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Jivitputrika Vrat 2025: कब है जितिया व्रत? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: ज्योति मेहरा Updated Fri, 12 Sep 2025 11:40 AM IST
सार

हर साल आश्विन मास की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए उपवास रखती हैं। आइए जानते हैं इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत किस दिन रखा जाएगा। 

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Jivitputrika Vrat 2025 Kab Hai jitiya 2025 date and time puja vidhi and katha
Jitiya 2024 Vrat - फोटो : Amar Ujala

Jivitputrika Vrat 2025 Kab Hai: हिंदू धर्म में संतान की सुरक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन के लिए माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत रखती है। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत आश्विन मास की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए उपवास रखा जाता है। इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है। दरअसल, यह व्रत तीन दिनों तक चलता है और इसमें नहाय-खाय से लेकर निर्जल उपवास और पारण तक की परंपरा निभाई जाती है।

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व्रत का समय और शुभ मुहूर्त - फोटो : freepik

व्रत का समय और शुभ मुहूर्त
यह पर्व पूर्वी भारत के कई राज्यों जैसे बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। वर्ष 2025 में इसका आरंभ 13 सितंबर को नहाय-खाय के साथ होगा। इसके बाद 14 सितंबर को महिलाएं पूरे विधि-विधान से जीवित्पुत्रिका व्रत रखेंगी और अगले दिन यानी 15 सितंबर को व्रत का पारण कर व्रत संपन्न किया जाएगा।

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व्रत की पौराणिक कथा - फोटो : अमर उजाला

व्रत की पौराणिक कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है कि इस व्रत की शुरुआत कलियुग में हुई थी। कथा के अनुसार जीमूतवाहन नामक एक राजा ने एक स्त्री के पुत्र को बचाने के लिए स्वयं को गरुड़ देव के भोजन के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उनकी यह निःस्वार्थ भावना देखकर गरुड़ प्रसन्न हो गए और उन्हें वैकुंठ जाने का आशीर्वाद दिया। साथ ही उन्होंने अन्य बच्चों को भी पुनर्जीवित कर दिया। तभी से यह परंपरा प्रारंभ हुई कि माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए जीमूतवाहन देवता की आराधना करते हुए यह उपवास रखती हैं।

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जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि - फोटो : freepik
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि
  • इस व्रत से एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा निभाई जाती है। इस दिन महिलाएं सात्विक भोजन बनाकर पितरों और पक्षियों को अर्पित करती हैं।
  • व्रत के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके महिलाएं निर्जल उपवास का संकल्प लेती हैं।
  • पूजा के लिए घर के स्वच्छ स्थान पर गोबर और मिट्टी से लिपाई कर एक छोटा तालाब बनाया जाता है। उसमें कुशा से भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
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जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि - फोटो : freepik
  • इसके साथ ही चील और सियारिन की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है।
  • व्रत कथा का श्रवण या पाठ करने के बाद अगले दिन पारण कर व्रत पूरा किया जाता है। 
  • इस समय भगवान जीमूतवाहन से संतान की लंबी उम्र और कल्याण की कामना की जाती है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
 
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