Long Sindoor From Nose to Forehead: छठ पूजा एक ऐसा पवित्र पर्व है जो संतान की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सूर्य और प्रकृति की उपासना का पर्व भी है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं और पूरे सोलह श्रृंगार के साथ पूजा करती हैं।
Chhath Puja Sindoor Ritual: छठ पर नाक तक सिंदूर क्यों लगाती हैं महिलाएं? जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
Why Women Apply Sindoor From Nose To Forehead: छठ पूजा में व्रती महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दौरान नाक से माथे तक लंबा सिंदूर लगाने की परंपरा है, जो सुहाग और परिवार की सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
लंबा सिंदूर सुखी दांपत्य और पति की लंबी उम्र का प्रतीक
छठ पूजा के दौरान सुहागिन महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर भरती हैं। इसे पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान महिलाएं लाल की बजाय नारंगी रंग का सिंदूर लगाती हैं। इसका कारण यह है कि नारंगी रंग सूर्य का प्रतीक है और छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है। इसलिए नारंगी सिंदूर लगाने से सूर्य की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही यह माना जाता है कि सुहागिन महिला का जितना लंबा सिंदूर होगा, उसका दांपत्य जीवन उतना ही लंबा और सुखी होगा।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा में वीरवान नामक युवक और धीरमति नामक युवती की कहानी है। वीरवान बहादुर और जंगल में शिकार करने में माहिर था। उसने धीरमति को जंगली जानवरों से बचाया और दोनों साथ रहने लगे। इसी दौरान कालू नामक व्यक्ति ने वीरवान पर हमला किया। धीरमति ने बहादुरी दिखाते हुए कालू को हराया। युद्ध के दौरान उसके खून से सने हाथ माथे और ललाट पर रंग गए। तभी से सिंदूर को वीरता, प्रेम और सम्मान का प्रतीक माना जाने लगा। छठ पर नाक तक सिंदूर लगाने का अर्थ भी पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से जोड़ा जाता है।
महाभारत में द्रौपदी का उदाहरण
महाभारत काल में द्रौपदी ने भी लंबे सिंदूर का इस्तेमाल किया। जब पांडव जुए में हार गए और दुशासन उसे लेने आया, तब द्रौपदी ने जल्दी में पूरी सिंदूरदानी अपने माथे और नाक तक खुद पर डाल ली। इससे उसका पूरा ललाट और माथा सिंदूर से भर गया। माना जाता है कि सहागिन महिला अपने पति के सामने बिना सिंदूर के नहीं जाती, इसलिए द्रौपदी ने यह किया। इसके बाद महाभारत युद्ध तक वह लंबे सिंदूर के साथ रहती रही।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
नाक से माथे तक का क्षेत्र ‘अजना चक्र’ से जुड़ा होता है। इसे सक्रिय करने से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है। लंबे सिंदूर से यह चक्र सक्रिय होता है, जिससे महिलाओं को मानसिक शांति और सकारात्मकता मिलती है। इसे पहनने से न केवल धार्मिक मान्यता पूरी होती है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास में भी मदद मिलती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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