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बड़ी दिलचस्प है न्यूजीलैंड को खोजे जाने की कहानी, ये नहीं जानते तो समझिए कुछ नहीं पता

एल्फी शॉ, बीबीसी Updated Thu, 29 Nov 2018 11:39 AM IST
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Interesting story about the Discovery of New zealand
James Cook NZ - फोटो : Prints.co.nz

अगर किसी से ये सवाल किया जाए कि न्यूजीलैंड की खोज किसने की तो कई लोग बिना पलक झपकाए जवाब देंगे- कैप्टन जेम्स कुक। यूरोपीय इतिहासकारों के इस नजरिये ने लोगों के दिमाग में इतनी गहरी पैठ बना ली है कि उसे हकीकत की ठोकर से हिला पाना भी मुमकिन नहीं।



यूरोपीय इतिहासकारों की बात करें तो न्यूजीलैंड को सबसे पहले डच नाविक एबेल तस्मान ने 13 दिसंबर 1642 को देखा था। और पहली बार इस पर कदम रखे ब्रिटेन के कैप्टन जेम्स कुक ने 1769 में।लेकिन पूरी कहानी ये नहीं है। न्यूजीलैंड की शुरुआती खोज का श्रेय माओरी लोगों को दिया जाना चाहिए। ये लोग पॉलीनेशिया के द्वीपों पर रहने वाले आदिवासी हैं।न्यूजीलैंड पर माओरी लोगों ने 1250 से 1300 ईस्वी के बीच पहली बार डेरा जमाया था।

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maori new zealand - फोटो : Wikimedia Commons

न्यूजीलैंड, ओशियानिया नाम के भौगोलिक क्षेत्र में सबसे नीचे स्थित है।ओशियानिया छोटे-बड़े हजारों जजीरों का समूह है जो दक्षिणी प्रशांत महासागर के अपार विस्तार में फैले हुए हैं। इन द्वीपों को प्रशांत महासागर के बाशिंदों ने यूरोपीय अन्वेषकों के खोजने से बहुत पहले तलाश कर इन पर अपना आशियाना बना लिया था।

प्रशांत महासागर के इन आदिम वासियों के समुद्री सफर, नए ठिकानों की खोज और संस्कृति पर लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स ने ओशियानिया के नाम से शो बनाया है। इस शो में जो तमाम चीजें रखी गई हैं, उनमें से एक है टैंगोंगे। ये लकड़ी की एक मूर्ति होती है जो किसी पुरखे या भगवान की मानी जाती है।

इसे 1920 में कैताइया नाम के एक कस्बे के पास खोजा गया था। ये टैंगोंगे चौदहवीं सदी की मानी जाती हैं। लेकिन, उस दौर के माओरी लोगों की बनाई चीजों से इसकी बनावट अलग है बल्कि ये ताहिती शिल्पकला से ज्यादा मिलती-जुलती है।

अगली स्लाइड में पढ़ें यूरोपीय लोगों और माओरियों की बीच जंग

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maori new zealand - फोटो : Wikipedia
जब यूरोपीय लोग पहली बार न्यूजीलैंड पहुंचे थे तो उनकी माओरी मूल निवासियों से भिड़ंत हो गई थी। जेम्स कुक की टोली के साथ हुई इस हिंसक झड़प में कई माओरी मारे गए थे। बाहरी दुनिया के लोगों से पहली बार जो ये साबका पड़ा था, उसका असर माओरी सभ्यता पर आज तक देखा जा सकता है।

गिसबोर्न में लगी जेम्स कुक की मूर्ति को कई बार बदरंग किया जा चुका है। इस पर माओरी लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के चित्र उकेर देते हैं। माओरी कलाकार लिजा रिहाना की बनाई हुई एक डॉक्युमेंट्री-परसूट ऑफ वीनस में कैप्टन जेम्स कुक के प्रशांत महासागर के अभियान को बड़े शानदार ढंग से दर्शाया गया है। 32 मिनट के इस वीडियो को भी लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स में दिखाया गया। इसमें यूरोपीय अन्वेषकों और प्रशांत महासागर के आदिवासियों का आमना-सामना होने की दास्तान तस्वीरों के जरिए दिखाई गई है।

अगली स्लाइड में जानिए ऑक्टोपस वाली कहानी
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Octopus New zealand - फोटो : newsroom.montereybayaquarium.org

माओरी समाज की पौराणिक कहानी के मुताबिक न्यूजीलैंड, जिसे माओरी लोग एओटियारोआ कहते हैं कि तलाश कुपे नाम के एक मछुआरे ने रंगातिरा नाम के जनजातीय मुखिया के साथ मिलकर की थी। ये लोग हवाईकी के रहने वाले थे। कुपे के मछली मारने के ठिकानों पर ऑक्टोपस हमला कर रहे थे। वो मछलिओं को फंसाने के लिए डाला गया चारा खा जाते थे। मछुआरों ने इसका ये मतलब निकाला कि ये ऑक्टोपस एक और जनजाति के मुखिया मुतुरांगी के हैं।

तब कुपे ने मुतुरांगी से कहा कि वो अपने पालतू जानवर को उसका मछलियों को फांसने के लिए डाला जाने वाला चारा खाने से रोके। जब मुतुरांगी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो कुपे ने उस ऑक्टोपस को मार डालने की कसम खाई। वो अपना घर-बार छोड़कर ऑक्टोपस की तलाश में निकल पड़ा। प्रशांत महासागर में ऑक्टोपस की तलाश के दौरान ही कुपे न्यूजीलैंड के द्वीपों पर जा पहुंचा। वहां कुपे और रंगातिरा उतरे और अपनी नाव पर खान-पान की चीजें रखीं। इसके बाद ऑक्टोपस से कुपे और रंगातिरा की भयंकर समुद्री लड़ाई हुई।

माओरी किस्से के मुताबिक ये लड़ाई रौकाला यानी आज की कुक जलसंधि पर हुई थी। यहां पर आख़िरकार कुपे ने मुतुरांगी के पालतू ऑक्टोपस को मारने में कामयाबी हासिल की। इस जीत के बाद कुपे ने न्यूजीलैड के उत्तरी द्वीप का चक्कर लगाया और कई ठिकाने का नामकरण किया। कुपे ने कसम खाई कि वो अपनी तलाश की हुई इस नई जमीन पर दोबारा कदम नहीं रखेगा। इस किस्से से साफ है कि न्यूजीलैंड पर कदम रखने वाला पहला इंसान कुपे था।

अगली स्लाइड में पढ़ें... जब पहाड़ को समझा गया व्हेल

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Mountain like Whale - फोटो : I am Him Twitter

अब चूंकि ये पौराणिक कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी जबानी तौर पर सुनाई जाती रही है। नतीजा ये हुआ है कि हर द्वीप पर इसमें कुछ न कुछ हेर-फेर भी सुनने को मिलता है। माओरियों के इवी यानी कबीलों के किस्से अलग-अलग हैं। जैसे कि जब कुपे ने पहली बार न्यूजीलैंड को देखा तो नगाति कुरी के किस्से के मुताबिक, उसने हौहोरा पहाड़ को व्हेल समझ लिया था। वहीं नगाति काहू की कहानी के मुताबिक, वो ज्वार की वजह से होकियांगा बंदरगाह पर जा पहुंचा था। शायद इसकी वजह ये है कि तमाम आदिवासी कबीले अपनी-अपनी तरह से ख़ुद को कुपे के सब से करीबी वंशज बताना चाहते हैं।


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