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Deepfake: आवाज और चेहरे का गलत इस्तेमाल अब अपराध, डेनमार्क सरकार ने डीपफेक के खिलाफ छेड़ी जंग

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नीतीश कुमार Updated Thu, 07 Aug 2025 12:43 PM IST
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सार

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से बने डीपफेक वीडियो, फोटो और ऑडियो अब दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। इसे देखते हुए अब सरकारें इन पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठा रही हैं। जानिए, क्या है डेनमार्क का नया और कड़ा कानून और भारत सहित दुनिया के दूसरे देश इससे कैसे निपट रहे हैं।

Deepfake new law denmark digital identity protection
डीपफेक पर कानून - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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एआई (AI) के बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही डीपफेक से जुड़े खतरे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। अब तक मनोरंजन और मजाक के लिए इस्तेमाल होने वाले डीपफेक अब फेक न्यूज, वित्तीय धोखाधड़ी और साइबर क्राइम का जरिया बन रहे हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए डेनमार्क सरकार एक सख्त कानून लाने की तैयारी में है। यह कानून किसी भी व्यक्ति की डिजिटल पहचान, यानी उसकी शक्ल और आवाज़ को एआई के दुरुपयोग से बचाने पर केंद्रित होगा। अगर यह कानून लागू होता है, तो डेनमार्क यूरोप का ऐसा पहला देश बन जाएगा जो इस तरह की सख्त कानूनी पहल कर रहा है।
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डेनमार्क सरकार ने इस प्रस्तावित कानून को 2025 की शरद ऋतु में संसद में पेश करने की योजना बनाई है। इसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिल रहा है। इस कानून का मकसद सिर्फ फर्जी वीडियो को हटाना नहीं है, बल्कि डीपफेक से होने वाले गंभीर अपराधों, जैसे वित्तीय धोखाधड़ी और नकली खबरों के प्रसार पर लगाम लगाना है।
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डीपफेक से जुड़े गंभीर खतरे
डीपफेक से होने वाले नुकसान के कई चौंकाने वाले उदाहरण सामने आए हैं। हाल ही में यूक्रेन और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों के नकली वीडियो वायरल हुए, जिनसे जनता में काफी भ्रम फैला। इसके अलावा, एक ब्रिटिश इंजीनियरिंग कंपनी 'अरुप' को एक एआई-जेनरेटेड वीडियो कॉल के जरिए 25 मिलियन डॉलर की ठगी का शिकार होना पड़ा। वहीं, फेरारी के सीईओ की नकली आवाज से भी धोखाधड़ी की कोशिश की गई थी।

Resemble.ai की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की दूसरी तिमाही में 487 डीपफेक हमलों का पता चला, जो पिछले साल की तुलना में 300% ज्यादा है। इन हमलों से लगभग 350 मिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है।

दुनिया के अन्य देश क्या कर रहे हैं?
डीपफेक से निपटने के लिए दुनिया के अन्य देश भी कदम उठा रहे हैं। अमेरिका में 'टेक इट डाउन एक्ट' जैसे कानून बनाए गए हैं, जो 48 घंटे के भीतर हानिकारक डीपफेक कंटेंट को हटाना जरूरी बनाते हैं और उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान करते हैं। वहीं, यूरोपीय संघ (EU) ने 'डिजिटल सर्विस एक्ट (DSA)' लागू किया है, जो ऑनलाइन गलत सूचनाओं को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाता है। ब्रिटेन ने भी 2025 में 'ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट' को अपनाया है।

डेनमार्क का प्रस्तावित कानून कलाकारों की डिजिटल पहचान को 50 साल बाद तक सुरक्षा देगा, यानी अगर किसी की छवि या आवाज का गलत इस्तेमाल होता है, तो वह न सिर्फ़ उस सामग्री को हटवा सकेगा, बल्कि मुआवजे की मांग भी कर सकेगा। इसके अलावा, मेटा (Meta) और एक्स (X) जैसी सोशल मीडिया कंपनियों पर भी इस कानून का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है, जिससे डीपफेक पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
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