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Tonk News: खजूर की खेती में नया अध्याय, डॉ. प्रभुलाल सैनी की किस्मों को केंद्र सरकार की मान्यता
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, टोंक
Published by: टोंक ब्यूरो
Updated Sun, 28 Dec 2025 11:32 AM IST
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सार
टोंक जिले के आंवा निवासी पूर्व कृषि मंत्री और प्रगतिशील किसान डॉ. प्रभुलाल सैनी ने कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। उनके द्वारा विकसित खजूर की तीन नई किस्मों एसटी-1, एसटी-2 और एसटी-3 को भारत सरकार के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने पंजीकृत कर प्रमाण-पत्र जारी किए हैं।
टोंक के डॉ. प्रभुलाल सैनी ने रचा इतिहास
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
पूर्व कृषि मंत्री एवं प्रगतिशील किसान डॉ. प्रभुलाल सैनी ने कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए जिले, प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है। टोंक जिले के आंवा निवासी डॉ. सैनी द्वारा विकसित खजूर की तीन नई किस्मों को भारत सरकार से पेटेंट (पंजीकरण) मिल गया है। भारत सरकार के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवी एंड एफआरए), नई दिल्ली ने डॉ. प्रभुलाल सैनी की ओर से विकसित खजूर की तीन विशिष्ट कृषक किस्मों एसटी-1, एसटी-2 और एसटी-3 को आधिकारिक रूप से पंजीकृत कर उनके प्रमाण-पत्र जारी किए हैं। प्राधिकरण के वैज्ञानिक डॉ. डी.एस. पिलानिया द्वारा जारी सूचना के अनुसार, इन तीनों किस्मों के पंजीकरण की सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।
जारी प्रमाण-पत्र के अनुसार, इन खजूर की किस्मों का संरक्षण प्रमाण-पत्र जारी होने की तिथि 4 दिसंबर 2025 से आगामी 18 वर्षों तक मान्य रहेगा। इस दौरान इन किस्मों के संरक्षण और अधिकार पूरी तरह डॉ. सैनी के पास सुरक्षित रहेंगे। इस महत्वपूर्ण सफलता के पीछे डॉ. प्रभुलाल सैनी का वर्षों का शोध, परिश्रम और वैज्ञानिक प्रयास जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि पेटेंट मिलने से पहले देश के ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिकों द्वारा इन किस्मों का लगभग पांच वर्षों तक गहन परीक्षण और अनुसंधान किया गया। पंजीकरण की यह कानूनी प्रक्रिया 16 सितंबर 2021 को आवेदन दाखिल करने के साथ शुरू हुई थी, जिसमें विभिन्न विशिष्ट लक्षणों, गुणवत्ता और शुद्धता की जांच के बाद अब अंतिम स्वीकृति प्रदान की गई है।
पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत मिली इस मान्यता के बाद अब इन विशेष खजूर की किस्मों के उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण के साथ-साथ आयात और निर्यात का अनन्य अधिकार डॉ. प्रभुलाल सैनी के पास रहेगा। डॉ. सैनी को मिली इस कानूनी मान्यता और अनुसंधान के सम्मान से न केवल उनकी मेहनत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, बल्कि इससे देश और प्रदेश के अन्य किसानों को भी नवीन कृषि प्रयोग और अनुसंधान के लिए बड़ी प्रेरणा मिलेगी। इस उपलब्धि से क्षेत्र के किसानों में हर्ष और उत्साह का माहौल है।
पढे़ं: देशभर के वेब जर्नलिस्ट जुटे बिहार में, डिजिटल और सोशल मीडिया की खूबी-चुनौतियों पर चर्चा हुई
डॉ. प्रभुलाल सैनी ने कहा कि यह सफलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “जय अनुसंधान” के नारे को सार्थक करती है। उन्होंने बताया कि इन किस्मों की सुरक्षा के लिए कीटरोधी परीक्षण और उत्पादन बढ़ाने को लेकर आगे भी अध्ययन जारी है। वर्तमान में इन खजूर की किस्मों की उत्पादन क्षमता प्रति पेड़ 50 से 100 किलो तक है, जिसे बढ़ाकर दो क्विंटल तक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
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जारी प्रमाण-पत्र के अनुसार, इन खजूर की किस्मों का संरक्षण प्रमाण-पत्र जारी होने की तिथि 4 दिसंबर 2025 से आगामी 18 वर्षों तक मान्य रहेगा। इस दौरान इन किस्मों के संरक्षण और अधिकार पूरी तरह डॉ. सैनी के पास सुरक्षित रहेंगे। इस महत्वपूर्ण सफलता के पीछे डॉ. प्रभुलाल सैनी का वर्षों का शोध, परिश्रम और वैज्ञानिक प्रयास जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि पेटेंट मिलने से पहले देश के ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिकों द्वारा इन किस्मों का लगभग पांच वर्षों तक गहन परीक्षण और अनुसंधान किया गया। पंजीकरण की यह कानूनी प्रक्रिया 16 सितंबर 2021 को आवेदन दाखिल करने के साथ शुरू हुई थी, जिसमें विभिन्न विशिष्ट लक्षणों, गुणवत्ता और शुद्धता की जांच के बाद अब अंतिम स्वीकृति प्रदान की गई है।
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पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत मिली इस मान्यता के बाद अब इन विशेष खजूर की किस्मों के उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण के साथ-साथ आयात और निर्यात का अनन्य अधिकार डॉ. प्रभुलाल सैनी के पास रहेगा। डॉ. सैनी को मिली इस कानूनी मान्यता और अनुसंधान के सम्मान से न केवल उनकी मेहनत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, बल्कि इससे देश और प्रदेश के अन्य किसानों को भी नवीन कृषि प्रयोग और अनुसंधान के लिए बड़ी प्रेरणा मिलेगी। इस उपलब्धि से क्षेत्र के किसानों में हर्ष और उत्साह का माहौल है।
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डॉ. प्रभुलाल सैनी ने कहा कि यह सफलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “जय अनुसंधान” के नारे को सार्थक करती है। उन्होंने बताया कि इन किस्मों की सुरक्षा के लिए कीटरोधी परीक्षण और उत्पादन बढ़ाने को लेकर आगे भी अध्ययन जारी है। वर्तमान में इन खजूर की किस्मों की उत्पादन क्षमता प्रति पेड़ 50 से 100 किलो तक है, जिसे बढ़ाकर दो क्विंटल तक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।