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MP High Court: ससुराल पक्ष के खिलाफ रिपोर्ट करवाना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, एफआईआर खारिज करने के निर्देश
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, जबलपुर
Published by: अरविंद कुमार
Updated Tue, 11 Jun 2024 10:23 PM IST
सार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने कहा, सुसराल पक्ष के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है। हाईकोर्ट ने एफआईआर खारिज करने के निर्देश दिए।
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
जबलपुर हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि महिला ससुराल पक्ष के खिलाफ दहेज प्रताड़ना व क्रूरता की रिपोर्ट दर्ज करवाती है तो यह उसका कानूनी हक है। ससुराल पक्ष के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करना नहीं माना जा सकता है। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ पत्नी तथा उनके माता-पिता के खिलाफ दर्ज किए गए धारा-306 की एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के आदेश जारी किए हैं।
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याचिकाकर्ता बीनू लोधी, उसकी मां शिव कुमारी लोधी तथा पिता बहादुर लोधी निवासी सागर की तरफ से हाईकोर्ट में धारा-306 के तहत प्रकरण दर्ज किए जाने को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया था कि बीनू का विवाह 12 जून 2022 को नरसिंहपुर निवासी मनीष लोधी से हुआ था। विवाद के बाद कम दहेज लाने पर पति तथा सास-ससुर उसके साथ क्रूरता करते हुए मानसिक व शारीरिक यातना देते थे। सुसराल पक्ष के लोगों ने उसका स्त्रीधन छीनकर उसे घर से निकाल दिया था, जिसके कारण उसने पति, सास-ससुर के खिलाफ राहतगढ़ थाना जिला सागर में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। पुलिस ने छह मई 2023 को तीनों के खिलाफ दहेज एक्ट, 406, 489 ए सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया था।
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एफआईआर दर्ज होने के बीस दिन बाद उसके पति मनीष लोधी ने जहरीली वस्तु का सेवन कर आत्महत्या कर ली थी। मृतक के परिजनों ने बयान दिए थे कि पत्नी व ससुराल पक्ष ने दहेज प्रताड़ना की झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसलिए मनीष ने आत्महत्या की है। नरसिंहपुर जिले के सुआतला थाने में 15 जुलाई 2023 को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा-306 के तहत प्रकरण दर्ज किया गया था। पुलिस ने उक्त मामले में न्यायालय के समक्ष चालान भी पेश कर दिया है।
याचिका में दर्ज एफआईआर तथा न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज की जाने की राहत चाही गयी थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से तर्क दिया गया कि दहेज प्रताड़ना के त्रस्त होने के कारण सुसराल पक्ष के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। रिपोर्ट दर्ज कराने को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित नहीं होता है। एकलपीठ ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा है कि रिपोर्ट झूठी थी। इसका फैसला न्यायालय को गवाहों के आधार पर करना था। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान की है।

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