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Radha Ashtami 2025: 31 अगस्त को राधा अष्टमी, जानिए महत्व और श्रीराधा जी की महिमा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Thu, 28 Aug 2025 12:42 PM IST
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सार

Radha Ashtami 2025: श्री राधा का अर्थ है श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण का अर्थ है श्रीराधा। राधाजी भगवान कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए वे सदैव उनके अधीन रहते हैं।

Radha Ashtami Vrat Puja Vidhi 2025 Importance And Significance
Radha Ashtami 2025 - फोटो : freepik
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विस्तार
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Radha Ashtami 2025: भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधा अष्टमी के रूप में मनाई जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की शक्तिस्वरूपा श्री राधारानी का प्राकट्य हुआ था। इस वर्ष राधा अष्टमी का व्रत 31 अगस्त,रविवार  को रखा जाएगा। इस दिन महिलाएं घर की सुख-शांति, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ‘राधा’ नाम का स्मरण करने मात्र से श्रीकृष्ण शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। नारद पुराण के अनुसार राधाष्टमी व्रत करने वाला साधक ब्रजधाम के रहस्यों को जान लेता है और राधा के परिकरों में स्थान पाता है।
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राधा-कृष्ण: आराधक और आराध्य
श्री राधा का अर्थ है श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण का अर्थ है श्रीराधा। राधाजी भगवान कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए वे सदैव उनके अधीन रहते हैं। दोनों मिलकर संसार के रहस्यमय तत्वज्ञान को प्रकट कर भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
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कार्तिक पूर्णिमा के दिन गोलोक में रासमंडल के अवसर पर श्रीकृष्ण ने स्वयं राधाजी का पूजन किया और राधा-कवच को रत्नों की गुटिका में रखकर गले और दाहिनी भुजा पर धारण किया। उन्होंने भक्तिभाव से राधाजी के चरणों से प्राप्त ताम्बूल को भी ग्रहण किया।

राधाजी श्रीकृष्ण की प्रियतमा हैं और उनके वक्षःस्थल में वास करती हैं। वे उनके प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि राधा श्रीकृष्ण की आराधना करती हैं और श्रीकृष्ण राधा की। दोनों ही परस्पर आराध्य और आराधक हैं, अतः दोनों एक-दूसरे के इष्टदेव हैं।

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राधा नाम जप से प्रसन्न होते हैं श्रीकृष्ण
शास्त्रों में यह नियम स्पष्ट किया गया है कि पहले ‘राधा’ नाम का उच्चारण करना चाहिए और उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम का। यदि इस क्रम का उल्लंघन किया जाए तो साधक पाप का भागी बनता है। इसी कारण शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि यदि श्रीराधा की पूजा न हो तो श्रीकृष्ण की पूजा का कोई फल नहीं मिलता। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—“मैं उस भक्त के पीछे-पीछे चलता हूँ, जो ‘राधा’ नाम का स्मरण करता है।” इसी कारण श्रीकृष्ण सदैव राधारानी के अधीन रहते हैं और राधा-कृष्ण का संबंध अभिन्न व अविभाज्य माना जाता है।

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