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Jaipur New: सनातन और जैन परंपरा का संगम, महंत कमलेशजी महाराज और मुनि सुंदर सागरजी ने दिया एकता का संदेश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जयपुर Published by: जयपुर ब्यूरो Updated Mon, 17 Nov 2025 12:44 PM IST
सार

जैन और सनातन परंपरा के दो महान संतों का मिलन भक्तों के लिए प्रेरणा का मजबूत संदेश बन गया। पशुपतिनाथ मंदिर के महंत कमलेशजी महाराज और जैन मुनि श्रमणाचार्य सुंदर सागरजी महाराज के मिलन ने आध्यात्मिक एकता और धार्मिक सौहार्द्र की नई मिसाल कायम की।

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Jaipur News: Mahant Kamleshji Maharaj and Muni Sundar Sagarji unite to give a message of harmony
सांगानेर में कमलेश महाराज–जैन मुनि सुंदर सागर का सौहार्द मिलन
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विस्तार
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सांगानेर के गायत्री भवन में रविवार को आध्यात्मिकता, सद्भाव और धार्मिक एकता का अनुपम दृश्य देखने को मिला जब पशुपतिनाथ मंदिर के महंत कमलेशजी महाराज और जैन मुनि श्रमणाचार्य सुंदर सागर जी महाराज का सौहार्द्रपूर्ण मिलन हुआ। इस मौके पर जैन और सनातन धर्म के सैकड़ों अनुयायी उपस्थित थे।
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महंत कमलेशजी महाराज ने सभा में कहा कि सनातन की विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी संत समुदाय की है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी संत–समुदाय एक मंच पर आएं और सनातन के मूल्यों को युवा पीढ़ी के बीच पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि संत किसी भी समुदाय के हों, उनका दायित्व है कि वे समाज को एकजुट रखें। दुनिया मान चुकी है कि देश को एकजुट रखने में सनातन की भूमिका महत्वपूर्ण है।
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कमलेश महाराज ने यह भी कहा कि लगातार बढ़ते धर्म विरोधी प्रभावों के बीच संतों की एकता ही वह शक्ति है, जो आगामी पीढ़ी को सही दिशा दे सकती है। उन्होंने युवा वर्ग को सनातन की परंपराओं, मूल्य, विश्वास और आध्यात्मिक समाधान से जोड़ने की जरूरत पर जोर दिया।

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वहीं जैन मुनि श्रमणाचार्य सुंदर सागरजी महाराज ने महंत कमलेश महाराज के साथ इस मिलन को अद्भुत और आत्मिक क्षण बताया। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व आज भारत को समाधान के रूप में देख रहा है क्योंकि भारतीय दर्शन ने हमेशा अहिंसा, परोपकार, पारिवारिक मूल्य और प्रेम को सर्वोच्च रखा। उन्होंने कहा कि आज समय है कि सभी धर्मों के संत एक साथ आएं। यदि हम आज नहीं जागे तो आने वाला समय हमारी परंपराओं की परीक्षा लेगा।

जैन मुनि ने कमलेश महाराज की वर्षों से नि:स्वार्थ सेवा की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे संत समाज के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने इस मिलन को शबरी की प्रतीक्षा पूरी होने जैसा बताया।

कार्यक्रम के अंत में दोनों संतों ने प्रेम, अहिंसा, सद्भाव और राष्ट्रहित को सबसे ऊपर रखते हुए समाज से आपसी भेदभाव छोड़कर सम्मान और एकता बढ़ाने की अपील की। भक्तों ने जैन और सनातन धर्म के इस अद्भुत संगम को प्रेरणादायक क्षण बताया।

 

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