Personal Growth: अक्सर ज्यादा मेहनती, महत्वाकांक्षी या पूर्णता की तलाश में रहने वाले लोग खुद के प्रत्ति सख्त बने रहना ही सफलता का आधार मानते हैं, जबकि सच इसके विपरीत है। शोध बताते हैं कि लगातार ऐसा करना शरीर को वैसे ही तनाव में डालता है, जैसे कोई वास्तविक खतरा सामने हो। इससे कॉर्टिसोल नामक हार्मोन बढ़ता है और सेहत बिगड़ती है।
Self-Compassion: कभी मंजिल से पीछे भी रह जाएं तो हताश न हों, खुद के प्रति रहें उदार; सीख है सफलता का रास्ता
Positive Mindset: जिंदगी में कभी-कभी हम मंजिल से पीछे रह जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हार गए। खुद के प्रति उदार रहें, सकारात्मक सोच रखें और हर अनुभव से सीखते हुए आगे बढ़ते रहें।
सकारात्मक बदलाव
तनाव जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है। यह आपको सतर्क रखता है और रोजमर्रा के कामों में मदद करता है। हालांकि, लंबे समय तक बने रहने पर वही तनाव मानसिक और शारीरिक बीमारियों में बदल सकता है। इससे बचने का रास्ता है अपने शरीर के पैरासिम्मेधेटिक सिस्टम को सक्रिय करना।
तंत्रिका तंत्र का पा हिस्सा तब सक्रिय होता है, जब आप सुरक्षा, सुकून और साहजाता महसूस करते हैं। यहीं पर आत्म-करुणा की ताकत काम आती है। इससे न केवल मन को सुकून मिलता है, बल्कि शरीर में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं
सोचने का नजरिया
कई लोग डरते हैं कि आत्म-करुणा उन्हें स्वार्थी बना देगी या जिम्मेदारी से दूर कर देगी, जबकि ऐसा नाहीं है। जब आप खुद के प्रति दयालु भाव रखते हैं, तो दूसरों के लिए भी उपलब्ध रहते हैं, बेहतर ढंग से मुश्किलों का सामना करते हैं और फीडबैक को स्वीकार करके असफलताओं से जल्दी उबरते हैं।
आत्म-करुणा सिखाती है कि में अच्छा नहीं हूं कहने की बजाय 'यह कठिन था, अगली बार मैं क्या सीख सकता है?' सीचना ज्यादा बेहतर है। जब आप अपनी कमियों को देखते हैं, तभी दूसरों की कमियों के प्रति भी नरम रुख रख पाते हैं।
जिम्मेदारी की ताकत
अक्सर लोगों की यह धारणा रहती है कि खुद के प्रति दयालुता दिखाना उन्हें आलसी या महत्वाकांक्षा रहित बना सकती है, जबकि शोध के परिणाम इसका उल्टा साबित करते हैं। जो लोग आत्म-करुणा अपनाते हैं, वे अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से निभाते हैं, असफलता के बाद दोबारा कोशिश करते हैं, टालमटोल कम करते हैं और सोच-समझकर फैसले लेते हैं। वहीं शर्म और नकारात्मक आत्म-छवि भले ही थोड़े समय के लिए प्रदर्शन बढ़ा दे, लेकिन लंबे वक्त तक प्रेरणा बनाए नहीं रख पाती।
दबाव में सोचने की क्षमता
'मैं बेकार हूं' या 'मुझे ऐसा नहीं महसूस करना चाहिए' कहने के बजाय सोचें कि 'यह कठिन है' या 'मैं अकेला नहीं हूं, सब ऐसा महसूस करते हैं। यह भी पूछें कि 'अब मैं अगला कदम क्या उठा सकता हूं?' ऐसे छोटे बदलाव दबाव में भी सोच को स्पष्ट रखते हैं। - द कन्वर्सेशन