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दिवाली पर क्यों दी जाती है उल्लू की बलि? जानकर हो जाएंगे हैरान
बीबीसी, हिन्दी
Updated Thu, 08 Nov 2018 12:20 PM IST
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- फोटो : Pexels.com
उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे मांस खाने वाले भी नहीं मारते हैं, क्योंकि इसे शकुन-अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है। रात के समय उल्लू का बोलना अपशकुन और दुर्भाग्य भरा माना जाता है। कहा जाता है कि महमूद गजनी (971 - 1030) के क्रूर आक्रमणों और अत्याचारों को देखते हुए एक दिन उनके एक बेहद अक्लमंद मंत्री ने सोचा कि क्यों न सुल्तान को ये समझाने की कोशिश की जाए कि वो क्या कर रहे हैं।
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वो एक रात उन्हें अपने साथ घने जंगलों की सैर पर लेकर गए। जंगल में लगभग सूख चुके एक पेड़ पर दो उल्लू बैठे थे। चांद की मद्धम रौशनी थी। सुल्तान ने मंत्री से पूछा कि ये दोनों आपस में क्या बात कर रहे हैं? मंत्री ने कहा कि सुल्तान, एक उल्लू दूसरे उल्लू से अपनी संतान की शादी की बात कर रहा है। दूसरा उल्लू जानना चाहता है कि दहेज में उसे कितने निर्जन गांव मिलेंगे?
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सुल्तान ने पूछा, 'तो दूसरे उल्लू ने क्या जवाब दिया?' मंत्री ने कहा कि उल्लू कह रहा है कि जब तक सुल्तान जिंदा है, निर्जन गांवों की कोई कमी नहीं है। बताते हैं कि मंत्री की इस बात का सुल्तान पर बहुत गहरा असर हुआ और उन्होंने अपनी तलवार म्यान में डाल दी।
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उल्लू को एक ओर जहां बहुत से लोग मूर्ख मानते हैं, वहीं बहुत से लोगों के लिए वो एक समझदार पक्षी है। जो लोग मांसाहारी हैं, वो भी कभी उल्लू का मांस खाने के बारे में नहीं सोचते, लेकिन दिवाली आते ही उल्लुओं की बलि का बिगुल बज उठता है।
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आप मानिए या न मानिए लेकिन काली पूजा के लिए आज भी उल्लुओं की बलि दी जाती है। इस दौरान उल्लुओं की ऊंची कीमत लगती है। तीस हजार का एक उल्लू। दिल्ली में तो बहुत से दुकानदार ऐसे भी मिल जाएंगे जो एक उल्लू को पचास हजार में बेचने की कसम खाकर दुकान में खड़े होते हैं, जबकि खुद उन्होंने उस उल्लू को जयपुर या मेरठ जैसी जगहों से महज तीन सौ या चार सौ में खरीदा होता है।