिन मंगलवार को पद्मश्री जगदीश जोशीला ने लोकभाषा सरंक्षण की अनूठी पहल विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि निमाड़ी बोली को राजकीय भाषा के रूप में स्थापित करने का संघर्ष अभी जारी है। इस कार्य के लिए हमने निमाड़ी बोली का शब्दकोश तैयार किया। इसके साथ ही साहित्य भी तैयार किया लेकिन अभी तक इसे राजकीय भाषा का दर्जा नहीं दिलवा पाए हैं। देश की आजादी के बाद कवि के द्वारा लिखे गए साहित्य के आधार पर बोलियों को राजभाषा का दर्जा दिया गया, लेकिन इसमें निमाड़ी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार हुआ।

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जोशीला ने कहा कि वर्ष 1319 से लेकर 1644 तक का समय भक्तिकाल का समय था। इस 325 वर्ष के समय में जनपदीय व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में भक्त कवि हुए । हर कवि ने अपनी बोली में लेखन के कार्य को अंजाम दिया। तुलसीदासजी ने रामायण लिखी तो सूरदास जी ने ब्रज की भाषा में लिखा। मीराबाई ने राजस्थानी में लिखा, नरसी मेहता ने गुजराती में लिखा, तुकाराम ने मराठी में लिखा तो गुरु नानक ने पंजाबी में लिखा। सभी ने अपनी अपनी बोली में लिखकर उस बोली को ज्यादा आकार दिया। निमाड के संत सिगाजी ने अद्वैत पर निर्गुण धारा का सृजन किया।इसे पाँच सौ आठ साल हो गए हैं।

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1953 को हमने निमाड़ लोक साहित्य परिषद का गठन किया। इस परिषद में माखनलाल चतुर्वेदी, पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय, विश्वनाथ, जड़ावचंद्र जैन जैसे लोग जुड़े। हमने 20 साल तक संघर्ष किया लेकिन हमें सफलता नहीं मिली। इस घटनाक्रम से यह संस्था सिमट गई। हमारी निमाड़ी बोली उपेक्षा का शिकार रही। हमारे क्षेत्र में लोगों को हिन्दी नहीं आती हैं। इस स्थिति से मुझे हीनता का अनुभव हुआ।



उज्जैन के टेपा सम्मेलन की तर्ज पर हमने निमाड में ठापा सम्मेलन शुरू किया। इसके बाद निमाड़ी भाषा का शब्दकोश और व्याकरण तैयार करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी के द्वारा तीस हजार शब्द चयनित किए गए । इसके बाद हमने भारत सरकार को यह पूरा शब्दकोश प्रकाशित कर भेंट किया और चाहा कि सरकार के द्वारा निमाड़ी बोली को राजकीय भाषा का दर्जा दिया जाए। जब हमने केन्द्र सरकार को सारे दस्तावेज सौंप दिए तो फिर वहां से जवाब आया कि यह काम राज्य सरकार को करना है ।

 

जोशीला ने कहा कि फिर हमने राज्य सरकार को भी सारे दस्तावेज सौंप दिए हैं और पिछले पच्चीस साल से जवाब आने का इंतजार कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में हर बोली के क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित हो गए और उन बोलियों को संरक्षण मिला है। निमाड़ के क्षेत्र में अभी तक कोई विश्वविद्यालय नहीं था। अब पहला विश्वविद्यालय आया है तो वह भी टंटिया भील के नाम पर आया है । बोलने वालों की कमी से भाषा लुप्त हो जाती है। निमाडी बोली के साथ ऐसा न हो इसके लिए हमारे द्वारा जनजागरण का अभियान चलाया जा रहा है।

 

कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथि का स्वागत शरद सोमपुरकर, मुकेश तिवारी और मनीषा गोर ने किया। कार्यक्रम का संचालन कुणाल भंवर ने किया। अभ्यास मंडल का परिचय हरेराम वाजपेयी ने दिया। अतिथि को स्मृति चिह्न शंकरलाल गर्ग और अनिल कर्मा ने भेंट किया।

 

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