MP: नियमों के विरुद्ध हुई सागर विवि में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियां, कोर्ट ने लगाया 5 लाख का जुर्माना
याचिका के अनुसार, साल 2010 में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में न तो पदों की संख्या का स्पष्ट उल्लेख था और न ही विषयों का। बाद में शुद्धिपत्र जारी कर 76 पदों का विज्ञापन किया गया, लेकिन विषय अब भी नहीं बताए गए।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सागर विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें नियम विरुद्ध तरीके से सहायक प्रोफेसरों को स्थायी नियुक्ति देने का फैसला लिया गया था। जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने नियुक्तियों में गड़बड़ी को गंभीरता से लेते हुए विश्वविद्यालय पर पांच लाख रुपये की कॉस्ट लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि यह राशि कार्यपरिषद के प्रत्येक सदस्य से वसूली जा सकती है।

मामला सागर निवासी डॉ. दीपक गुप्ता की याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने 14 नवंबर 2022 को कार्यपरिषद द्वारा पारित उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें अवैधानिक तरीके से नियुक्त 82 सहायक प्रोफेसरों को स्थायी करने का फैसला लिया गया था।
याचिका के अनुसार, साल 2010 में सहायक प्रोफेसरों की भर्ती के लिए जारी विज्ञापन में न तो पदों की संख्या का स्पष्ट उल्लेख था और न ही विषयों का। बाद में शुद्धिपत्र जारी कर 76 पदों का विज्ञापन किया गया, लेकिन विषय अब भी नहीं बताए गए। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने मनमाने तरीके से 156 पदों पर नियुक्तियां कर दीं। इस प्रक्रिया को 2017 में हाईकोर्ट ने अवैधानिक करार देते हुए नई पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया अपनाने के निर्देश दिए थे।
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इसके बाद फरवरी 2020 में कार्यपरिषद ने नई सूची तैयार करने का निर्णय लिया। लेकिन 14 नवंबर 2022 को पूर्व निर्णय को बदलते हुए कहा गया कि 156 में से केवल 82 सहायक प्रोफेसर कार्यरत हैं, इसलिए उन्हें स्थायी नियुक्ति दे दी जाए। याचिकाकर्ता ने इसे योग्यता के विरुद्ध और अयोग्य व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने वाला निर्णय बताया।
सुनवाई में हाईकोर्ट ने पाया कि नियुक्तियां वैधानिक प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने ढंग से की गईं। कोर्ट ने कार्यपरिषद के 7 फरवरी 2020 के निर्णय के तहत तीन माह के भीतर नई नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है। साथ ही स्पष्ट किया कि यदि तय समय में ऐसा नहीं हुआ तो 14 नवंबर 2022 के आदेश के तहत नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर 15 नवंबर 2025 से कार्यरत नहीं माने जाएंगे।
पांच लाख रुपये की कॉस्ट में से 2 लाख रुपये मप्र पुलिस कल्याण कोष, 1 लाख नेशनल डिफेंस फंड, 1 लाख आर्म्ड फोर्सेज फ्लैग डे फंड, 50 हजार मप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और 50 हजार हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के खाते में 45 दिनों के भीतर जमा कराने के निर्देश दिए गए हैं।