जानें कौन थी लेफ्टिनेंट कर्नल मलालाई कक्कड़, अफगानिस्तान में महिलाओं की सुरक्षा के लिए पहनी थी वर्दी


अफगानी महिलाओं की दुर्दशा और उन पर लगी बंदिशें किसी से छुपी नहीं हैं। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से तो देश की महिलाओं की स्थिति और खराब होने का दावा किया जा रहा है। कहा जाता है कि तालिबान ने अफगानी महिलाओं के ऊपर कई नियम कायदे लगाए। उन्हें बिना परिवार के पुरुष के घर से बाहर निकलने तक की मनाही हैं। महिलाओं की पढ़ाई पर तरह तरह की बंदिशें हैं लेकिन क्या हमेशा से अफगानी महिलाओं ही यही स्थिति थीं? क्या किसी भी अफगानी महिला ने इन सख्त नियमों से आजादी और अपने देश के नाम को बढ़ाने के लिए कुछ बड़ा नहीं क्या? अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो ये गलत हैं। अफगानी महिलाओं की स्थिति हमेशा से इतनी खराब नहीं थीं। उन्हें पढ़ने, मन मुताबिक कपड़े पहनने और देश की बड़ी संस्था में एक सम्मानित पद पर काम करने की आजादी थी। इस आजादी का भरपूर फायदा उठाया मलालाई कक्कड़ ने। ये नाम भले ही आपने न सुना हो, लेकिन अफगानिस्तान के इतिहास में इस महिला ने अपना नाम अपने काम के बलबूते सुनहरे अक्षरों से लिख दिया है। चलिए जानते हैं कि ये अफगानी दिलेर महिला मलालाई कक्कड़ कौन हैं, इनके नाम क्या उपलब्धि है।
मलालाई कक्कड़ का जन्म
दरअसल, मलालाई कक्कड़ का जन्म 1967 में अफगानिस्तान के कंधार में हुआ था। उनके पिता और भाई पुलिस विभाग में काम करते थे। काकर भी अपने पिता और भाइयों के नक्शेकदम पर चलते हुए अफगान पुलिस बल में शामिल हो गईं। साल 1982 में उन्होने पुलिस बल ज्वाइन किया। हालांकि 1990 में जब तालिबान ने कंधार पर कब्जा किया तो महिलाओं के काम करने पर रोक लगा दी।
अफगानिस्तान की पहली महिला पुलिस अधिकारी
बाद में तालिबान सत्ता से बेदखल हो गया, जिसके तुरंत पर मलालाई कक्कड़ अपनी ड्यूटी पर वापस लौट आयी। जब देश तालिबानियों के आतंक से सहमा हुआ था, खासकर औरतें तो उस दौर में काकर काम पर वापस लौटने वाली देश की पहली महिला पुलिस अधिकारी थीं।
महिलाओं के लिए कक्कड़ ने क्या किया
मलालाई कक्कड़ महिला अपराध पर अधिक फोकस करती थीं। अफगानिस्तान में विद्रोहियों के खिलाफ जंग में इस दिलेर महिला पुलिसकर्मी ने अहम भूमिका निभाती थी। दरअसल, जब सुरक्षाबल और पुलिस अलगाववादियों को पकड़ने के लिए घरों में तलाशी लेते थे तो महिलाओं के कमरों में प्रवेश करने और उनकी तलाशी लेने में काफी समस्या आती थी, क्योंकि इससे अफगान के लोग नाराज हो जाते थे। विद्रोही महिलाओं के कमरों में हथियार छुपा देते थे, या बुर्का पहन कर छिप जाते थे। इस तरह के अभियान में कक्कड़ शामिल होती थीं और महिलाओं की तलाशी लेती थीं।
28 सितंबर 2008 को तालिबान के गनमैन ने कक्कड़ की गोली मारकर हत्या कर दी। दावा किया गया कि मोटरसाइकिल पर सवार दो बंदूकधारियों ने अफगानिस्तान की सबसे हाई-प्रोफाइल महिला पुलिस अधिकारी कक्कड़ के घर के पास ही उन्हें गोली मार दी, जब वह काम पर जाने के लिए घर से निकली थीं। सिर पर गोली लगने से उनकी तुरंत मौत हो गई। उस समय काकर का 18 वर्षीय बेटा उनकी कार चला रहा था, जो गंभीर रूप से घायल हो गया।
मलालाई कक्कड़ के 6 बच्चे थे और जब उनका निधन हुआ तो वह लगभग 40 साल की थीं। कहा जाता हैं कि उस दौर में अफगान पुलिस बल में 80,000 पुलिसकर्मियों में मात्र 700 महिला पुलिस कर्मी थीं।
मलालाई कक्कड़ के नाम ये उपलब्धि
कक्कड़ कंधार पुलिस अकादमी से स्नातक होने वाली पहली महिला थीं। तालिबान के सत्ता से हटने के बाद काम पर लौटने वाली पहली महिला पुलिस अधिकारी बनी। इतना ही नहीं मलालाई कक्कड़ कंधार पुलिस विभाग के साथ एक अन्वेषक या इनवेस्टिगेटर बनने वाली पहली अफगानी महिला भी थीं।
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