अभिनेता मुकेश एस भट्ट का नाम हिंदी सिनेमा के जाने माने निर्माता मुकेश भट्ट जैसा होने के चलते अक्सर लोग उन्होंने निर्माता मुकेश भट्ट समझकर ही फोन करते हैं। बिहार में मुजफ्फरपुर के रहने वाले अभिनेता मुकेश एस भट्ट अब तक 'कंपनी', 'एमएस धोनी- अनटोल्ड लव स्टोरी', 'भूतनाथ रिटर्न्स', 'दबंग 2', 'प्रेम रतन घन पायो', 'ब्लडी डैडी' जैसी कई फिल्मों में काम कर चुके हैं। हाल ही में अक्षय कुमार की फिल्म 'मिशन रानीगंज -द ग्रेट भारत रेस्क्यू' में भी उनका काम लोगों को पसंद आया है। ‘हाशिये के सुपरस्टार’ की इस कड़ी में आइए जानते हैं महेश एस भट्ट की कहानी, उन्ही की जुबानी…
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नाटकों में लड़की बनकर हुई शुरुआत
बिहार के मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी के बीच भरथुआ एक गांव है, जहां का मैं रहने वाला हूं। मशहूर साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी का गांव और मेरा गांव बिलकुल अगल -बगल ही हैं। मुजफ्फरपुर के प्रभात तारा कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई हुई। हमारे यहां छठ पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं जिसमें लड़के लोग नाटक करते थे। नाटक में जिस लड़के का काम अच्छा रहता था उसे प्राइज मिलता था। एक बार मैने भी गांव में एक नाटक किया। पहले तो डर के किया। फिर थोड़ी सी हिम्मत आई। गांव में सबको बड़ा अच्छा लगा और बुजुर्गों ने बड़ा सम्मान दिया। धीरे -धीरे नाटकों के प्रति मेरा आत्म विश्वास बढ़ने लगा। मैं बचपन में दिखने में बहुत सुंदर था तो मुझे नाटकों में लड़की के ही किरदार निभाने के लिए मिलते थे।
नुक्कड़ नाटक से दिखी दिल्ली की मंजिल
मुजफ्फरपुर में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर रहा था। उसी दौरान नुक्कड़ नाटक वालों से मेरी मुलाकात हुई तो मेरे बचपन के दिन याद आ गए। उन दिनों प्रौढ़ शिक्षा अभियान चल रहा था। इस अभियान को लेकर हमने कई नुक्कड़ नाटक किए। दिल्ली से लोग पटना नाटक करने आते थे। हम लोग पटना नाटक देखने आते थे। हमने वहां एक नाटक 'कोर्ट मार्शल' देखा, उसमें पीयूष मिश्रा और मनोज बाजपेयी थे। जब वह नाटक देखा, तो मुझे लगा कि मुझे अब दिल्ली जाना चाहिए। पिता श्री शिव शंकर प्रसाद राय स्टेट बैंक आफ इंडिया में कैशियर थे। मां सुभद्रा देवी गृहणी थीं। तीन भाई हैं हम लोग। सबसे छोटा शैलेश दुबई में सॉफ्टवेयर इंजिनियर है और भाई मौलेश गांव में ही खेती बाड़ी संभालते हैं।
नहीं हुआ एनएसडी में दाखिला
मैं साल 1993 में दिल्ली आया तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) ज्वाइन करने का मन हुआ। उसी समय भारतेन्दु नाटक अकादमी, लखनऊ से नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी आए हुए थे। सौरभ शुक्ला भी मिले, उन्होंने ही बताया कि एनएसडी करने के लिए ग्रेजुएशन करना पड़ेगा। वापस ग्रेजुएशन पूरा करके दिल्ली गया और एनएसडी का एग्जाम दिया लेकिन चयन नहीं हुआ। वहीं बगल में श्रीराम सेंटर है जहां से मनोज बाजपेयी, शेखर सुमन जैसे लोग निकले हैं। वहां मेरा चयन हो गया। एनएसडी के गोल्ड मेडलिस्ट आलोक चटर्जी के निर्देशन में एक नाटक 'होरी' किया और वह नाटक काफी चर्चित हुआ। मेरी भी पहचान बन गई। मुझे लगा कि अब तो एनएसडी में मेरा दाखिला हो जाएगा। मैंने एग्जाम दिया, फिर नहीं हुआ। तीसरी बार एनएसडी का एग्जाम दिया तो तीसरी बार भी नहीं हुआ।
वापस आ गया मुजफ्फरपुर
जब तीसरी बार मेरा चयन एनएसडी में नहीं हुआ तो वापस मुजफ्फरपुर आ गया और वहां मैंने भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाटक ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ किया। यह नाटक बहुत लोकप्रिय रहा। सबको लगने लगा कि मुकेश यहां आ गया अब एक्टिंग क्लास शुरू करेगा। श्रीराम सेंटर में एक्टिंग सीखने के बाद मुझे वैसी फीलिंग नहीं आई थी क्योंकि वहां सिर्फ एक साल का कोर्स था। वह भी शाम को चार घंटे की ही क्लास होती है। एनएसडी में एक्टिंग सीखने का एक पूरा प्रोसेस होता है। आप वहीं हॉस्टल में रहते हो, एक्टिंग स्कूल में जाते हो। वहां पूरा माहौल एक्टिंग का मिलता है।