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Udaipur News: ईसा मसीह की जन्म कथा अब 3 मिलीमीटर में! इकबाल सक्का की सूक्ष्म कला ने बनाया क्रिसमस यादगार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उदयपुर
Published by: उदयपुर ब्यूरो
Updated Thu, 25 Dec 2025 02:58 PM IST
सार
उदयपुर के वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर डॉ. इक़बाल सक्का ने क्रिसमस थीम पर आधारित 9 बेहद सूक्ष्म कलाकृतियां बनाकर एक बार फिर अपनी अनोखी कला का लोहा मनवाया है।
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उदयपुर के इक़बाल सक्का ने रचा इतिहास
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
उदयपुर के वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर डॉ. इकबाल सक्का ने एक बार फिर अपनी अनोखी और बेमिसाल सूक्ष्म कला से सबको चौंका दिया है। उन्होंने क्रिसमस थीम पर आधारित कुल 9 अत्यंत सूक्ष्म कलाकृतियां तैयार की हैं, जिन्हें देखने के लिए लेंस की आवश्यकता पड़ती है। घास की टोकरी में रची गई यह अनोखी कला न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को भी बेहद बारीकी से दर्शाती है।
डॉ. सक्का ने घास की झोपड़ी की थीम पर मात्र 3 मिलीमीटर आकार की घास की टोकरी के भीतर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम (ईसा मसीह) के जन्म का प्रतीक स्थापित किया है। इसके साथ ही उन्होंने 1 सेंटीमीटर आकार का चांदी का चर्च, 3 मिलीमीटर साइज के क्रॉस, मछली, बेल, कांटों का ताज, मोमबत्ती और स्टार जैसी अत्यंत सूक्ष्म आकृतियां भी बनाई हैं। इन सभी प्रतीकों के माध्यम से उन्होंने क्रिसमस के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को बारीक कला के ज़रिए सजीव रूप में प्रस्तुत किया है।
डॉ. सक्का ने बताया कि इन सूक्ष्म कलाकृतियों को तैयार करने में 36 घंटे से अधिक का समय लगा। इस दौरान उन्हें लगातार अत्यधिक एकाग्रता, धैर्य और स्थिरता के साथ काम करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इतनी बारीक आकृतियों पर काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि जरा-सी चूक पूरी कला को नुकसान पहुंचा सकती है। डॉ. सक्का के नाम अब तक 121 वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं। उन्होंने बताया कि इन नई सूक्ष्म कलाकृतियों को हिंदुस्तान बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया गया था, जिसे जांच के बाद स्वीकार कर लिया गया। इसका आधिकारिक प्रमाणपत्र 11 दिसंबर को जारी किया गया है।
ये भी पढ़ें: Udaipur News: 30 करोड़ की ठगी केस में विक्रम भट्ट को झटका, उदयपुर कोर्ट ने दूसरी बार भी जमानत से किया इनकार
डॉ. सक्का ने कहा कि उनका उद्देश्य केवल रिकॉर्ड बनाना नहीं है, बल्कि उदयपुर और राजस्थान की समृद्ध कला-परंपरा को देश और विदेश में पहचान दिलाना भी है। इसी सोच के तहत वे अपनी इन अनोखी कलाकृतियों को आमजन के समक्ष प्रदर्शित करना चाहते हैं, ताकि लोग इस सूक्ष्म कला को नजदीक से देख सकें और इसकी बारीकियों को समझ सकें। उन्होंने जानकारी दी कि वे इन कलाकृतियों को उदयपुर के चेतक सर्कल स्थित 134 वर्ष पुराने शेफर्ड मेमोरियल चर्च में क्रिसमस डे के अवसर पर प्रदर्शित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने चर्च प्रशासन से संपर्क किया है और उम्मीद जताई है कि जल्द अनुमति मिलने पर आम लोग इस अद्भुत और दुर्लभ सूक्ष्म कला का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकेंगे।
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डॉ. सक्का ने घास की झोपड़ी की थीम पर मात्र 3 मिलीमीटर आकार की घास की टोकरी के भीतर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम (ईसा मसीह) के जन्म का प्रतीक स्थापित किया है। इसके साथ ही उन्होंने 1 सेंटीमीटर आकार का चांदी का चर्च, 3 मिलीमीटर साइज के क्रॉस, मछली, बेल, कांटों का ताज, मोमबत्ती और स्टार जैसी अत्यंत सूक्ष्म आकृतियां भी बनाई हैं। इन सभी प्रतीकों के माध्यम से उन्होंने क्रिसमस के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को बारीक कला के ज़रिए सजीव रूप में प्रस्तुत किया है।
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डॉ. सक्का ने बताया कि इन सूक्ष्म कलाकृतियों को तैयार करने में 36 घंटे से अधिक का समय लगा। इस दौरान उन्हें लगातार अत्यधिक एकाग्रता, धैर्य और स्थिरता के साथ काम करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इतनी बारीक आकृतियों पर काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि जरा-सी चूक पूरी कला को नुकसान पहुंचा सकती है। डॉ. सक्का के नाम अब तक 121 वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं। उन्होंने बताया कि इन नई सूक्ष्म कलाकृतियों को हिंदुस्तान बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए आवेदन किया गया था, जिसे जांच के बाद स्वीकार कर लिया गया। इसका आधिकारिक प्रमाणपत्र 11 दिसंबर को जारी किया गया है।
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डॉ. सक्का ने कहा कि उनका उद्देश्य केवल रिकॉर्ड बनाना नहीं है, बल्कि उदयपुर और राजस्थान की समृद्ध कला-परंपरा को देश और विदेश में पहचान दिलाना भी है। इसी सोच के तहत वे अपनी इन अनोखी कलाकृतियों को आमजन के समक्ष प्रदर्शित करना चाहते हैं, ताकि लोग इस सूक्ष्म कला को नजदीक से देख सकें और इसकी बारीकियों को समझ सकें। उन्होंने जानकारी दी कि वे इन कलाकृतियों को उदयपुर के चेतक सर्कल स्थित 134 वर्ष पुराने शेफर्ड मेमोरियल चर्च में क्रिसमस डे के अवसर पर प्रदर्शित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने चर्च प्रशासन से संपर्क किया है और उम्मीद जताई है कि जल्द अनुमति मिलने पर आम लोग इस अद्भुत और दुर्लभ सूक्ष्म कला का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकेंगे।