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पुतरियों का मेला: परंपरा की दो सदी, माटी की मूर्तियों की झांकी से धर्मजागरण-नशामुक्ति का संदेश दे रहा परिवार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: दिनेश शर्मा Updated Sun, 01 Oct 2023 08:04 AM IST
सार

सागर जिले में एक गांव में भादौ के माह में प्रतिवर्ष मेला लगता है। इस मेले की "पुतरियों के मेले" के रूप में ख्याति है। प्राचीनकाल में पाण्डेय परिवार द्वारा प्रारंभ की गई मिट्टी की मूर्तियो की झांकी की परंपरा चौथी पीढ़ी तक बरकरार है। 

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Fair of clay puppets in Sagar, a family has been following the tradition for two centuries
सागर का पांडेय परिवार 206 सालों से मिट्टी की मूर्तियों की झांकी लगा रहा है। - फोटो : सोशल मीडिया
सागर जिले के रहली तहसील के एक छोटे से गांव काछी पिपरिया में करीब 206 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम है। भादौ के माह में प्रतिवर्ष गांव में मेला लगता है। इस मेले की "पुतरियों के मेले" के रूप में ख्याति है। प्राचीनकाल में पाण्डेय परिवार द्वारा प्रारंभ की गई मिट्टी की मूर्तियो की झांकी की परंपरा चौथी पीढ़ी तक बरकरार है। मूर्तिकला और चित्रकला के माध्यम धर्मजागरण और नशा मुक्ति जैसे संदेश इस मेले में दिए जाते हैं।


बता दें कि बुंदेलखंड में मिट्टी की मूर्तियों को "पुतरिया" कहा जाता है। प्राचीन काल में ग्रामीणों में शिक्षा की कमी एवं संसाधनों के अभाव में धर्मजागरण मूर्तिकला एवं चित्रकला द्वारा झांकियों के माध्यम से किया जाता रहा। करीब 206 साल पहले दुर्गाप्रसाद पाण्डेय द्वारा काछी पिपरिया गांव में पुतरियों के मेले की शुरुआत की गई थी। वे मूर्तिकला एवं चित्रकला में पारंगत थे। उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियों का निर्माण कर अपने निवास को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर लिया।



धार्मिक कथाओं के अनुसार कृष्ण लीलाओं की सजीव झांकियां सजाकर धर्मजागरण का कार्य प्रारंभ किया था। जो बाद में पुतरियो के मेले के रूप में जाना जाने लगा। दुर्गाप्रसाद पाण्डेय के वाद उनके पुत्र बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय ने इस मेले को आगे बढ़ाया। तीसरी पीडी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय ने अपने पूर्वजो की परंपरा को संजोकर रखते हुए आज तक बरकरार रखा है। अब चौथी पीढ़ी भी पूरी शिद्दत के साथ इस कार्य में सहभगिता करती आ रही है।

 
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मूर्तियों के माध्यम से सामाजिक संदेश दिया जाता है। - फोटो : सोशल मीडिया
मेले को देखने अंग्रेजी शासक भी पहुंचे थे 
लोग बताते हैं कि इस मेले को देखने के लिए गांव में अंग्रेजी शासक भी पहुंचे थे। इसके बाद मेले में पाण्डेय परिवार के बुजुर्गों ने उनकी भी झांकी भी बनाई थी, जो आज भी लोगों को दिखाई जाती है। पाण्डेय परिवार द्वारा लगातार चार पीढ़ियों से झांकियों द्वारा धर्मजागरण के साथ व्यसनमुक्ति, गौ पालन, मालिक के खेत पर ना जाने से खेती नाश, धन, कुप्रथा, संदेश देने का पुण्य कार्य अपने स्वयं के व्यय एवं परिश्रम के द्वारा दिया जा रहा है।

आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति आकर्षण हो रहा कम
इस कार्य के लिए पाण्डेय परिवार द्वारा न तो शासन से कोई सहायता की मांग की गई। न ही संस्कृति विभाग द्वारा इस अनूठे आयोजन की सुध ली गई। आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति लोग का आकर्षण लगातार कम हो रहा है, परंतु पाण्डेय परिवार इस परंपरा को सतत आने वाली पीढ़ियों तक जारी रखने का मनसूबा रखता है।
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