Cyber Attack: एविएशन इंडस्ट्री पर बढ़े खतरे, लगातार ड्रोन और साइबर हमले बने सिरदर्द
बीते 8 वर्षों में ड्रोन और साइबर हमलों ने वैश्विक एयरपोर्ट सुरक्षा की पोल खोलकर रख दी है। लगातार बढ़ते डिजिटल हमलों से हजारों उड़ानें रद्द हुईं और एविएशन इंडस्ट्री को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा।
विस्तार
दुनिया के बड़े एयरपोर्ट्स पिछले कुछ वर्षों में लगातार ड्रोन घुसपैठ और साइबर हमलों की वजह से प्रभावित हुए हैं। हाल ही में डेनमार्क के कोपेनहेगन एयरपोर्ट पर दो से तीन बड़े ड्रोन देखे गए, जिसके कारण करीब चार घंटे तक उड़ानों पर रोक लगी। इसी दौरान नॉर्वे के ओस्लो एयरपोर्ट को भी बंद करना पड़ा।
ड्रोन और डिजिटल हमले बने सबसे बड़ी चुनौती
एविएशन इंडस्ट्री में यह ट्रेंड नया नहीं है। 2017 से अब तक कई बार ऐसे हमले हुए हैं, जिन्होंने सीधे तौर पर फ्लाइट सेफ्टी सिस्टम को नहीं बल्कि चेक-इन, बोर्डिंग सिस्टम और पावर सप्लाई जैसे अहम हिस्सों को निशाना बनाया। नतीजा यह हुआ कि हजारों यात्रियों को घंटों और कई बार दिनों तक एयरपोर्ट पर इंतजार करना पड़ा।
ऐसे बड़े घटनाक्रम जिन्होंने रोक दीं उड़ानें
2017 (लंदन हीथ्रो-गैटविक) में ब्रिटिश एयरवेज के डाटा सेंटर फेल होने से 75,000 यात्री फंसे, 2018 (लंदन गैटविक) में ड्रोन घुसपैठ से तीन दिन तक ऑपरेशन बंद हुआ जिसके चलते करीब 1,000 उड़ानें रद्द हुईं, जनवरी 2023 (अमेरिका) में FAA सिस्टम फेल होने से 11,000 उड़ानें प्रभावित हुईं, अगस्त 2023 (यूके) में एयर ट्रैफिक सिस्टम की खामी से 1,500 उड़ानें कैंसिल हुईं, जुलाई 2024 में साइबर सिक्योरिटी कंपनी क्राउडस्ट्राइक की गलती से दुनिया भर में 5,000 उड़ानें रुकीं
मार्च 2025 (लंदन हीथ्रो) में पावर स्टेशन में आग लगने से 18 घंटे तक एयरपोर्ट बंद रखा गया जिसकी वजह से 2 लाख से ज्यादा यात्री फंसे। सितंबर 2025 (पोलैंड) में संदिग्ध रूसी ड्रोन घुसपैठ से कई एयरपोर्ट बंद हुए, 20 सितंबर 2025 (यूरोप) में कॉलिंस एयरोस्पेस पर साइबर हमले से लंदन, बर्लिन और ब्रुसेल्स एयरपोर्ट्स प्रभावित हुए, 22 सितंबर 2025 (डेनमार्क-नॉर्वे) में ड्रोन देखे जाने पर चार घंटे तक हवाई क्षेत्र बंद रखे गए।
एयरपोर्ट सुरक्षा पर लगातार उठ रहे सवाल
इन घटनाओं ने साफ कर दिया है कि ड्रोन और साइबर हमले दुनिया की एविएशन इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं। हर बार इन घटनाओं से हजारों यात्रियों की यात्रा प्रभावित होती है और एयरलाइंस को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ता है। अब सवाल यह है कि क्या एयरपोर्ट्स अब भी ऐसे खतरों से निपटने के लिए तैयार हैं या आने वाले समय में यात्रियों को और बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा ?