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Raaj Kumar: हिंदी सिनेमा के 'जानी' जिनके अंदाज और डायलॉग आज भी हैं मशहूर, जानिए राज कुमार के दिलचस्प किस्से
एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला
Published by: अंजू बाजपेई
Updated Thu, 03 Jul 2025 07:48 AM IST
सार
Raaj Kumar Death Anniversary: राज कुमार न सिर्फ एक अभिनेता थे, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थे, जिनका रौब और स्टाइल हिंदी सिनेमा में आज भी बेमिसाल है। उनकी जिंदगी के किस्से, डायलॉग और फिल्में हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
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राज कुमार
- फोटो : X

हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता राज कुमार की आज 3 जुलाई को पुण्यतिथि है। राज कुमार का असली नाम कुलभूषण पंडित है। वह अपने रौबीले अंदाज, दमदार डायलॉग और शानदार अभिनय के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। 8 अक्तूबर 1926 को बलूचिस्तान (अब पाकिस्तान) में जन्मे राज कुमार ने अपने करियर में करीब 70 फिल्में कीं और बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई। आइए उनके स्टाइल, डायलॉग, करियर, निजी जिंदगी पर एक नजर डालते हैं।
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राज कुमार
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राज कुमार का अनोखा स्टाइल
राज कुमार का अंदाज इतना निराला था, कि लोग उनके एक-एक डायलॉग पर तालियां बजाते थे। उनकी रौबीली आवाज और पारसी थिएटर से प्रेरित डायलॉग डिलीवरी उनकी खासियत थी। चाहे वह स्क्रीन पर हों या असल जिंदगी में, उनका आत्मविश्वास और बेबाकी भरा रवैया उन्हें सबसे अलग बनाता था। वे अपनी शर्तों पर काम करते थे।
राज कुमार का अंदाज इतना निराला था, कि लोग उनके एक-एक डायलॉग पर तालियां बजाते थे। उनकी रौबीली आवाज और पारसी थिएटर से प्रेरित डायलॉग डिलीवरी उनकी खासियत थी। चाहे वह स्क्रीन पर हों या असल जिंदगी में, उनका आत्मविश्वास और बेबाकी भरा रवैया उन्हें सबसे अलग बनाता था। वे अपनी शर्तों पर काम करते थे।
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राज कुमार
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फिल्म का एक किस्सा मशहूर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज कुमार ने फिल्म 'जंजीर' सिर्फ इसलिए ठुकरा दी थी, क्योंकि उन्हें निर्देशक प्रकाश मेहरा की शक्ल पसंद नहीं आई थी। वे हमेशा अपनी शर्तों पर काम करते थे और अपनी फीस भी खुद तय करते थे। खास बात यह थी कि फिल्म फ्लॉप होने पर भी वे अपनी फीस बढ़ा देते थे, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्म फ्लॉप हुई, वे नहीं। हालांकि, राज कुमार की इमेज एक अक्खड़ और गुस्सैल अभिनेता की थी। कई अभिनेताओं, जैसे गोविंदा और फिरोज खान, ने उनके साथ काम करने में मुश्किलों का जिक्र किया। एक मशहूर किस्सा है कि गोविंदा की शर्ट पसंद आने पर राज कुमार ने उसे मांगा और बाद में उसका रुमाल बनाकर जेब में रख लिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राज कुमार ने फिल्म 'जंजीर' सिर्फ इसलिए ठुकरा दी थी, क्योंकि उन्हें निर्देशक प्रकाश मेहरा की शक्ल पसंद नहीं आई थी। वे हमेशा अपनी शर्तों पर काम करते थे और अपनी फीस भी खुद तय करते थे। खास बात यह थी कि फिल्म फ्लॉप होने पर भी वे अपनी फीस बढ़ा देते थे, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्म फ्लॉप हुई, वे नहीं। हालांकि, राज कुमार की इमेज एक अक्खड़ और गुस्सैल अभिनेता की थी। कई अभिनेताओं, जैसे गोविंदा और फिरोज खान, ने उनके साथ काम करने में मुश्किलों का जिक्र किया। एक मशहूर किस्सा है कि गोविंदा की शर्ट पसंद आने पर राज कुमार ने उसे मांगा और बाद में उसका रुमाल बनाकर जेब में रख लिया।

राज कुमार
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प्रसिद्ध डायलॉग
राज कुमार के प्रसिद्ध डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उनकी भारी आवाज और शब्दों का चयन दर्शकों को रोमांचित कर देता था। कुछ मशहूर डायलॉग हैं, जिन्होंने इन डायलॉग्स ने राज कुमार को 'जानी' का खिताब दिलाया और उनके किरदारों को अमर बना दिया।
राज कुमार के प्रसिद्ध डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर हैं। उनकी भारी आवाज और शब्दों का चयन दर्शकों को रोमांचित कर देता था। कुछ मशहूर डायलॉग हैं, जिन्होंने इन डायलॉग्स ने राज कुमार को 'जानी' का खिताब दिलाया और उनके किरदारों को अमर बना दिया।
- "जानी, हम तुम्हें मारेंगे, और जरूर मारेंगे... लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी और वक्त भी हमारा होगा"
- फिल्म तिरंगा का डायलॉग- "ना तलवार की धार से, ना गोलियों की बौछार से, बंदा डरता है तो सिर्फ परवर दिगार से"
- दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते हैं, मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते हैं"
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राज कुमार
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करियर और फिल्में
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने 40 साल के करियर में उन्होंने लगभग 70 फिल्मों में काम किया और 'दिल एक मंदिर' और 'वक्त' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। 1996 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। राज कुमार ने अपने करियर की शुरुआत बतौर सब-इंस्पेक्टर की थी, लेकिन एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने फिल्मों में कदम रखा। 1952 में फिल्म रंगीली से डेब्यू करने के बाद उन्हें असली पहचान 1957 की फिल्म 'नौशेरवां-ए-आदिल' और 'मदर इंडिया' से मिली। इसके बाद उन्होंने 'पैगाम', वक्त, पाकीजा, 'हीर रांझा', 'लाल पत्थर', 'सौदागर' और 'तिरंगा' जैसी कई हिट फिल्में दीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अपने 40 साल के करियर में उन्होंने लगभग 70 फिल्मों में काम किया और 'दिल एक मंदिर' और 'वक्त' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। 1996 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। राज कुमार ने अपने करियर की शुरुआत बतौर सब-इंस्पेक्टर की थी, लेकिन एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने फिल्मों में कदम रखा। 1952 में फिल्म रंगीली से डेब्यू करने के बाद उन्हें असली पहचान 1957 की फिल्म 'नौशेरवां-ए-आदिल' और 'मदर इंडिया' से मिली। इसके बाद उन्होंने 'पैगाम', वक्त, पाकीजा, 'हीर रांझा', 'लाल पत्थर', 'सौदागर' और 'तिरंगा' जैसी कई हिट फिल्में दीं।