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Kidney Failure: क्यों ज्यादातर लोगों को किडनी फेलियर की जानकारी लास्ट स्टेज में होती है?

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिखर बरनवाल Updated Fri, 05 Dec 2025 11:42 AM IST
सार

Last Stage Kidney Disease:किडनी फेलियर एक बेहद गंभीर समस्या है, कई मामलों में ये जानलेवा भी होता है। अधिकतर मामलों ऐसा देखने को मिलता है कि किडनी डैमेज की समस्या लास्ट स्टेज में पता चलता है। आइए इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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Kidney Failure symptoms Why Do Most People Discover Kidney Failure at Last Stage
किडनी में पथरी की शिकायत - फोटो : Adobe Stock

Kidney Failure Signs: किडनी फेलियर या क्रॉनिक किडनी डिजीज को अक्सर 'साइलेंट किलर' कहा जाता है, और यही मुख्य कारण है कि अधिकतर मरीजों को अपनी बीमारी की जानकारी तब मिलती है जब किडनी डैमेज अंतिम चरण में चल रहा होता है। किडनी में शरीर को क्षति पहुंचाए बिना, अपनी कार्यक्षमता को 80% तक संभालने की अद्भुत क्षमता होती है।



इसका मतलब है कि भले ही आपकी किडनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो रही हो, वह शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट या गंभीर लक्षण नहीं दिखाती। जब तक लक्षण दिखना शुरू होते हैं, तब तक किडनी अपनी अधिकतर कार्यक्षमता खो चुकी होती है, जिससे डॉक्टर के पास उपचार के विकल्प सीमित बचते हैं।

इसके अलावा जो शुरुआती लक्षण दिखाई भी देते हैं जैसे थकान, कमजोरी, या रात में बार-बार पेशाब आना उन्हें अक्सर लोग बढ़ती उम्र, तनाव या सामान्य थकान मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। इस देर से निदान के कारण, मरीजों को सीधे डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है। इसलिए किडनी फेलियर के शुरुआती लक्षणों को समझना और नियमित जांच कराना जीवन रक्षा के लिए बहुत जरूरी है।

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किडनी में पथरी की शिकायत - फोटो : Adobe Stock

शुरुआती लक्षण
किडनी फेलियर के शुरुआती लक्षण बहुत ही साधारण होते हैं, जिसके कारण उन्हें आसानी से अनदेखा कर दिया जाता है। इन लक्षणों में लगातार बनी रहने वाली थकान (जो एनीमिया के कारण होती है), रात में बार-बार पेशाब आना, और भूख में कमी होना शामिल है।

ये लक्षण इतने सामान्य हैं कि लोग इसे नींद की कमी या खराब जीवनशैली का नतीजा मान लेते हैं। जब तक मरीज को पैरों में सूजन या मतली जैसे स्पष्ट लक्षण महसूस होते हैं, तब तक बीमारी अंतिम चरण में पहुंच चुकी होती है।

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किडनी - फोटो : Freepik.com

नियमित जांच की कमी
अधिकांश लोग अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच में किडनी के लिए जरूरी विशिष्ट टेस्ट नहीं कराते हैं। डॉक्टर अक्सर केवल ब्लड शुगर या कोलेस्ट्रॉल की जांच करते हैं। किडनी की क्षति का पता लगाने के लिए किडनी फंक्शन टेस्ट रक्त परीक्षण अनिवार्य होता है। इस ब्लड टेस्ट को साल एक बार कराना चाहिए। इससे शुरुआत में ही किडनी के खराब होने के संकेत मिल जाते हैं।


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डायबिटीज का खतरा - फोटो : Freepik.com

हाई बीपी और डायबिटीज का प्रभाव
किडनी फेलियर के दो मुख्य कारण अनियंत्रित हाई बीपी और डायबिटीज हैं। ये दोनों बीमारियां किडनी को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन मरीजों को लगता है कि वे बीपी या शुगर की दवा ले रहे हैं, इसलिए उनकी किडनी सुरक्षित है। मगर दवा लेने के बावजूद, अगर बीपी या शुगर का लेवल ठीक से नियंत्रित नहीं होता है, तो किडनी की सूक्ष्म वाहिकाएं क्षतिग्रस्त होती रहती हैं।


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डायबिटीज - फोटो : Freepik.com
देर से निदान के गंभीर परिणाम
अंतिम चरण में बीमारी का पता चलने पर, मरीज के पास उपचार के लिए डायलिसिस या प्रत्यारोपण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। यह न केवल मरीज के लिए बल्कि परिवार के लिए भी भावनात्मक और आर्थिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। इसलिए 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को, विशेष रूप से डायबिटीज या हाई बीपी के मरीजों को, हर साल अनिवार्य रूप से किडनी के फंक्शन टेस्ट करवाने चाहिए ताकि शुरुआती चरण में ही इसे रोका जा सके।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
 
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