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AI Subscriptions: करोड़ों भारतीय यूजर्स को मुफ्त सब्सक्रिप्शन क्यों बांट रही एआई कंपनियां? समझिए क्या है वजह
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Sun, 16 Nov 2025 05:23 PM IST
सार
Free AI Subscriptions In India: भारत में चैटजीपीटी, परप्लेक्सिटी और गूगल जेमिनी जैसी एआई कंपनियां करोड़ों भारतीयों को मुफ्त सब्सक्रिप्शन दे रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कंपनियां इतने बड़े पैमाने पर फ्री प्लान क्यों बांट रही हैं? इसके पीछे उनकी क्या रणनीति है? आइए समझते हैं।
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फ्री एआई टूल्स के पीछे क्या है वजह?
- फोटो : AI
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विस्तार
भारत में चैटजीपीटी, परप्लेक्सिटी और गूगल जेमिनी जैसी एआई कंपनियों ने यूजर्स को मुफ्त सब्सक्रिप्शन देने का एलान किया है। एआई कंपनियां मुफ्त सब्सक्रिप्शन देने के लिए टेलीकॉम कंपनियों के साथ साझेदारी कर रही हैं। परप्लेक्सिटी ने एयरटेल उपभोक्ताओं को मुफ्त सब्सक्रिप्शन दे रही है, जबकि गूगल ने जेमिनी के लिए देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो से हाथ मिलाया है। हाल ही में अमेरिकी एआई कंपनी OpenAI का एआई चैटबॉट ChatGPT भारत में गूगल प्लेस्टोर पर सबसे ज्यादा बार डाउनलोड होने वाला एप बन गया था। वहीं, परप्लेक्सिटी और गूगल जेमिनी के भी यूजर्स भारत में करोड़ों में पहुंच चुके हैं।
इन सबके बीच सवाल ये है कि आखिर भारत में एआई कंपनियां मुफ्त में सब्सक्रिप्शन प्लान्स देने के लिए क्यों आगे आ रही हैं, जबकि इन्हीं प्लान्स के लिए यूरोप और अमेरिका में यूजर्स को सैकड़ों डॉलर चुकाने पड़ते हैं? क्या इसके पीछे कंपनियों की व्यापारिक रणनीति ही मुख्य वजह है या फिर इसका कारण कुछ और है? आइए जानने की कोशिश करते हैं।
यूजर डेटा पर है एआई कंपनियों की नजर
भारत में 90 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर हैं और माना जाता है कि यहां दुनिया में सबसे सस्ता डेटा है। देश की ऑनलाइन आबादी ज्यादादातर 24 साल से कम उम्र की है। ये वो पीढ़ी है जो स्मार्टफोन और इंटरनेट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करती है। भारत अपनी बड़ी और विविध आबादी के साथ एआई कंपनियों को एक खुला बाजार देता है। ऐसे में वैश्विक टेक कंपनियां यहां लाखों नए यूजर्स को जोड़ने के मौके को भुनाना चाहती हैं ताकि अपने एआई मॉडल्स को बेहतर बना सकें। जितने ज्यादा भारतीय इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करेंगे, कंपनियों को उतनी जल्दी आंकड़े मिल सकेंगे और एआई मॉडल्स बेहतर तरीके से ट्रेन होंगे।
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इन सबके बीच सवाल ये है कि आखिर भारत में एआई कंपनियां मुफ्त में सब्सक्रिप्शन प्लान्स देने के लिए क्यों आगे आ रही हैं, जबकि इन्हीं प्लान्स के लिए यूरोप और अमेरिका में यूजर्स को सैकड़ों डॉलर चुकाने पड़ते हैं? क्या इसके पीछे कंपनियों की व्यापारिक रणनीति ही मुख्य वजह है या फिर इसका कारण कुछ और है? आइए जानने की कोशिश करते हैं।
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यूजर डेटा पर है एआई कंपनियों की नजर
भारत में 90 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर हैं और माना जाता है कि यहां दुनिया में सबसे सस्ता डेटा है। देश की ऑनलाइन आबादी ज्यादादातर 24 साल से कम उम्र की है। ये वो पीढ़ी है जो स्मार्टफोन और इंटरनेट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करती है। भारत अपनी बड़ी और विविध आबादी के साथ एआई कंपनियों को एक खुला बाजार देता है। ऐसे में वैश्विक टेक कंपनियां यहां लाखों नए यूजर्स को जोड़ने के मौके को भुनाना चाहती हैं ताकि अपने एआई मॉडल्स को बेहतर बना सकें। जितने ज्यादा भारतीय इन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करेंगे, कंपनियों को उतनी जल्दी आंकड़े मिल सकेंगे और एआई मॉडल्स बेहतर तरीके से ट्रेन होंगे।
यूजर डेटा से ट्रेन होते हैं एआई मॉडल्स
- फोटो : अमर उजाला
कंपनियां लगाना चाहती हैं जनरेटिव एआई की लत
टेक एक्पर्ट्स का मानना है कि ऐसे ऑफर को कंपनी की उदारता समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। ये लंबी अवधि के लिए भारत के डिजिटल भविष्य पर उनका सोचा-समझा दांव है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कंपनियों की यह योजनाएं भी हो सकती हैं कि भारतीयों को जेनरेटिव एआई की आदत डाल दी जाए, फिर बाद में इसके लिए भुगतान करने को कहा जाए। कई कंपनियां भारत में अपने बिजनेस को फैलाने के लिए इस मॉडल का इस्तेमाल कर चुकी हैं और सफल भी हुई हैं।
सख्त रेगुलेशन नीति की कमी भी है वजह
भारत का बाजार कंज्यूमर्स के लिहाज से बड़ा तो है ही, साथ ही यह कंपनियों को यूजर डेटा का इस्तेमाल कर विस्तार करने का मौके भी देता है। चीन जैसे बड़े बाजार में यूजर डेटा को लेकर सख्त रेगुलेशन है, जिससे विदेशी कंपनियों की पहुंच सीमित हो जाती है। इसके विपरीत भारत एक खुला और कॉम्पिटिटिव मार्केट देता है। ऐसे में वैश्विक टेक कंपनियां यहां करोड़ों नए यूजर्स को जोड़ने का मौका खोना नहीं चाहतीं। भले ही वर्तमान में कंपनियां एआई टूल्स का मुफ्त सब्सक्रिप्शन दे रही हों, लेकिन ये हमेशा मुफ्त नहीं रहेंगे।
डेटा सुरक्षा को लेकर बढ़ रही है चिंता
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अधिकांश यूजर मुफ्त चीज या सुविधा के बदले हमेशा अपना डेटा देने को तैयार रहते हैं और यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहेगी। एआई कंपनियों के लिए बेशक ये फायदेमंद सौदा है, लेकिन उपभोक्ताओं के नजरिए से देखा जाए तो इसमें डेटा की गोपनीयता को लेकर कई सवाल उठते हैं। कई देशों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जा रहे हैं, लेकिन भारत में एआई कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए अभी तक कोई समर्पित कानून नहीं है। हालांकि, डिजिटल मीडिया और प्राइवेसी को लेकर एक व्यापक डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपी) को लागू कर दिया गया है, जिससे पर्सनल डेटा प्रोटक्शन को मजबूती मिल सकती है।
टेक एक्पर्ट्स का मानना है कि ऐसे ऑफर को कंपनी की उदारता समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। ये लंबी अवधि के लिए भारत के डिजिटल भविष्य पर उनका सोचा-समझा दांव है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कंपनियों की यह योजनाएं भी हो सकती हैं कि भारतीयों को जेनरेटिव एआई की आदत डाल दी जाए, फिर बाद में इसके लिए भुगतान करने को कहा जाए। कई कंपनियां भारत में अपने बिजनेस को फैलाने के लिए इस मॉडल का इस्तेमाल कर चुकी हैं और सफल भी हुई हैं।
सख्त रेगुलेशन नीति की कमी भी है वजह
भारत का बाजार कंज्यूमर्स के लिहाज से बड़ा तो है ही, साथ ही यह कंपनियों को यूजर डेटा का इस्तेमाल कर विस्तार करने का मौके भी देता है। चीन जैसे बड़े बाजार में यूजर डेटा को लेकर सख्त रेगुलेशन है, जिससे विदेशी कंपनियों की पहुंच सीमित हो जाती है। इसके विपरीत भारत एक खुला और कॉम्पिटिटिव मार्केट देता है। ऐसे में वैश्विक टेक कंपनियां यहां करोड़ों नए यूजर्स को जोड़ने का मौका खोना नहीं चाहतीं। भले ही वर्तमान में कंपनियां एआई टूल्स का मुफ्त सब्सक्रिप्शन दे रही हों, लेकिन ये हमेशा मुफ्त नहीं रहेंगे।
डेटा सुरक्षा को लेकर बढ़ रही है चिंता
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अधिकांश यूजर मुफ्त चीज या सुविधा के बदले हमेशा अपना डेटा देने को तैयार रहते हैं और यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहेगी। एआई कंपनियों के लिए बेशक ये फायदेमंद सौदा है, लेकिन उपभोक्ताओं के नजरिए से देखा जाए तो इसमें डेटा की गोपनीयता को लेकर कई सवाल उठते हैं। कई देशों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जा रहे हैं, लेकिन भारत में एआई कंपनियों को रेगुलेट करने के लिए अभी तक कोई समर्पित कानून नहीं है। हालांकि, डिजिटल मीडिया और प्राइवेसी को लेकर एक व्यापक डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (डीपीडीपी) को लागू कर दिया गया है, जिससे पर्सनल डेटा प्रोटक्शन को मजबूती मिल सकती है।