राजधानी दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने चुनौतीपूर्ण 'ऑटो-किडनी ट्रांसप्लांट' में कामयाबी हासिल की है। इस सर्जरी के दौरान 29 वर्षीय रोगी की एक किडनी को निकालकर दूसरी तरफ स्थापित कर उसे सामान्यरूप से कार्यरत किया गया है। रोगी को कुछ समय पहले किडनी स्टोन की शिकायत थी, जिसका एक निजी अस्पताल में सर्जरी किया गया था। दुर्भाग्यवश सर्जरी के दौरान 25-26 सेमी पेशाब की नली (लेफ्ट यूरेटर) भी पथरी के साथ बाहर निकल गई थी। इस स्थिति में किडनी से ब्लेडर का संपर्क टूट गया, जिससे पेशाब के पेट में इकट्ठा होने का खतरा था।
कामयाबी: सर्जरी के दौरान कट गई थी किडनी-ब्लैडर को जोड़ने वाली ट्यूब, सर गंगाराम के डॉक्टरों ने किया सफल 'ऑटो-किडनी ट्रांसप्लांट'
ऑटो-किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में जानिए
इस केस को बेहतर ढंग से समझने के लिए आवश्यक है कि पहले यह जान लिया जाए कि ऑटो-किडनी ट्रांसप्लांट प्रक्रिया क्या है? इस प्रक्रिया और केस के बारे में समझने के लिए हमने सर गंगा राम अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट डॉ. विपिन त्यागी से संपर्क किया।
डॉ. विपिन बताते हैं, ऑटो-ट्रांसप्लांट का मतलब है इंसान में किसी अंग को एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसप्लांट करना। इसके माध्यम से शरीर के कार्यों को पहले की ही तरह सुचारू करने का प्रयास किया जाता है। जहां तक बात इस केस की है तो इसमें यह प्रक्रिया काफी चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि दो दिन पहले ही मरीज के इसी अंग का ऑपरेशन किया गया था।
बाईं किडनी की नली कट गई थी
सर गंगाराम हॉस्पिटल में इस केस को ठीक करने की जिम्मेदारी अब डॉ. विपिन के कंधों पर थी। डॉ. विपिन त्यागी बताते हैं, किडनी स्टोन सर्जरी के दौरान पेशाब की नली का बाहर आ जाना इस केस की गंभीरता को बढ़ाने वाला था।
इसे समझने के लिए हमें किडनी और ब्लेडर को जोड़ने वाली नली के बारे में जानना होगा। सामान्यतौर पर इंसानों में दो किडनी, बाईं और दाईं ओर होती हैं। इन किडनियों को पेशाब की थैली से जोड़ने वाली दो पेशाब की नालियां (यूरेटर) होती हैं। इस मामले में स्टोन सर्जरी के दौरान बाईं किडनी को पेशाब की थैली से जोड़ने वाली नली बाहर आ गई थी।
कई तरह की थीं चुनौतियां
डॉ. विपिन त्यागी कहते हैं, इस स्थिति में हमारे सामने दो विकल्प थे, या तो हम किडनी को हटा देते या फिर किडनी और ब्लैडर के बीच जो नली कट गई थी, उसकी जगह पर नया कनेक्शन बनाकर किडनी ऑटो ट्रांसप्लांट किया जाता। इस केस में हमने रोगी की आयु को देखते हुए 'ऑटो-किडनी ट्रांसप्लांट' करने का फैसला किया।
सर्जरी के दौरान किडनी को बाईं ओर से निकालकर दाईं ओर पेशाब की थैली के जितना हो सके पास लाने की कोशिश की गई। दाहिने तरफ लाई गई किडनी और पेशाब की थैली में अब भी 4-5 सेंटीमीटर का अंतर था। इसे पूरा करने के लिए हमने नई ट्यूब को बनाने का फैसला किया। ट्यूब को किडनी और पेशाब की थैली से जोड़कर हमने इसके सामान्य कार्यप्रणाली को फिर से बहाल करने में सफलता पाई है।
पूरी तरह स्वस्थ है मरीज
किडनी की बढ़ती समस्याओं को लेकर डॉ विपिन कहते हैं, कई तरह के कारक किडनी की बीमारियों को बढ़ा रहे हैं, जिसपर ध्यान रखते हुए हमें बचाव के उपाय करते रहने चाहिए। निश्चित ही कई मायनों में हमारे लिए यह केस चुनौतीपूर्ण था, पर हम इसके सफल इलाज करने में कामयाब रहे हैं। इस तरह से दोनों किडनियों को एक ही तरफ स्थापित करके नया ट्यूब लगाना काफी चुनौतीपूर्ण अनुभव रहा, हालांकि अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है और उसकी दोनों किडनियां काम कर रही हैं, यही हमारी सबसे बड़ी कामयाबी है।
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