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Chhath Puja Vrat Katha: सूर्यदेव की आराधना से कैसे मिला द्रौपदी को राज्यलक्ष्मी का वरदान,पढ़ें यह व्रत कथा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 26 Oct 2025 08:53 PM IST
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सार

Story Behind Chhathi Maiya Puja: छठ पूजा सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना का पवित्र पर्व है, जिसमें भक्त 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इस दिन छठ पूजा व्रत कथा का पाठ करने से व्रती को पूर्ण फल मिलता है और छठी मैया का आशीर्वाद सुख, समृद्धि व संतोष से जीवन को भर देता है।

Chhath Puja Vrat Katha Story Significance and Rituals Explained in Hindi
छठ पूजा व्रत कथा - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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Chhath Puja Vrat Katha: भारत के प्रमुख पर्वों में से एक छठ पूजा आस्था, श्रद्धा और सूर्य उपासना का अनुपम संगम है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है, जिसमें भक्तजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं। यह कठिन तप न केवल शरीर की परीक्षा लेता है बल्कि आत्मा की दृढ़ता और भक्ति की भी मिसाल पेश करता है। इस दौरान भक्त नदी या तालाब के किनारे सूर्य देव को अर्घ्य देकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देते हैं।


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षष्ठी तिथि के दिन जब सूर्य अस्त होता है, तब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत पूर्ण किया जाता है। इस अवसर पर विधि-विधान से पूजा कर छठी मैया की कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से व्रती को व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और छठी मैया का आशीर्वाद जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि लेकर आता है। आइए जानते हैं, छठ पूजा व्रत की पौराणिक कथा और इसके पीछे की आस्था से जुड़ी दिव्य कहानी।
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छठ पूजा व्रत कथा

छठ पूजा व्रत कथा 
महाभारत काल में जब पांडवों को दुर्योधन और उसके भाइयों ने छलपूर्वक जुए में पराजित कर दिया, तब उन्हें वनवास भोगना पड़ा। वन में रहकर युधिष्ठिर सहित सभी पांडव अत्यंत दुखी और चिंतित रहने लगे। उनके साथ द्रौपदी भी हर कठिन परिस्थिति में धर्म का पालन करते हुए वनवास में गईं। एक दिन जब अनेक तपस्वी ऋषि उनके आश्रम में आए, तब युधिष्ठिर इस चिंता में पड़ गए कि इतने महात्माओं के लिए भोजन का प्रबंध कैसे किया जाए।
राजा की चिंता देखकर द्रौपदी व्याकुल हो उठीं और उन्होंने अपने गुरु महाराज धौम्य से प्रार्थना की,  “हे आचार्य! कोई ऐसा व्रत बताइए जिससे मेरे पतियों का दुःख दूर हो, उन्हें राज्यलक्ष्मी प्राप्त हो और हमारे घर में सुख-समृद्धि लौट आए।” द्रौपदी की विनती सुनकर धौम्यजी ने कहा, “हे पाञ्चालकन्या! मैं तुम्हें एक उत्तम व्रत बताता हूँ, जो पूर्वकाल में नागकन्या के उपदेश से सुकन्या नामक स्त्री ने किया था। यह व्रत है ‘रवि षष्ठी व्रत’, जिसे आज छठ पूजा के नाम से जाना जाता है। इस व्रत से सभी संकट दूर होते हैं और मनोवांछित फल मिलता है।”

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सुकन्या और च्यवन ऋषि की कथा

सुकन्या और च्यवन ऋषि की कथा
सत्ययुग में शर्याति नामक राजा की एकमात्र पुत्री सुकन्या थी। एक बार राजा शिकार पर गए और सुकन्या अपनी सखियों के साथ वन में घूमते हुए च्यवन ऋषि के आश्रम पहुँची। अज्ञानवश सुकन्या ने मिट्टी में ढके च्यवन ऋषि के नेत्रों में कांटे चुभो दिए, जिससे वे अंधे हो गए। इसके परिणामस्वरूप पूरे राज्य में मल-मूत्र रुक गया और लोग पीड़ा से तड़पने लगे।
जब राजा ने यह जाना कि उनकी पुत्री से यह गलती हुई है, तो उन्होंने क्षमायाचना करते हुए अपनी कन्या सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि से कर दिया। सुकन्या ने ऋषि की सेवा में तन-मन से स्वयं को समर्पित कर दिया। एक दिन जब वह जल भरने गई, तो उसने एक सुंदर नागकन्या को सूर्यदेव की पूजा करते हुए देखा।

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सुकन्या और च्यवन ऋषि की कथा - फोटो : Amar Ujala

छठ व्रत की विधि और महत्व
सुकन्या ने नागकन्या से पूछा कि यह कौन-सा व्रत है? नागकन्या ने बताया, “यह रवि षष्ठी व्रत है, जो कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किया जाता है। इस व्रत में पंचमी के दिन व्रत की तैयारी कर शाम को केवल खीर का सेवन किया जाता है और अगले दिन निर्जल उपवास रखा जाता है। छठ के दिन सूर्यदेव की विशेष पूजा की जाती है, मंडप सजाया जाता है, फल-फूल और पकवानों का भोग लगाया जाता है तथा सूर्यास्त के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है।” नागकन्या ने कहा , “जो स्त्री या पुरुष यह व्रत श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है। सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।”

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सुकन्या और च्यवन ऋषि की कथा - फोटो : Amar Ujala

व्रत का फल
नागकन्या के बताए अनुसार सुकन्या ने रवि षष्ठी व्रत किया। व्रत की शक्ति से च्यवन ऋषि के नेत्र फिर से ठीक हो गए और वे स्वस्थ एवं प्रसन्न रहने लगे। इसी प्रकार धौम्यजी के उपदेश से द्रौपदी ने भी यह व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडवों को राज्य और वैभव पुनः प्राप्त हुआ। जो भी स्त्री श्रद्धा और भक्ति से छठ पूजा व्रत कथा का पाठ करती है या सुनती है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख, संतान, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठी मैया और सूर्यदेव की कृपा से भक्त के जीवन में उजाला और सौभाग्य का संचार होता है।



डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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