कलाकार: परिणिती चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, संजय मिश्रा, जावेद जाफरी और अपारशक्ति खुराना।
पकड़ुआ विवाह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है। इस पर इतना कुछ लिखा, कहा और बनाया जा चुका है कि सिनेमा के लिए यह विषय कम से कम एक कॉमेडी फिल्म के फॉर्मेट में बिखरा-बिखरा सा लगता है। फ्लॉप फिल्मों की डबल हैट्रिक पूरी कर चुके अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा को इसके बावजूद इसकी कहानी मनोरंजक और दिलचस्प लगी, इस पर सिर्फ अचरज ही किया जा सकता। ये अलग बात है कि इस विषय पर बन चुके धारावाहिक की जानकारी उन्हें तब मिली जब फिल्म पूरी हो चुकी थी। एक अभिनेता के समाज से कटे रहने और वास्तविक परिस्थितियों से सिर्फ फिल्म की पटकथा भर साबका होने का नुकसान सिद्धार्थ को इसीलिए बार बार उठाना पड़ रहा है।
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फिल्म जबरिया जोड़ी चूंकि सिद्धार्थ के किरदार से ही खुराक पाती है लिहाजा फिल्म के चलने न चलने के सबसे बड़े जिम्मेदार वही हैं। फिल्म बनाने वाली एकता कपूर और प्रशांत सिंह की जबरिया जोड़ी इसकी कमजोर कड़ी बाद में बनीं। इस तरह के विषय पर स्टूडेंट ऑफ द ईयर का हीरो फिल्म करने को तैयार भी हो जाएगा, यह भी अपने आप में बहस का विषय है। लेकिन, सिद्धार्थ को बस एक फिल्म करनी थी ताकि उनका मीटर चलता रहे। परिणिती को वह साथ में इसलिए घसीट लाए क्योंकि उनकी ट्यूनिंग फिलहाल किसी दूसरी हीरोइन से जम नहीं रही। परिणिती के यह फिल्म करने की इसके अलावा कोई दूसरी वजह समझ आती नहीं।
जबरिया जोड़ी में कहानी जैसा कुछ है नहीं। पटना का अभय सिंह अपने पिता हुकुमदेव सिंह के कहने पर लोगों की जबरिया शादी कराता है और इसे जमाने पर बड़ा एहसान मानता है। बबली यादव समय पर चूके मॉनसून की तरह उसके जीवन में लौटती है। मुंबई की बारिश की तरह वह लगातार बरसने की कोशिश में रहती है और नतीजा वही होता है हर तरफ बस पानी पानी। कहानी भी इसी में गले गले तक डूब जाती है।
निर्देशक प्रशांत सिंह को यह समझना चाहिए कि सिर्फ छींट वाली बुश्शर्ट और सफेद पैंट पहनने से कोई बिहारी नहीं बन जाता। बिहारी एक तेवर है और यह सिर्फ जिया जा सकता है। नकली अकड़ और जबर्दस्ती की फूं फा से तो बिहारी दबंगई हासिल की ही नहीं जा सकती। दूसरे दिल्ली में पले बढ़े सिद्धार्थ को अभी असली हिंदुस्तान की समझ तक नहीं है। वह भोजपुरी को पटनैया बोलकर इंटरव्यू में तो बच सकते हैं लेकिन मेहनत की कमाई से सिनेमाघर तक आने वाला उनके इस तर्क को मानेगा नहीं।
जैसे फिल्म जबरिया जोड़ी में सिद्धार्थ मल्होत्रा किसी कोने से पटना के अभय सिंह नहीं लगते, वैसे ही लाल बालों वाली परिणिती को बिहार की बबली यादव के किरदार में स्वीकार कर पाना भी किसी चुनौती से कम नहीं लगता। फिल्म में पूरे समय दर्शक यही सोचते रहते हैं कि फिल्म जल्दी से जल्दी खत्म हो। ऐसा इसलिए क्योंकि जो कुछ परदे पर इस दौरान होता रहता है, वह किसी दर्शक में न भावनाएं जगा पाता है और न ही कहानी की कोई बात उसे कचोटती ही है।