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Shajapur News: हेलीकॉप्टर से पकड़े गए हिरण, चीतों की खुराक के लिए दक्षिण अफ्रीका की टीम चला रही खास अभियान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, शाजापुर Published by: शाजापुर ब्यूरो Updated Mon, 20 Oct 2025 01:14 PM IST
सार

वन विभाग ने साउथ अफ्रीकी विशेषज्ञों की मदद से कालापीपल क्षेत्र में हेलीकॉप्टर से हाका लगाकर बोमा पद्धति से हिरण पकड़े। पकड़े गए नीलगाय और कृष्णमृगों को गांधीसागर अभयारण्य में छोड़ा जाएगा, जहां वे चीतों के भोजन बनेंगे। यह अभियान 5 नवंबर तक चलेगा और 10 स्थानों से जानवर पकड़े जाएंगे।

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Shajapur News: Deer caught by helicopter, South African team running a special campaign to feed cheetahs
शाजापुर जिले में हिरणों को पकड़ने का अभियान चलाया जा रहा है। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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दक्षिण अफ्रीका की टीम की मदद से वन विभाग द्वारा कालापीपल क्षेत्र के ग्राम इमली खेड़ा में सोमवार सुबह हेलीकॉप्टर से हाका लगाकर हिरण पकड़े हैं। साउथ अफ्रीका के विशेषज्ञों की मदद से बोमा पद्धति से यह पूरा अभियान चलाया जा रहा है। हेलीकॉप्टर से हाका लगाकर हिरण के झुंड को सोमवार को बोमा तक लाया गया। इसके बाद बोमा के आखिरी छोर पर लगे वाहनों में यह हिरण पहुंचे। वाहनों में पहुंचने के बाद इन्हें अलग-अलग किया जाएगा और परीक्षण भी होगा फिर इन्हें अन्यत्र भेजा जाएगा।

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उल्लेखनीय है कि 15 अक्टूबर से इस अभियान की शुरुआत हुई है। 19 अक्टूबर तक शुरुआती पांच दिन तैयारी में ही बीत गए। इससे अभियान की गति पर सवाल खड़े हो रहे थे। हालांकि छठवे दिन दीपावली की सुबह पहली बार हेलीकॉप्टर से हाका लगाया गया और हिरणों को पकड़ा गया। यह अभियान पांच नवंबर तक चलना है और 10 स्थान से नीलगाय व कृष्णम्रग पकड़े जाना है। 
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चीतों का बनेंगे भोजन
श्योपुर के कूनो अभयारण्य के बाद मंदसौर जिले में स्थित गांधीसागर अभयारण्य चीतों का दूसरा घर बना है। जिले से पकड़े गए नीलगाय और कृष्ण मृग को गांधी सागर अभयारण्य में ही छोड़ा जाएगा, जो चीतों का प्राकृतिक भोजन बनेंगे। जिले में नीलगाय और कृष्णमृग बड़ी संख्या में हैं। शुरुआत में 400 कृष्णमृग एवं 100 नीलगाय को शिफ्ट किया जाएगा। इसके लिए हेलीकॉप्टर से हाका लगाया जाएगा। नीलगाय और कृष्णमृग की मौजूदगी वाले स्थानों का सर्वे वन विभाग द्वारा किया जा चुका है। नीलगाय और कृष्णमृग फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसे लेकर कई बार किसानों द्वारा प्रदर्शन करने के साथ ज्ञापन दिए गए। प्रदेश की शिवराजसिंह सरकार के समय स्कूल शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार इस समस्या को विधानसभा में भी उठा चुके हैं। 



यह है बोमा पद्धति
साउथ अफ्रीका की बोमा तकनीक में नीलगाय, कृष्णमृग को पकड़ने के लिए पूरा वातावरण तैयार किया जाता है। कम रिहायशी क्षेत्र व बिना हलचल वाले क्षेत्र से रास्ता जैसा बनाया जाता है और इसे हराभरा दिखाया जाता है। जानवरों के लिए खानपान भी रख दिया जाता है। बोमा पद्धति से नीलगाय, कृष्णमृग को पकड़ने के लिए उन्हें बोमा की तरफ घेरा जाता है। बोमा का अंतिम छोर संकरा रहता है और जानवरों को रखने के लिए लगे पिंजरे या वाहन की ओर खुलता है। जिससे कि जानवर आसानी से उस तक पहुंच जाएं। जानवरों के माैजदूगी पर नजर रखने के लिए ड्रोन कैमरों व अन्य संसाधनों की मदद भी ली जा रही है।

किसानों को राहत
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश पर मध्यप्रदेश और विशेष कर पश्चिम मध्य प्रदेश के राजस्व क्षेत्र में कृष्ण मृग एवं रोजड़ों के खेतों को नुकसान पहुंचाने की समस्या के निदान के रूप में दक्षिण अफ्रीका की कंजर्वेशन सॉल्यूशंस की टीम एवं वन विभाग की टीम द्वारा हेलीकॉप्टर और बोमा से कृष्णमृगों को पकड़ने का अभियान शुरू किया गया। अभियान के पहले दिन ही हेलीकॉप्टर की पहली उड़ान में ही 45 कृष्णमृगों को पकड़ा गया। दक्षिण अफ्रीका की टीम और उनकी तकनीक की मदद से काले हिरणों को पहली बार मध्य प्रदेश में खेतों से पकड़कर जंगलों में ले जाकर छोड़ा जाएगा। इससे किसानों को फसलों के नुकसान में कमी आएगी। 

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