गूगल को क्यों चाहिए आपके मेडिकल रिकॉर्ड?

गेम्स की दुनिया से निकलकर गूगल डीपमाइंड कंपनी अब ज्यादा गंभीर मसले जैसे स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करेगी।

इस प्रोजेक्ट के तहत लंदन के मूरफील्ड्स नेत्र अस्पताल से साझेदारी की गई है। जिसके तहत गूगल 10 लाख आंखों को स्कैन कर अपने सिस्टम को संभावित आंखों की दिक्कतों के बारे में अभ्यास कराएगा।
साथ ही गूगल एक ऐसा ऐप बनाएगा जो डॉक्टरों को गुर्दे की बीमारियों की जानकारी देने में मदद करेगा।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में गूगल के इस पहल की कुछ लोगों ने सराहना की है, ख़ासतौर पर डॉक्टरों ने।
लेकिन कुछ प्राइवेसी ग्रुप और कुछ मरीज़ इससे खुश नहीं हैं। वो हैरान और चिंतित हैं कि उनका डाटा, गूगल के एआई I डिवीज़न से साझा किया जाएगा।
गूगल क्या चाहता है और क्या हमें चिंतित होना चाहिए?

मई में पता चला कि गूगल डीपमाइंड कंपनी को तीन अलग अस्पतालों से 10 लाख़ से ज्यादा मरीज़ों के हेल्थकेयर डाटा को खंगालने की इजाज़त मिली है। लंदन का रॉयल फ्री ट्रस्ट इन अस्पतालों को चलाता है। इन हेल्थेकयर डाटा के आधार पर एक ऐप तैयार किया जाएगा जिसका नाम 'स्ट्रीम्स' होगा।
ये डॉक्टरों को समय रहते सूचित करेगा अगर किसी भी मरीज़ को गंभीर गुर्दे की बीमारी होने की संभावना होगी।
इस डील की घोषणा फरवरी में ही कर दी गई थी, लेकिन उस वक्त इस ख़बर को मीडिया ने तूल नहीं दिया था।
सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर क्यों इतने सारे डाटा साझा किए जा रहे थे। ख़ासकर तब जब बहुत ही कम लोगों को इस ऐप से लाभ होने वाला था।
डीपमाइंड के सह-संस्थापक मुस्तफ़ा सुलेमान समझते हैं कि एआईI अभी सीधे मरीज़ों की देखभाल से जुड़ा नहीं है। मुस्तफ़ा सुलेमान के मुताबिक अस्पताल खुद डीपमाइंड कंपनी के पास मदद के लिए आए थे।
वो कहते हैं, "गुर्दे के डॉक्टर क्रिश लैंड फर्म के पास आए थे ये जानने के लिए कि सहयोग संभव है कि नहीं।"
तो क्या गूगल के साथ ये डील अजीब है?

इस संस्था ने पहले से ही इस प्रकार के 1500 विभिन्न सौदे किए हुए हैं। एनएचएस का दावा है कि ये व्यवहारिक तौर पर संभव नहीं कि हर बार हर एक मरीज़ से उनकी सहमति ली जाए।
मूरफील्ड्स से समझौते के बाद नियम बने कि नैतिक तौर पर सहमति मिले योजनाओं के लिए डाटा शेयर किए जा सकते हैं।
मरीज़, डाटा शेयरिंग सिस्टम से बाहर निकलने के लिए एनएचएस ट्रस्ट के डाटा प्रोटेक्शन अधिकारी को मेल से इसकी सूचना दे सकते हैं।
बीबीसी को मिली जानकारियों से ये समझा जा सकता है कि अब तक 148 लोग अपनी सहमति वापिस ले चुके हैं। लेकिन अभी भी मरीज़ों का एक बड़ा समूह इसके साथ है।
सुलेमान ने ज़ोर देकर कहा कि कोई भी डाटा, गूगल के किसी दूसरे कंपनी से साझा नहीं किया जाएगा।
क्या गूगल सही है?

इस नए प्रोजेक्ट को कुछ नक़ारात्मक हेडलाइन्स भी मीडिया से मिले हैं। लेकिन कंपनी पत्रकारों को समझाने में लगी है कि प्रोजेक्ट का उद्देश्य ज़िन्दगियों को बचाना है।
डीपमाइंड एक पैनल बनाने की प्रक्रिया में है जिसमें नौ तक़नीक़ी और क्लिनिकल एक्सपर्ट होंगे जो फर्म के कामों की समीक्षा और टीम के सदस्यों का इंटरव्यू करेंगे।
पहली बैठक 25 सितंबर को होगी। योजना है कि हर साल ऐसी चार बैठकें कराई जाएं।
गूगल कैसे स्वास्थ्य सेवा से पैसे कमाएगा?

गूगल ने लोगों के फायदे के लिए कई प्रोजेक्ट किए हैं लेकिन उसे पैसे भी कमाने हैं और हेल्थकेयर कोई अलग नहीं है।
सुलेमान के मुताबिक, "फिलहाल हम टूल और सिस्टम बना रहे हैं जो हमारे लिए उपयोगी होगा। एक बार यूज़र्स इसमें शामिल हो जाएं तो हम सोचेंगे की कैसे इससे पैसे कमाए जाएं।"
फर्म के पास ऐसे कुछ विचार हैं जिससे एनएचएस(राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा) और तीसरी पार्टियों के बीच व्यवसायिक रिश्ता बन सकता है।