MP: कैसे चमकेगी नेता पुत्रों की राजनीति? भाजपा में बड़े पद मिलने पर रोक, इस्तीफे भी लिए, नई नीति का संदेश क्या
MP BJP News: भाजपा संगठन ने मध्य प्रदेश में परिवारवाद पर नकेल कसते हुए साफ संकेत दिया कि पार्टी में 'एक परिवार, एक पद' का नियम सख्ती से लागू होगा। इसके तहत नेता पुत्रों से इस्तीफे भी ले लिए गए हैं। जानिए, क्या संदेश दे रही मप्र भाजपा?

विस्तार
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जिला कार्यकारिणी के तीन सदस्यों के इस्तीफे से साफ कर दिया है कि परिवारवाद नहीं चलेगा। इससे लंबे समय से पार्टी में बड़े पद पाने का इंतजार कर रहे नेता पुत्रों के सपने टूट गए हैं। हालांकि, अब चर्चा यह है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल पार्टी को परिवारवाद से दूर रखने में सच में सफल होंगे?

एक परिवार, एक पद
भाजपा संगठन ने मध्य प्रदेश में परिवारवाद पर नकेल कसते हुए साफ संकेत दिया कि पार्टी में 'एक परिवार, एक पद' का नियम सख्ती से लागू होगा। हाल ही में गठित कुछ जिला कार्यकारिणियों में नेताओं के परिजनों को स्थान मिलने की शिकायतें प्रदेश नेतृत्व तक पहुंची थीं। इसके बाद तत्काल कार्रवाई करते हुए संबंधित पदाधिकारियों से इस्तीफे ले लिए गए।
इनसे लिए गए इस्तीफे
जानकारी के अनुसार, पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की बहन प्रिया धुर्वे को मंडला जिला कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बनाया गया था। सूत्रों के अनुसार उनको पद छोड़ने के लिए कहा गया। इसी तरह, कैबिनेट मंत्री संपतिया उइके की बेटी श्रद्धा उइके को जिला कार्य समिति में सचिव बनाया गया था। वह ग्राम पंचायत टिकरवाड़ा की सरपंच हैं। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष को संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त करने का त्यागपत्र भेजा। इसके अलावा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को मऊगंज जिला कार्य समिति का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। बताया गया कि ये इस्तीफे प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के संज्ञान में आने के बाद निजी कारण बताते हुए दिए गए। इससे भाजपा ने साफ संदेश दे दिया है कि अब नेताओं के परिजनों को संगठन में जिम्मेदारी नहीं मिलेगी। 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने किसी नेता पुत्र को टिकट नहीं दिया था। जिन मामलों में टिकट दिया गया, वहां पिता का राजनीतिक भविष्य प्रभावित हुआ और उन्हें संगठन में स्थान नहीं मिला।

कार्तिकेय को नहीं मिला टिकट
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बड़े बेटे कार्तिकेय सिंह बुधनी विधानसभा में लंबे समय से सक्रिय हैं। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके प्रचार का पूरा जिम्मा कार्तिकेय के पास ही था। शिवराज सिंह चौहान के लोकसभा चुनाव जीत कर दिल्ली जाने के बाद उपचुनाव में कार्तिकेय सिंह चौहान को टिकट मिलने की उम्मीद थी, उनका नाम भेजा भी गया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनका नाम काट दिया। बुधनी से पार्टी ने पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव का टिकट दिया।
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महाआर्यमन की एंट्री पर चर्चा
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन सिंधिया हाल ही में एमपीसीसीए के चेयरमैन बने हैं, जिसके बाद उनकी सक्रियता को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, सिंधिया खुद कह चुके हैं कि जब तक वह राजनीति में सक्रिय है, उनके परिवार से कोई दूसरा सदस्य नहीं आएगा। ऐसे में अभी महाआर्यमन सिंधिया की राजनीति में एंट्री में थोड़ा समय लग सकता है।
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यहां बेटे और भाई का टिकट काटा
कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयर्गीय इंदौर के क्षेत्र क्रमांक 3 से विधायक भी रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जब कैलाश विजयवर्गीय को प्रत्याशी बनाया तो आकाश का टिकट काट दिया। वहीं, इसी तरह सांसद का पद छोड़कर विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले प्रहलाद पटेल को प्रत्याशी बनाने पर पार्टी ने उनके भाई जालम सिंह का टिकट काट दिया।
मौसम बिसेन को टिकट दिया
बालाघाट में 2023 में पार्टी ने गौरीशंकर बिसेन ने उनकी बेटी मौसम बिसेन का नाम आगे बढ़ाया। पार्टी ने मौसम बिसेन को टिकट दिया, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। इसके बाद गौरीशंकर बिसेन को चुनाव लड़ना पड़ा और वह चुनाव हार गए। अब पार्टी ने मौसम बिसेन को अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाया है।
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किस-किस नेता का बेटा इंतजार में?
विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर लंबे समय से पार्टी में सक्रिय हैं। हालांकि, उनको अभी तक कोई पद नहीं मिला है। वहीं, पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव और जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया समेत अन्य नेता पुत्र भी अपनी एंट्री का इंतजार कर रहे हैं।
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नेता पुत्रों की एंट्री के लिए क्या तरीका?
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता कहते हैं कि भाजपा समय-समय पर नीति बदलती रहती है। ऐसे में यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में नए तरीके से एंट्री हो जाए। हालांकि, हेमंत खंडेलवाल पार्टी को परिवारवाद से मुक्त रखने में सफल हो यह असंभव लगता है। हालांकि, भाजपा का यह कदम संगठन में परिवारवाद खत्म करने और नए चेहरों को अवसर देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पार्टी नेतृत्व का साफ संदेश है कि संगठन और चुनाव दोनों में अवसर केवल मेहनतकश कार्यकर्ताओं को मिलेगा, न कि वंशवाद के आधार पर।
इस्तीफों की नौबत ही क्यों आई?
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटैरिया ने कहा कि आम धारणा यही है कि भाजपा ने परिवारवाद पर रोक लगाने के उद्देश्य से इन तीन नेताओं के परिजनों से इस्तीफे लिए हैं। यदि वास्तव में ऐसा कदम उठाया गया है, तो यह नए प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की सराहनीय पहल है। इससे पार्टी में परिवारवाद की प्रवृत्ति समाप्त होगी और जमीनी स्तर पर मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। हालांकि, एक सवाल यह भी उठता है कि जब प्रदेश नेतृत्व की जांच-परख के बाद ही जिला कार्यकारिणी की सूची जारी की गई थी, तो इनमें ऐसे नाम शामिल ही क्यों किए गए, जिन्हें बाद में इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी चाहे तो स्पष्ट शब्दों में यह निर्देश जारी कर सकती है कि संगठन में परिवार के केवल एक ही सदस्य को स्थान मिलेगा।
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