Nanda Devi Nuclear Device Mystery: झारखंड की गोड्डा सीट से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि भारत ने 1960 के दशक में कथित तौर पर अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए को हिमालय क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए नंदा देवी पर्वत पर परमाणु ऊर्जा से चलने वाले एक विशेष निगरानी उपकरण को लगाने की इजाजत दी थी।
Nanda Devi: क्या है नंदा देवी चोटी पर परमाणु उपकरण का रहस्य और CIA से संबंध? क्या गंगी नदी पर है कोई खतरा
Nanda Devi Nuclear Device Mystery: चीन के परमाणु मिसाइल टेस्ट पर नजर रखने के लिए नंदा देवी चोटी पर स्पेशल निगरानी उपकरण लगाया जाना था। यह चीन से आने वाले मिसाइल रेडियो सिग्नल को पकड़ सकता था। क्योंकि अमेरिका को शक था कि चीन परमाणु हथियार बना रहा है।
कब और क्यों लगाए गए न्यूक्लियर डिवाइस?
यह पूरा मामला नंदा देवी पर्वत पर गुम हो चुके 7 प्लूटोनियम कैप्सूल्स की है। बताया जाता है कि यह न्यूक्लियर डिवाइस आज भी हिमालय के पर्वतों पर कहीं खो चुका है। फिलहाल किसी को भी इस डिवाइस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अगर गलती से भी यह डिवाइस गंगा या हिमालयन रेंज से निकलने वाली दूसरी नदियों के स्त्रोतों के संपर्क में आती है, तो इससे करोड़ों लोगों की जान पर खतरा आ सकता है।
कैसे शुरू हुई पूरी कहानी
नंदा देवी पर्वत पर खो चुके इस न्यूक्लियर डिवाइस की कहानी की शुरुआत 1960 के दशक में होती है। साल 1964 में चीन अपना पहला न्यूक्लियर मिसाइल टेस्ट किया। चीन के इस कदम को देखते हुए अमेरिका सतर्क हो गया। चीन जिस ऊंचाई वाले क्षेत्र पर अपना न्यूक्लियर मिसाइल टेस्ट कर रहा था, वहां पर सैटेलाइट के जरिए जासूसी करना मुमकिन नहीं था। ऐसे में अमेरिका, चीन की जासूसी करने के लिए भारत की तरफ आता है।
1962 भारत-चीन युद्ध और देश की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए भारत, अमेरिका के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है। इसके बाद जासूसी के लिए भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर्वत को चुना जाता है। मिशन को अंजाम देने के लिए ये स्ट्रैटिजिक रूप से काफी महत्वपूर्ण स्थान था।
50 पाउंड की थी न्यूक्लियर डिवाइस
इस उपकरण को चलाने के लिए एक पोर्टेबल न्यूक्लियर जनरेटर का इस्तेमाल करना था, जिसका नाम SNAP-19C था। इससे चीन के मिसाइल टेस्ट के सिग्नल पकड़े जाते। यह डिवाइस करीब 50 पाउंड का था, जिसनें प्लूटोनियम-238 और 239 था। यह नागासाकी बम में इस्तेमाल हुए प्लूटोनियम का एक तिहाई भाग है। इस उपकरण को ज्यादा ठंडे वातावरण में वर्षों तक बिना इंसानी दखल के काम करने के लिए बनाया गया था।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी और भारतीय पर्वतारोहियों की एक संयुक्त टीम को हिमालय की दुर्गम चोटी नंदा देवी पर भेजा गया। सीआईए ने नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर बैरी बिशप को टीम लीडर बनाया, जबकि भारतीय टीम की कमान कैप्टन एमएस कोहली के पास थी।
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कैसे गुम हो गई डिवाइस?
भारतीय और अमेरिकी टीम अक्तूबर 1965 में शिखर के करीब पहुंची, इसी दौरान भीषण बर्फीला तूफान आ गया और हालात ज्यादा खतरनाक हो गए। इसके बाद कि भारतीय मिशन के प्रमुख कैप्टन कोहली ने आदेश दिया कि जान बचाने के लिए उपकरण छोड़कर सभी नीचे आ जाएं। डिवाइस को बर्फ की एक गुफा में बांधकर छोड़ दिया गया। लेकिन जब फिर टीम 1966 में वापस लेने गई, तो वो गायब हो गया था।
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