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Lohri 2025: 13 या 14 जनवरी किस दिन मनाई जाएगी लोहड़ी? यहां जानें सही तिथि और महत्व
धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Wed, 01 Jan 2025 07:50 AM IST
सार
लोहड़ी का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कृषि समाज की मेहनत, एकता और खुशहाली का भी उत्सव है। ऐसे में आइए जानते हैं कि लोहड़ की पर्व इस साल किस दिन मनाया जाएगा।
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लोहड़ी 2025 तिथि
- फोटो : Amar Ujala
Lohri 2025 Date: लोहड़ी का पर्व मुख्य तौर पर उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है और इसे सर्दियों के अंत और रबी की फसल की कटाई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लोहड़ी का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कृषि समाज की मेहनत, एकता और खुशहाली का भी उत्सव है। हालांकि साल 2025 में लोहड़ी किस दिन मनाई जाएगी इस बात को लेकर लोगों के मन में कुछ आशंका है। ऐसे में आइए जानते हैं कि लोहड़ की पर्व इस साल किस दिन मनाया जाएगा।
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Lohri
- फोटो : adobe stock
लोहड़ी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
लोहड़ी का पर्व भगवान सूर्य और अग्नि देव को समर्पित होता है। इस दिन किसान अपनी मेहनत और फसल की सफलता के लिए भगवान सूर्य और अग्नि देव को धन्यवाद प्रकट करते हैं। माना जाता है कि अग्नि में नई फसल, तिल, गुड़, मूंगफली और रेवड़ी अर्पित करने से वह प्रसाद देवताओं तक पहुंचता है। यह पर्व नई फसल के आगमन के स्वागत का प्रतीक है। इस दिन किसानों की मेहनत का जश्न मनाया जाता है।
लोहड़ी का पर्व भगवान सूर्य और अग्नि देव को समर्पित होता है। इस दिन किसान अपनी मेहनत और फसल की सफलता के लिए भगवान सूर्य और अग्नि देव को धन्यवाद प्रकट करते हैं। माना जाता है कि अग्नि में नई फसल, तिल, गुड़, मूंगफली और रेवड़ी अर्पित करने से वह प्रसाद देवताओं तक पहुंचता है। यह पर्व नई फसल के आगमन के स्वागत का प्रतीक है। इस दिन किसानों की मेहनत का जश्न मनाया जाता है।
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- फोटो : adobe stock
लोहड़ी से जुड़ी पौराणिक कथा
लोहड़ी का पर्व पौराणिक गाथाओं से भी जुड़ा माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार दुल्ला भट्टी नामक व्यक्ति, जो मुगल काल में पंजाब का नायक था, ने कई लड़कियों को गुलामी से मुक्त करवाकर उनकी शादी करवाई थी। इसलिए लोहड़ी के गीतों में दुल्ला भट्टी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है।
लोहड़ी का पर्व पौराणिक गाथाओं से भी जुड़ा माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार दुल्ला भट्टी नामक व्यक्ति, जो मुगल काल में पंजाब का नायक था, ने कई लड़कियों को गुलामी से मुक्त करवाकर उनकी शादी करवाई थी। इसलिए लोहड़ी के गीतों में दुल्ला भट्टी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है।
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रीति-रिवाज और परंपराएं
लोहड़ी के पर्व पर लोग रात को खुले मैदान में लकड़ी, उपलों और फसलों के अवशेषों से एक अलाव जलाते हैं। यह अलाव लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण होता है। लोग अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर उसकी परिक्रमा भी करते हैं और आग में तिल, गुड़, मूंगफली, और रेवड़ी अर्पित करते हैं। माना जाता है कि अग्नि देवता को प्रसाद चढ़ाने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
लोहड़ी के पर्व पर लोग रात को खुले मैदान में लकड़ी, उपलों और फसलों के अवशेषों से एक अलाव जलाते हैं। यह अलाव लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण होता है। लोग अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर उसकी परिक्रमा भी करते हैं और आग में तिल, गुड़, मूंगफली, और रेवड़ी अर्पित करते हैं। माना जाता है कि अग्नि देवता को प्रसाद चढ़ाने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
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लोहड़ी और पतंगबाजी का रिश्ता
लोहड़ी के दिन पतंगबाजी का भी विशेष महत्व है। युवा और बच्चे इस दिन आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाकर अपनी खुशी मनाते हैं। पतंग उड़ाना इस पर्व की खुशी और उमंग को दोगुना कर देता है। लोहड़ी का त्योहार केवल एक सांस्कृतिक उत्सव ही नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, मेहनत और सामूहिकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि मेहनत, एकता और आस्था के साथ जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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