Why Offer Aarghya Setting Surya in Chhath Puja: छठ महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और यह चार दिन तक चलता है। इस साल छठ पूजा 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू हुई और 28 अक्टूबर को समाप्त होगी। पहले दिन व्रती स्नान करके अपने घर को शुद्ध करते हैं और शुद्ध हृदय से भोजन ग्रहण करते हैं, जबकि दूसरे दिन खरना व्रतियों के लिए विशेष अनुष्ठान होता है।
Sandhya Arghya 2025: अस्ताचलगामी सूर्य को क्यों देते हैं अर्घ्यदान? जानें धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं
Sandhya Arghya 2025: छठ पूजा एक ऐसा अनोखा पर्व है जिसमें उगते और डूबते दोनों सूर्य को अर्घ्य देकर प्रकृति और जीवन के संतुलन का सम्मान किया जाता है। यह पर्व कृतज्ञता, श्रद्धा और ऊर्जा के द्विपक्षीय स्वरूप की पूजा का प्रतीक है।
सूर्य सफलता, नेतृत्व और यश के कारक
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व्यक्ति की सफलता, स्वास्थ्य, नेतृत्व क्षमता और यश का प्रतिनिधि ग्रह है। यदि कुंडली में सूर्य ऊँच स्थान पर हो, तो यह जातक को दौलत, ख्याति और जीवन में सफलता दिलाता है। सूर्य को अर्घ्य देने से उसकी कुंडली में शक्ति बढ़ती है। हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना विशेष रूप से शुभ माना गया है। वहीं, डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की सामान्यतः मनाही होती है।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष समय
साल में केवल छठ पर्व ऐसा अवसर है जब डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। यह पर्व संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और जीवन में खुशहाली के लिए मनाया जाता है। छठ महापर्व में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है और 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की मान्यता
छठ के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना कहा जाता है। मान्यता है कि इस समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
अर्घ्य देने के लाभ
छठ पर्व में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और शारीरिक समस्याएं दूर होती हैं। इससे जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है। अगले दिन, यानी छठ पर्व के समापन पर, उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने से यश, आत्मविश्वास, अच्छी सेहत और समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन अर्घ्य देने के बाद ही 36 घंटे का निर्जला व्रत पूरा किया जाता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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