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अरावली पर्वतमाला पर महासंग्राम: 2010 बनाम 2025 की परिभाषा; आखिर क्या है 100 मीटर का सच?

सौरभ भट्ट Published by: हिमांशु प्रियदर्शी Updated Mon, 22 Dec 2025 05:03 PM IST
सार

Aravalli Range Controversy: राजस्थान की पहाड़ियां (अरावली) राजस्थान की राजनीति का रणक्षेत्र बन चुकी हैं। इसकी परिभाषा के लेकर जबरदस्त विवाद छिड़ा हुआ है। एक शब्द से कैसे बदल गया अरावली की रिपोर्ट का मजमून, इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में जानिए…
 

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Aravalli Hill Controversy: 2010 vs 2025 Explained What is Truth Behind 100 Meter Rule All You Need to Know
अरावली की परिभाषा पर बवाल - फोटो : अमर उजाला

राजस्थान में अरावली की पहाड़ियां इन दिनों सियासत की जंग का मैदान बनी हुई है। अरावली को लेकर जो परिभाषा बनी है, उसे लेकर जबरदस्त विवाद छिड़ा है और आरोप-प्रत्यारोपों के दौर चल रहे हैं। भाजपा आरोप लगा रही है कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत जो #सेव अरावली’ कैंपेन चला रहे हैं, उन्हीं के कार्यकाल में अरावली 100 मीटर की परिभाषा की सिफारिश की गई थी।


 

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अरावली मुद्दे पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत - फोटो : अमर उजाला

गहलोत ने परिभाषा को लेकर अब तक क्या कहा?
पूर्व सीएम अशोक गहलोत का कहना है कि उनकी सरकार ने रोजगार के दृष्टिकोण से '100 मीटर' की परिभाषा की सिफारिश की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। हमारी सरकार ने न्यायपालिका के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) से मैपिंग करवाई। सवाल यह है कि जो परिभाषा सुप्रीम कोर्ट में 14 साल पहले 2010 में ही 'खारिज' हो चुकी थी, उसी परिभाषा का 2024 में राजस्थान की मौजूदा भाजपा सरकार ने समर्थन करते हुए केंद्र सरकार की समिति से सिफारिश क्यों की? क्या यह किसी का दबाव था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है?


 

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अरावली मुद्दे पर भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ - फोटो : अमर उजाला

भाजपा की तरफ से पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र राठौड़ क्या बोले?
भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि 100 मीटर के मानदंड को लेकर भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। यह मानदंड केवल ऊंचाई तक सीमित नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत परिभाषा के अनुसार 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ियों, उनकी ढलानों और दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के क्षेत्र में आने वाली सभी भू-आकृतियां खनन पट्टे से पूरी तरह बाहर रखी गई हैं, चाहे उनकी ऊंचाई कुछ भी हो। उन्होंने इसे पहले से अधिक सख्त और वैज्ञानिक व्यवस्था बताया। सर्वे ऑफ इंडिया की कमेटी की परिभाषा लागू होने पर अरावली क्षेत्र में खनन बढ़ने के बजाय और अधिक सख्ती आएगी।

यह भी पढ़ें- अरावली पर सियासी घमासान: ‘90 प्रतिशत खत्म होने का दावा भ्रामक’, अशोक गहलोत पर यह क्या बोल गए राजेंद्र राठौड़?
 

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अरावली पर्वतमाला - फोटो : अमर उजाला

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के हवाले से परिभाषा
अरावली पहाड़ (Hills): कोई भी भू-आकृति जो स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची है। इसमें पहाड़ की ढलान और उससे जुड़े क्षेत्र भी शामिल हैं।
अरावली पर्वतमाला (Range): यदि दो या दो से अधिक 'अरावली पहाड़' एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हैं, तो उन्हें एक 'पर्वतमाला' माना जाएगा। इनके बीच की खाली जगह (घाटी या छोटे टीले) को भी संरक्षण प्राप्त होगा।
 

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अरावली पर्वत शृंखला। - फोटो : अमर उजाला
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 2010 से 2025 के दौरान 100 मीटर के सच में क्या बदल गया जिसे लेकर इतना बड़ा घमासान छिड़ गया है। दरअसल, यह सारा किस्सा इन दो रिपोर्ट्स में बदले गए एक शब्द को लेकर है। वर्ष 2008 की जीएसआई की रिपोर्ट में एक शब्द काम में लिया गया था- पॉलिगोन लाइन। इसे 2025 की रिपोर्ट में बदलकर कंटूर कर दिया गया।




 
 
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