Secrets Of Kohinoor: मुझे लगा था डॉक्यूमेंट्री में काम के पैसे नहीं मिलेंगे, मनोज बाजपेयी का दिलचस्प खुलासा
मनोज बाजपेयी कहते हैं, ‘जब कोहिनूर की स्क्रिप्ट मेरे पास आई और मैंने इसे पढ़ा तब समझ में आया कि कोहिनूर का मतलब क्या है, इसका नाम कोहिनूर पड़ा कैसे? जब इस पर रिसर्च टीम काम करती है, उन सभी रहस्यों को ढूंढ कर लाती है। वर्षों तक चर्चा में रहने के बावजूद कोहिनूर के बारे में ऐसे कई तथ्य हैं, जिससे मैं अनजान था। मुझे यकीन है कि दुनिया के अधिकांश लोग भी इस बात से अनजान होंगे। इस डाक्यूमेंट्री में किए गए खुलासे ने मुझे भी हैरान कर दिया।'
मनोज बाजपेयी कहते है, ‘इस तरह की डाक्यूमेंट्री करने का फायदा यह होता है कि इसमें आपको एक्टिंग नहीं करनी पड़ती है। इसमें थोडा एक्टिंग से रीलिफ मिल जाता है। हालांकि कई बार इसकी शूटिंग के दौरान हमारी निर्देशक राघव जैरथ से बहस भी हो जाती थी, क्योंकि जिस तरह से मैं काम करना चाह रहा था, उस तरह से राघव को पसंद नहीं था। जिस तरह से राघव चाहते थे, मुझे पसंद नहीं था। खैर, यह सब तो क्रिएटिव पार्ट है, ऐसा होता रहता रहता है। हम सबकी यही कोशिश रहती है कि किसी भी तरह अच्छा काम होना चाहिए।’
मनोज बाजपेयी इतिहास के छात्र रहे हैं। वह कहते हैं, ‘इसीलिए यह शो करने में बहुत अच्छा लगा। इतिहास से अगर तारीखें हटा दी जाएं तो एक स्टोरी की तरह पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है। जब मैं पढाई कर रहा था तो मुझे तारीखएं याद करने में बहुत परेशानी होती थी, यही सोचता था कि किसी तरह से जल्दी पढ़ाई खत्म हो जाए, क्योंकि मुझे तो आना एक्टिंग में ही था।'
मनोज बाजपेयी कहते है, ‘जब नीरज पांडे पहली बार ‘सीक्रेट ऑफ सिनौली’ का ऑफर लेकर आए तो मुझे लगा कि ये तो डाक्यूमेंट्री है, इसमें क्या पैसे मिलेंगे ? चूंकि नीरज के साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध है। मैंने उनके साथ 'स्पेशल छब्बीस', 'नाम शबाना' और 'अय्यारी' जैसी फिल्में की है तो सोचा था कि नीरज ऐसे ही इसका ऑफर लेकर आए होंगे। मैंने भी यह सोचकर हां बोल दिया कि अगर इस तरह के प्रोजेक्ट में पैसे नहीं भी मिलेंगे तो कोई बात नहीं क्योंकि मैंने सुना था कि डाक्यूमेंट्री के लिए लोग पैसे नहीं देते है। लेकिन मुझे ‘सीक्रेट ऑफ सिनौली’ के साथ साथ ‘सीक्रेट ऑफ कोहिनूर’ के लिए भी अच्छे पैसे मिले।'