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मृत्यु के बाद क्यों करते हैंं श्राद्ध?

सद्गुरु, ईशा फाउंडेशन Updated Tue, 18 Sep 2018 04:03 PM IST
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know the importance of death ritual and the significance of shraddh
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जिज्ञासु: सद्गुरु नमस्कार। मैं बस यह जानना चाहता हूं कि श्राद्ध का क्या महत्व है।
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सद्गुरु: अगर आप शव को दो-तीन दिन से ज्यादा रखें, तो आप देखेंगे कि उसके शरीर के बाल बढ़ने लगते हैं। अगर कोई इंसान शेविंग करता है, तभी आपका ध्यान इस पर जाएगा क्योंकि चेहरे के बालों पर ध्यान ज्यादा जाता है। उसके नाखून भी बढ़ने लगेंगे।

इसकी वजह जीवन की अलग-अलग रूपों में होने वाली अभिव्यक्ति में है। मैं इसे अलग करके समझाता हूं – एक जीवन होता है और एक भौतिक या स्थूल जीवन होता है। भौतिक जीवन खुद को व्यक्त करता है। भौतिक जीवनी ऊर्जा, जिसे आम तौर पर प्राण कहा जाता है, की पांच मूल अभिव्यक्तियां हैं। वैसे तो उसकी दस अभिव्यक्ति हैं लेकिन उससे चीजें और जटिल हो जाएंगी, तो पांच मूल अभिव्यक्ति हैं।
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प्राणों के अलग-अलग प्रकार

इन्हें समान, प्राण, उडान, अपान और व्यान कहा जाता है। जब किसी इंसान को मृत घोषित किया जाता है, तो अगले इक्कीस से चौबीस मिनट में, समान शरीर से बाहर निकलने लगेगा। समान शरीर के तापमान को ठीक रखता है। इसीलिए सबसे पहले शरीर ठंडा होने लगता है। कोई मर गया है या जिंदा है, यह जांचने का पारंपरिक तरीका है कि नाक छूकर देखा जाता है। अगर नाक ठंडी हो गई है, तो इसका मतलब है कि वह इंसान मर चुका है। अड़तालीस से चौंसठ मिनट के बीच प्राण शरीर से निकल जाता है।
 

पैरों के अंगूठों को बांधने से मूलाधार को इस तरह कसा जा सकता है कि उस जीवन द्वारा एक बार फिर शरीर में घुसपैठ न किया जा सके या घुसपैठ करने की कोशिश न की जाए।


उसके बाद छह से बारह घंटे के बीच, उडान निकल जाता है। उडान के शरीर से निकलने तक कुछ तांत्रिक प्रक्रियाओं से शरीर को पुनर्जीवित किया जा सकता है। एक बार उडान के बाहर निकलने के बाद शरीर को फिर से पुनर्जीवित करना असंभव है। अगली चीज होती है अपान जो आठ से अठारह घंटों के भीतर निकलती है। उसके बाद व्यान, जो प्राण की रक्षक प्रवृत्ति है, शरीर से निकलती है। सामान्य मृत्यु की स्थिति में यह ग्यारह से चौदह दिनों के भीतर शरीर से बाहर जा सकती है। सामान्य मृत्यु का मतलब है कि मृत्यु वृद्धावस्था में हुई, जीवन के क्षीण होने से वे शरीर से निकल गए। अगर किसी की मृत्यु दुर्घटना में होती है, या दूसरे शब्दों में जीवन के जीवंत रहने के दौरान ही उसकी मृत्यु हो जाती है और उसका शरीर पूरी तरह नष्ट नहीं होता है, शरीर अब भी बचा रहता है, तो उस जीवन का कंपन अड़तालीस से नब्बे दिनों तक जारी रहता है।

श्राद्ध - मृत व्यक्ति में मधुरता डालने के लिए है

तब तक आप उस जीवन के लिए कुछ चीजें कर सकते हैं। आप उस जीवन के लिए क्या कर सकते हैं? शरीर छूट गया है और चेतन बुद्धि तथा विचारशील मन पीछे छूट गए हैं। एक बार जब विचारशील मन नहीं रह जाता, तो अगर आप उस मन, जिसमें सोचने की क्षमता नहीं है, बुद्धि नहीं है, में सुखदता की एक बूंद डालते हैं तो वह सुखदता कई लाख गुना बढ़ जाएगी। अगर आप अप्रियता की एक बूंद डालते हैं, तो वह अप्रियता लाखों गुना बढ़ जाएगी।

इसे ही नर्क और स्वर्ग के रूप में जाना जाता है।

तो लोग जो करने की कोशिश करते हैं – वह कितनी अच्छी तरह किया जाता है या आज के समय में कितने बेतुके ढंग से किया जाता है, यह एक अलग बात है, मगर अलग-अलग स्तरों पर क्या किया जाना चाहिए, इसके बारे में एक पूरा विज्ञान है।

मृत प्राणी का बचाव

पैरों के अंगूठों को बांधने से मूलाधार को इस तरह कसा जा सकता है कि उस जीवन द्वारा एक बार फिर शरीर में घुसपैठ न किया जा सके या घुसपैठ करने की कोशिश न की जाए। क्योंकि वह जीवन उस शरीर में इस जागरूकता के साथ नहीं रहा है कि ‘यह मैं नहीं हूं’।
 

अगर आप शव को दो-तीन दिन से ज्यादा रखें, तो आप देखेंगे कि उसके शरीर के बाल बढ़ने लगते हैं।


उसने हमेशा यह विश्वास किया है ‘यह मैं हूं’। हालांकि वह बाहर आ गया है, मगर वह शरीर के किसी भी छिद्र के द्वारा उसमें घुसने की कोशिश करता है, खासकर मूलाधार से होकर। मूलाधार में ही जीवन उत्पन्न होता है और जैसे-जैसे शरीर ठंडा होने लगता है, आखिरी वक्त तक जहां गर्माहट बनी रहती है, वह मूलाधार है।

तो जीवन वापस आने की कोशिश करता है। इससे बचने के लिए पहला काम पैरों के अंगूठों को बांधने का किया जाता है ताकि वह कोशिश न हो सके। जीवन के निकलने की यह प्रक्रिया चरणों में होती है। यही वजह है कि पारपंरिक रूप से हमेशा यह कहा गया है कि अगर कोई मर जाता है, तो आधे घंटे के भीतर या ज्यादा से ज्यादा चार घंटों में आपको शरीर को जला देना चाहिए क्योंकि यह प्रक्रिया चलती रहती है। जो जीवन शरीर से निकल गया है, उसे लगता है कि वह अब भी शरीर में वापस जा सकता है।

अगर आप इस नाटक को रोकना चाहते हैं, तो शरीर को जला दीजिए।

एक योगी, दिव्यदर्शी, सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।


 
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