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पैरामेडिकल परीक्षा में फर्जीवाड़ा: छह दोषियों को डेढ़-डेढ़ वर्ष की सजा, किसी और से दिलवा रहे थे अपनी परीक्षा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उमरिया
Published by: उमरिया ब्यूरो
Updated Mon, 25 Aug 2025 07:06 PM IST
सार
उमरिया न्यायालय ने पैरामेडिकल डिप्लोमा परीक्षा फर्जीवाड़े मामले में छह आरोपियों को दोषी मानते हुए डेढ़-डेढ़ वर्ष का सश्रम कारावास और जुर्माना सुनाया। 2016 की इस घटना में पंजीकृत छात्रों ने अपनी जगह दूसरों से परीक्षा दिलाने की साजिश रची थी। न्यायालय ने इसे शिक्षा व्यवस्था पर कलंक मानते हुए कठोर दंड दिया।
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जिला न्यायालय
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विस्तार
शिक्षा व्यवस्था को कलंकित करने वाली पैरामेडिकल डिप्लोमा परीक्षा फर्जीवाड़े के मामले में न्यायालय ने छह आरोपियों को दोषी मानते हुए कठोर सजा सुनाई है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी उमरिया, दीपक कुमार अग्रवाल की अदालत ने सभी आरोपियों को डेढ़-डेढ़ वर्ष का सश्रम कारावास और जुर्माने से दंडित किया। यह मामला वर्ष 2016 से लंबित था, जिसकी सुनवाई अब पूरी हुई।
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मीडिया प्रभारी नीरज पांडेय ने जानकारी दी कि 27 अगस्त 2016 को अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा द्वारा शासकीय महाविद्यालय उमरिया में पैरामेडिकल डिप्लोमा परीक्षा 2015 आयोजित की गई थी। उस दिन एक्स-रे रेडियोलॉजी विषय की परीक्षा हो रही थी। परीक्षा कक्ष का निरीक्षण कर रहे पर्यवेक्षक विमला मरानी (सहायक प्राध्यापक इतिहास), प्रदीप सिंह बघेल (कनिष्ठ क्रीड़ा अधिकारी), मुजीबउल्ला शेख (प्रयोगशाला तकनीशियन) और प्राचार्य डॉ. सी.बी. सोंदिया ने छह छात्रों को संदिग्ध पाते हुए पकड़ा। जांच में यह सामने आया कि असली पंजीकृत छात्रों की जगह अन्य लोग परीक्षा दे रहे थे।
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दोषियों ने रची थी साजिश
जांच में पता चला कि पंजीकृत छात्र अजीत कुमार चौधरी, कमलेश सिंह गोंड, कमलेश चौधरी, चंद्रप्रताप सिंह, दिलीप कुमार रैदास और प्रांजुल सोनी ने अपनी जगह अन्य व्यक्तियों को परीक्षा दिलाने की कोशिश की थी। इस पर तत्काल रिपोर्ट दर्ज कराई गई और थाना कोतवाली उमरिया में अपराध क्रमांक 432/2016 दर्ज हुआ। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420 एवं मध्यप्रदेश मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम 1937 की धारा 3ए/4 के तहत मामला पंजीबद्ध कर आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया।
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सुनाई गई सजा
न्यायालय ने सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत 1-1 वर्ष का कठोर कारावास और 500-500 रुपये का अर्थदंड तथा मध्यप्रदेश मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम की धारा 3(घ)/4 के तहत 6-6 महीने का सश्रम कारावास और 500-500 रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई। अभियोजन पक्ष की ओर से एडीपीओ नीरज पांडेय ने प्रभावी पैरवी की। उन्होंने कहा कि यह फैसला शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी बनाए रखने और नकल माफियाओं पर रोक लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। न्यायालय ने भी अपने निर्णय में कहा कि ऐसे अपराध समाज और विद्यार्थियों के भविष्य के लिए घातक हैं, इसलिए कठोर सजा आवश्यक है।

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