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चीन में फेल हुआ GPS सिस्टम: घंटों तक थमी रही जिंदगी; क्या भारत के पास ऐसी स्थिति के लिए कोई 'प्लान-B' है?
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Thu, 25 Dec 2025 04:06 PM IST
सार
China GPS Failure: चीन के नानजिंग शहर में अचानक 6 घंटे के लिए GPS और BeiDou सिग्नल ठप होने से हड़कंप मच गया। कैब बुकिंग से लेकर फूड डिलीवरी तक सब रुक गया। इस घटना ने भारत के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। जानिए ऐसी स्थिती में क्या हो सकता है 'प्लान-B'?
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जीपीएस
- फोटो : Freepik
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विस्तार
कल्पना कीजिए कि आपको कहीं जाना हो और कैब बुक नहीं हो रही हो। आपको भूख लगी हो लेकिन आप ऑनलाइन फूड ऑर्डर ही न कर पा रहे हों। इतना ही नहीं, न फ्लाइट की टिकट बुक हो रही हो और न ही आप मदद के लिए एंबुलेंस बुला पा रहे हों। ऐसे हालात जैसे कि कोई डिजिटल लॉकडाउन लग गया हो। आज के समय में ऐसी स्थिती के बारे में सोच कर ही डर लगता है। लेकिन कुछ दिनों पहले चीन के पूर्वी हिस्से के बड़े शहर नानजिंग में कुछ ऐसा ही हुआ। करीब 1 करोड़ की आबादी वाले इस क्षेत्र के लोगों पर करीब 6 घंटों तक डिजिटल लॉकडाउन लग गया था।
हुआ ये कि पूरे शहर में सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम (GPS) पूरी तरह ठप हो गया। इससे न केवल आम लोगों को परेशानी में डाल दिया, बल्कि उन सभी सेवाओं की कमर तोड़ दी जो लोकेशन डेटा पर टिकी हैं। बताया गया कि जीपीएस के काम न करने की वजह चीन के नेविगेशन सिस्टम बाएडू (BeiDou) का फेलियर है।
एक झटके में बंद हुई नेविगेशन सेवाएं
इस आउटेज में केवल चीन का नेविगेशन सिस्टम बाएडू ही नहीं, बल्कि अमेरिका का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी GPS भी डाउन था। इससे ये हुआ कि कार नेविगेशन फेल हो गए, एप आधारित कैब सर्विस भी ठप पड़ गईं और फूड डिलीवरी के ऑर्डर अपने आप कैंसिल हो गए। इससे ऑनलाइन बिजनेस चलाने वाली हजारों कंपनियों का कारोबार एक झटके में ठहर सा गया। यहीं नहीं, लोगों को फोन पर उनकी लोकेशन 50 किलोमीटर दूर दिखने लगी। धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा की ये कोई आम समस्या नहीं है।
नेविगेशन सिस्टम पर अटैक का आरोप
शुरुआती जांच में मोबाइल नेटवर्क की किसी भी खराबी को खारिज कर दिया गया। नानजिंग सैटेलाइट एप्लिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन ने बताया कि यह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं थी, बल्कि ग्लोबल सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम यानी GNSS पर जानबूझ कर किया गया हमला था। चीन में BeiDou भी GNSS सिग्नलों की मदद लेती है। एसोसिएशन ने बाएडु और जीपीएस के सिविलियन सैटेलाइट सिग्नल पर बाहरी हस्तक्षेप का आरोप लगाया।
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हुआ ये कि पूरे शहर में सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम (GPS) पूरी तरह ठप हो गया। इससे न केवल आम लोगों को परेशानी में डाल दिया, बल्कि उन सभी सेवाओं की कमर तोड़ दी जो लोकेशन डेटा पर टिकी हैं। बताया गया कि जीपीएस के काम न करने की वजह चीन के नेविगेशन सिस्टम बाएडू (BeiDou) का फेलियर है।
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एक झटके में बंद हुई नेविगेशन सेवाएं
इस आउटेज में केवल चीन का नेविगेशन सिस्टम बाएडू ही नहीं, बल्कि अमेरिका का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी GPS भी डाउन था। इससे ये हुआ कि कार नेविगेशन फेल हो गए, एप आधारित कैब सर्विस भी ठप पड़ गईं और फूड डिलीवरी के ऑर्डर अपने आप कैंसिल हो गए। इससे ऑनलाइन बिजनेस चलाने वाली हजारों कंपनियों का कारोबार एक झटके में ठहर सा गया। यहीं नहीं, लोगों को फोन पर उनकी लोकेशन 50 किलोमीटर दूर दिखने लगी। धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा की ये कोई आम समस्या नहीं है।
नेविगेशन सिस्टम पर अटैक का आरोप
शुरुआती जांच में मोबाइल नेटवर्क की किसी भी खराबी को खारिज कर दिया गया। नानजिंग सैटेलाइट एप्लिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन ने बताया कि यह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं थी, बल्कि ग्लोबल सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम यानी GNSS पर जानबूझ कर किया गया हमला था। चीन में BeiDou भी GNSS सिग्नलों की मदद लेती है। एसोसिएशन ने बाएडु और जीपीएस के सिविलियन सैटेलाइट सिग्नल पर बाहरी हस्तक्षेप का आरोप लगाया।
लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट (सांकेतिक तस्वीर)
- फोटो : AI
हालांकि, चीनी प्रशासन ने यह साफ नहीं किया कि यह हस्तक्षेप किसने और क्यों किया, लेकिन इस बात की ओर इशारा किया कि यह चीन की नेविगेशन सिस्टम को प्रभावित करने की हाई-लेवल प्लानिंग का हिस्सा हो सकता है। एक्सपर्ट्स ने बताया कि इस घटना से चीन की सिविलियन नेविगेशन सर्विस प्रभावित हुई लेकिन मिलिट्री नेविगेशन पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि उसके लिए चीन कई एन्क्रिप्शन और एंटी जैमिंग तकनीक का इस्तेमाल करता है।
भारत के लिए भी खतरे की घंटी
भविष्य में ऐसी घटना भारत के साथ भी हो सकती है। भारत फिलहाल GPS (अमेरिका), GLONASS (रूस), Galileo (यूरोप) और BeiDou (चीन) के साथ-साथ अपने स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NavIC का इस्तेमाल करता है। अगर अचानक नेविगेशन ठप हो जाए, तो हवाई सेवाओं से लेकर शिपिंग, डिलीवरी और इमरजेंसी रिस्पॉन्स तक सब प्रभावित हो सकता है। अगर चीन जैसा सिग्नल जैमिंग भारत के किसी बड़े शहर में होता है, तो हमारी पूरी डिजिटल अर्थव्यवस्था थम सकती है। हाल ही में भारत के कई एयरपोर्ट पर हुई जीपीएस स्पूफिंग के मामलों ने इन खतरों को और भी पुख्ता कर दिया है।
हमारे पास क्या है प्लान-B?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि हमें किसी एक सिस्टम पर निर्भर रहने के बजाय विकल्पों की उपलब्धता पर ध्यान देना होगा। भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम (NavIC) हमारी सीमाओं के 1500 किमी दायरे में सटीक जानकारी देता है। इसका अधिक उपयोग हमें विदेशी सिस्टम पर निर्भरता से बचाएगा। नेविगेशन सिस्टम को साइबर अटैक से सुरक्षित रखने के लिए एन्क्रिप्शन और एंटी-जैमिंग टेक्नोलॉजी को और बेहतर बनाना होगा। इसके अलावा, मोबाइल टावर आधारित पोजिशनिंग सिस्टम बाहरी साइबर अटैक से बेहतर सुरक्षा दे सकते हैं। साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस स्थिती में ऐसे स्मार्टफोन और डिवाइस मददगार साबित हो सकते हैं जो एक साथ कई सैटेलाइट नेटवर्क के सिग्नल पर काम करते हों।
भारत के लिए भी खतरे की घंटी
भविष्य में ऐसी घटना भारत के साथ भी हो सकती है। भारत फिलहाल GPS (अमेरिका), GLONASS (रूस), Galileo (यूरोप) और BeiDou (चीन) के साथ-साथ अपने स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NavIC का इस्तेमाल करता है। अगर अचानक नेविगेशन ठप हो जाए, तो हवाई सेवाओं से लेकर शिपिंग, डिलीवरी और इमरजेंसी रिस्पॉन्स तक सब प्रभावित हो सकता है। अगर चीन जैसा सिग्नल जैमिंग भारत के किसी बड़े शहर में होता है, तो हमारी पूरी डिजिटल अर्थव्यवस्था थम सकती है। हाल ही में भारत के कई एयरपोर्ट पर हुई जीपीएस स्पूफिंग के मामलों ने इन खतरों को और भी पुख्ता कर दिया है।
हमारे पास क्या है प्लान-B?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि हमें किसी एक सिस्टम पर निर्भर रहने के बजाय विकल्पों की उपलब्धता पर ध्यान देना होगा। भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम (NavIC) हमारी सीमाओं के 1500 किमी दायरे में सटीक जानकारी देता है। इसका अधिक उपयोग हमें विदेशी सिस्टम पर निर्भरता से बचाएगा। नेविगेशन सिस्टम को साइबर अटैक से सुरक्षित रखने के लिए एन्क्रिप्शन और एंटी-जैमिंग टेक्नोलॉजी को और बेहतर बनाना होगा। इसके अलावा, मोबाइल टावर आधारित पोजिशनिंग सिस्टम बाहरी साइबर अटैक से बेहतर सुरक्षा दे सकते हैं। साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस स्थिती में ऐसे स्मार्टफोन और डिवाइस मददगार साबित हो सकते हैं जो एक साथ कई सैटेलाइट नेटवर्क के सिग्नल पर काम करते हों।