Kidney Failure Signs: किडनी फेलियर या क्रॉनिक किडनी डिजीज को अक्सर 'साइलेंट किलर' कहा जाता है, और यही मुख्य कारण है कि अधिकतर मरीजों को अपनी बीमारी की जानकारी तब मिलती है जब किडनी डैमेज अंतिम चरण में चल रहा होता है। किडनी में शरीर को क्षति पहुंचाए बिना, अपनी कार्यक्षमता को 80% तक संभालने की अद्भुत क्षमता होती है।
Kidney Failure: क्यों ज्यादातर लोगों को किडनी फेलियर की जानकारी लास्ट स्टेज में होती है?
Last Stage Kidney Disease:किडनी फेलियर एक बेहद गंभीर समस्या है, कई मामलों में ये जानलेवा भी होता है। अधिकतर मामलों ऐसा देखने को मिलता है कि किडनी डैमेज की समस्या लास्ट स्टेज में पता चलता है। आइए इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
शुरुआती लक्षण
किडनी फेलियर के शुरुआती लक्षण बहुत ही साधारण होते हैं, जिसके कारण उन्हें आसानी से अनदेखा कर दिया जाता है। इन लक्षणों में लगातार बनी रहने वाली थकान (जो एनीमिया के कारण होती है), रात में बार-बार पेशाब आना, और भूख में कमी होना शामिल है।
ये लक्षण इतने सामान्य हैं कि लोग इसे नींद की कमी या खराब जीवनशैली का नतीजा मान लेते हैं। जब तक मरीज को पैरों में सूजन या मतली जैसे स्पष्ट लक्षण महसूस होते हैं, तब तक बीमारी अंतिम चरण में पहुंच चुकी होती है।
नियमित जांच की कमी
अधिकांश लोग अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच में किडनी के लिए जरूरी विशिष्ट टेस्ट नहीं कराते हैं। डॉक्टर अक्सर केवल ब्लड शुगर या कोलेस्ट्रॉल की जांच करते हैं। किडनी की क्षति का पता लगाने के लिए किडनी फंक्शन टेस्ट रक्त परीक्षण अनिवार्य होता है। इस ब्लड टेस्ट को साल एक बार कराना चाहिए। इससे शुरुआत में ही किडनी के खराब होने के संकेत मिल जाते हैं।
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हाई बीपी और डायबिटीज का प्रभाव
किडनी फेलियर के दो मुख्य कारण अनियंत्रित हाई बीपी और डायबिटीज हैं। ये दोनों बीमारियां किडनी को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन मरीजों को लगता है कि वे बीपी या शुगर की दवा ले रहे हैं, इसलिए उनकी किडनी सुरक्षित है। मगर दवा लेने के बावजूद, अगर बीपी या शुगर का लेवल ठीक से नियंत्रित नहीं होता है, तो किडनी की सूक्ष्म वाहिकाएं क्षतिग्रस्त होती रहती हैं।
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अंतिम चरण में बीमारी का पता चलने पर, मरीज के पास उपचार के लिए डायलिसिस या प्रत्यारोपण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। यह न केवल मरीज के लिए बल्कि परिवार के लिए भी भावनात्मक और आर्थिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। इसलिए 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को, विशेष रूप से डायबिटीज या हाई बीपी के मरीजों को, हर साल अनिवार्य रूप से किडनी के फंक्शन टेस्ट करवाने चाहिए ताकि शुरुआती चरण में ही इसे रोका जा सके।
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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