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श्री गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व: किरपाण से मुगलों के होश उड़ाए तब त्याग मल से गुरु तेग बहादुर कहलाए

सुरिंदर पाल, अमर उजाला, जालंधर (पंजाब) Published by: निवेदिता वर्मा Updated Sun, 24 Apr 2022 12:32 PM IST
सार

कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर साहिब को औरंगजेब की हुकूमत द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन और अपनी तकलीफों की कहानी सुनाई। तब गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया था कि एक महापुरुष के बलिदान से हुकूमत के अत्याचार खत्म हो जाएंगे।

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Shri guru Tegh Bahadur became the Hind ki Chadar by making sacrifices for Kashmiri Pandits
गुरुद्वारा शीशगंज साहिब। - फोटो : twitter
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विस्तार
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गुरु हरगोबिंद साहिब मुगलों के साथ करतारपुर की लड़ाई के बाद जब कीरतपुर जा रहे थे, तब फगवाड़ा के पास पलाही गांव में मुगलों की फौज की एक टुकड़ी ने हमला कर दिया। युद्ध में पिता गुरु हरगोबिंद साहिब के साथ उन्होंने तेग (किरपाण) का ऐसा कमाल दिखाया कि उनका नाम ही त्याग मल से तेग बहादुर हो गया। यही गुरु तेग बहादुर कश्मीरी पंडितों के लिए बलिदान देकर हिंद की चादर बन गए। 

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तेग बहादुर के भाई बुद्ध ने उन्हें घुड़सवारी और तीरंदाजी में प्रशिक्षित किया था। गुरु साहिब की रचनाओं में 116 शब्द और 15 राग शामिल हैं। गुरु तेग बहादुर जी सिखों के दसवें गुरु श्री गुरुगोबिंद सिंह के पिता भी हैं। एसजीपीसी की किताब ‘सिख इतिहास’ रोंगटे खड़ी कर देने वाली है, जिसमें श्री गुरु तेग बहादुर व उनके सेवादारों की हत्या का विवरण विस्तार से लिखा है। श्री गुरु तेग बहादुर जी को जब पकड़कर लाया गया तो उनके सामने उनको मारे जाने से पहले तीन शर्तें रखी गई थीं - कलमा पढ़कर मुसलमान बनने की, चमत्कार दिखाने की या फिर मौत स्वीकार करने की। श्री गुरु तेग बहादुर ने शांति से उत्तर दिया था, हम न ही अपना धर्म छोड़ेंगे और न ही चमत्कार दिखाएंगे, आपने जो करना है कर लो, हम तैयार हैं। 

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भयानक यातनाएं दी गई थीं

सिख इतिहास के मुताबिक, भाई दयाला, भाई मति दास और भाई सती दास को पहले गुरु जी के साथ काबू करके उन्हें प्रताड़ित किया गया। गुरु तेग बहादुर साहब की आंखों के सामने भाई मती दास जी को आरी से दो भागों में काटा गया, फिर भाई दयाला जी को कड़ाही के उबलते पानी में डालकर उबाला गया। भाई सती दास जी को रुई में लपेट कर आग लगा दी। सैयद जलालुद्दीन जल्लाद ने अपनी तलवार खींची और गुरु जी का सिर तलवार से अलग कर दिया, उनका सिर काटकर जहां डाला गया, वहां शीशगंज गुरुद्वारा साहिब है।


इतिहास साक्षी है कि सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब जी का स्वर्गवास हुआ तो उसके बाद मार्च 1665 को गुरु तेग बहादुर साहिब अमृतसर के नजदीक कस्बा बकाला में गुरु की गद्दी पर बैठे और सिखों के 9वें गुरु बने। औरंगजेब के शासनकाल में जबरन धर्म परिवर्तन का अभियान तेजी से चला और अत्याचार बढ़ गया था। कश्मीर के मटन निवासी पंडित कृपा राम के नेतृत्व में संकटग्रस्त कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल श्री आनंदपुर साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण में पहुंचा। 

बेटे के अनुरोध ने किया था कुर्बानी के लिए प्रेरित

पंडितों ने गुरु तेग बहादुर साहिब को औरंगजेब की हुकूमत द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन और अपनी तकलीफों की कहानी सुनाई। तब गुरु तेग बहादुर ने उत्तर दिया था कि एक महापुरुष के बलिदान से हुकूमत के अत्याचार खत्म हो जाएंगे। उनके पुत्र बालक गोबिंद राय (जो गुरु पद प्राप्त कर खालसा पंथ की स्थापना के बाद गुरु गोबिंद सिंह बने) ने सहज ही अपने पिता के आगे हाथ जोड़ कर अनुरोध किया कि पिता जी आपसे अधिक सत पुरुष और महात्मा कौन हो सकता है? श्री तेग बहादुर जी भी यही सोच रहे थे। उनके बेटे के विचारों ने उन्हें कुर्बानी के लिए प्रेरित किया। कश्मीरी पंडितों ने गुरु गोबिंद सिंह से कहा कि पिता बलिदान दे देंगे तो आप अनाथ हो जाएंगे। उन्होंने जवाब दिया कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती हैं, तो मुझे यह स्वीकार है।

गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को औरंगजेब को संदेश भेजने के लिए कहा था कि अगर गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म अपना लिया तो पंडित भी इस्लाम कबूल कर लेंगे। 11 जुलाई 1675 को वे पांच सिखों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हुए। औरंगजेब के कहने पर गुरु साहिब और कुछ सिखों को मुगलों ने रास्ते में ही पकड़ लिया और दिल्ली ले आए। उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया लेकिन जब गुरु साहिब ने उनकी बात नहीं स्वीकार की तो सरकार ने दमन का सहारा लिया और उन पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। सिख इतिहास के अनुसार, दिल्ली में लाल किले के सामने जहां आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब स्थित है, वहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का सिर शरीर से अलग कर दिया गया था।

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