मिनी वैद की एक किताब है, दोज मैग्नीफिसेंट वीमन एंड देयर फ्लाइंग मशीन: इसरोज मिशन ऑन मार्स। यह किताब बताती है कि मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की महिलाओं ने कितनी मेहनत की। और, भी सैकड़ों लोग इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए रात दिन जुटे रहे। और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में उस मिशन को अंजाम दिया गया जिसकी शुरूआत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई। फिल्म मिशन मंगल के साथ दिक्कत ये है कि न ये इतिहास के प्रति ईमानदार है और न ही विज्ञान के प्रति। अंतरिक्ष विज्ञान पर इतनी नकली फिल्म शायद ही सिनेमा के इतिहास में दूसरी बनी हो या आगे कभी बने।
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Movie Review: मिशन मंगल
कलाकार: विद्या बालन, तापसी पन्नू, नित्या मेनन, कीर्ति कुल्हारी, सोनाक्षी सिन्हा और अक्षय कुमार।
निर्देशक: जगन शक्ति
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियोज, केप ऑफ गुड फिल्म्स, होप प्रोडक्शन्स
घर घर शौचालय और मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड की जरूरतें समझाने वाली फिल्में करके नए भारत कुमार बनने की कोशिश करते रहे अक्षय कुमार की नई फिल्म मिशन मंगल विज्ञान फिल्म कतई नहीं है। ये चांद तारों को लेकर बनी एक ऐसी फिल्म है, जिसमें अंतरिक्ष विज्ञान का जिक्र बार बार होता है लेकिन किसी अंतरिक्ष विज्ञानी को ये फिल्म देखकर सिर्फ कोफ्त हो सकती है। उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूल की एक बहुत लोकप्रिय किताब रही है, विज्ञान आओ करके सीखें। लेकिन, उसमें भी पूड़ियां तलने को, कुशन पर बने डिजाइन को या किसी महिला के गर्भवती होने को इतने अतार्किक तरीके से किसी महत्वपूर्ण प्रयोग से जोड़ने की कोशिश नहीं की गई होगी जितनी क्रिएटिव डायरेक्टर आर बाल्की ने मिशन मंगल में की है।
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अक्षय कुमार को भी ये फिल्म करने के दौरान ही शायद समझ आ गया कि एक ईमानदार अभिनेता की छवि को ये फिल्म कितना नुकसान पहुंचाने वाली है। तभी तो फिल्म के प्रमोशन के दौरान वह एक के बाद एक ऐसी फिल्मों के ऐलान के साथ जुड़ते गए जो उन्हें वापस खिलाड़ी कुमार के चोले में डाल सकती हैं। दुनिया के सबसे सस्ते मिशन मंगल की इस कहानी में महिला किरदारों के निजी जीवन में बार बार इसलिए झांका गया ताकि फिल्म की कहानी सच्ची लग सके। एक मुसलमान को किराए पर घर न मिलना, एक बहू का मां बनने का दबाव झेलना, एक लड़की का ब्रेकअप की मुश्किलों से दो चार होना और एक युवक का शादी लायक उम्र में भी शारीरिक संबंध न बना पाना, एक विज्ञान फिल्म को बेचने के ये निर्देशक जगन शक्ति के टोटके हैं।
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फिल्म देखकर लगता है कि ये फिल्म बहुत हड़बड़ी में बनी है। शायद मशहूर अंतरिक्ष विज्ञानी नंबी नारायणन की बायोपिक से पहले फिल्म रिलीज करने का दबाव ही रहा होगा कि ये फिल्म नासा की बात तो करती है, लेकिन विज्ञान की किसी कसौटी पर खरी साबित नहीं होती। फिल्म में दिखाई गई प्रयोगशालाएं फिल्मी हैं, अंतरिक्ष विज्ञान के उपकरण बचकाने हैं और तरल ईंधन का महत्व समझाने के उदाहरण बेतुके हैं। फिल्म के प्रचार में हर जगह अक्षय कुमार हावी रहे लेकिन फिल्म देखने के बाद समझ आता है कि असल में विद्या बालन इस फिल्म की हीरो हैं। तारा का उनका किरदार अगर और कायदे से उभर पाता तो फिल्म सिनेमा में मील का पत्थर बन सकती थी। कहानी के नाजुक पलों में भी ये विद्या बालन का ही किरदार है जो दूसरे किरदारों की प्रेरणा बनता है।
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निर्देशक के तौर पर कहानी के तत्वों से ईमानदारी न दिखा पाने के तो जगन शक्ति दोषी हैं ही, फिल्म में कलाकारों से सही काम न ले पाने का दाग भी उनके दामन पर लगने वाला है। नित्या मेनन को जो लोग मरसल जैसी फिल्मों में देख चुके हैं, उन्हें यहां एक स्पेशल अपीयरेंस सी भूमिका में देख उन्हें निराशा हो सकती है। तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी और सोनाक्षी सिन्हा जैसी अभिनेत्रियों ने भी शायद ये फिल्म अक्षय कुमार के आभामंडल से प्रभावित होकर कर ली होगी, लेकिन उनके करियर को या उनके भीतर छुपे कलाकार को इस फिल्म से कुछ फायदा होने वाला नहीं। फिल्म का गीत-संगीत पक्ष तो कमजोर है ही, इसके सेट डिजाइन और दूसरे तकनीकी पक्ष भी एक विज्ञान फिल्म जितने मजबूत नहीं हैं। इस तरह की फिल्में न सिर्फ वैज्ञानिक सोच के विपरीत हैं बल्कि यह भी साबित करती हैं कि हिंदी सिनेमा गंभीर फिल्मों को लेकर भी कितना हल्का बर्ताव करता है। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म मिशन मंगल को मिलते हैं दो स्टार।
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