Jalandhar Vrinda And Tulsi Real Story: हिंदू धर्म में तुलसी को अत्यंत पवित्र और पूजनीय पौधा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस घर में तुलसी का वास होता है, वहां यमराज के दूत भी प्रवेश नहीं करते। तुलसी की पूजा को गंगा स्नान के समान पुण्यकारी माना गया है और इसे घर में रखने से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। मृत्यु के समय किसी व्यक्ति के मुख में तुलसी और गंगाजल देने से उसके सभी पापों का नाश होकर वह वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।
Tulsi Vivah 2025 Katha: छल, श्राप और विवाह, जानें क्यों वृंदा ने विष्णु जी को बना दिया शिला, पढ़ें पौराणिक कथा
Tulsi Vivah Ki Asli Katha: तुलसी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है और इसे घर में रखने से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। हर साल 2 नवंबर को तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से आयोजित होता है।
महाबली जलंधर और तुलसी कथा
श्रीमद् देवीभागवत पुराण के अनुसार, एक समय भगवान शिव ने अपना तेज़ (अंश) समुद्र में प्रवाहित किया। इस तेज़ से एक बालक का जन्म हुआ, जो बड़ा होकर जलंधर नामक महाबली और पराक्रमी दैत्यराज बना। जलंधर की राजधानी का नाम जलंधर नगरी था। जलंधर अपने बल और अहंकार के कारण देवताओं और सम्पूर्ण सृष्टि पर अत्याचार करने लगा। उसने सत्ता के गर्व में चूर होकर पहले माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा से युद्ध किया और फिर देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर आ गया। लेकिन देवी पार्वती ने योगबल से तुरंत उसे पहचान लिया और अंतर्ध्यान हो गई। क्रुद्ध पार्वती ने इस घटना की जानकारी भगवान विष्णु को दी।
जलंधर की शक्ति का रहस्य
जलंधर की शक्ति का स्रोत उसकी पत्नी वृंदा थी। वृंदा अत्यंत धर्मनिष्ठ और पतिव्रता स्त्री थी। उसका सतीत्व इतना प्रबल था कि जलंधर न तो युद्ध में मारा जा सकता था और न ही पराजित। देवताओं और सृष्टि के लिए इसे मारना असंभव था।
भगवान विष्णु का छल
सृष्टि को जलंधर के आतंक से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने एक मायावी ऋषि का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुँचे। वहाँ भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें ऋषि ने तुरंत भस्म कर दिया। वृंदा ने युद्ध में जलंधर के हाल पूछे। ऋषि ने अपनी माया से दो वानरों का रूप दिखाया, जिनके हाथों में जलंधर का सिर और धड़ था। वृंदा यह देखकर मूर्छित हो गई। होश में आने पर वृंदा ने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का धड़ और सिर जोड़कर स्वयं उस शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा ने भगवान विष्णु को जलंधर समझकर पतिव्रता के रूप में सेवा की, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। सतीत्व भंग होते ही जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और देवताओं ने उसे मार डाला।
वृंदा का श्राप और तुलसी का जन्म
जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला, तो वह क्रोधित हो उठी। उसने दुखी होकर भगवान विष्णु को पत्थर (पाषाण) बनने का श्राप दे दिया और स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा ने आत्मदाह किया, वहाँ तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप धारण किया और वृंदा को वरदान दिया कि वह अब तुलसी के रूप में सदा उनके साथ रहेगी। भगवान विष्णु ने कहा, "हे वृंदा! तुम्हारा सतीत्व मुझे माता लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय है। अब जो मनुष्य तुम्हारा विवाह मेरे शालिग्राम रूप के साथ करेगा, उसे इस लोक और परलोक में महान यश और धन मिलेगा।" तब से हर वर्ष तुलसी विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से आयोजित किया जाता है। इसे करने से घर में सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और धार्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

कमेंट
कमेंट X