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काम की बात: AI चैटटूल की ट्रेनिंग कैसे होती है, क्यों इंसानों की तरह करने लगते हैं बातें, विस्तार से जानें

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: प्रदीप पाण्डेय Updated Fri, 21 Mar 2025 11:52 AM IST
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सार

How AI Tool Works: इन मॉडलों को लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) कहा जाता है, जो भारी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर इंसानों की तरह टेक्स्ट पैदा करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये AI चैट टूल्स इतने स्मार्ट कैसे बनते हैं?

How is AI chat tool Like grok chatgpt or gemini trained it talks like humans know in detail
How AI Chat Tool Works - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने पिछले कुछ वर्षों में तकनीकी दुनिया में क्रांति ला दी है। चैट टूल्स जैसे ओपनएआई चैटजीपीटी, एक्सएआई ग्रोक और गूगल जेमिनी आजकल लोगों के बीच लोकप्रिय हो गए हैं। ये टूल्स न केवल सवालों के जवाब देते हैं, बल्कि मानव जैसी बात करने की क्षमता भी रखते हैं। इन मॉडलों को लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) कहा जाता है, जो भारी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर इंसानों की तरह टेक्स्ट पैदा करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये AI चैट टूल्स इतने स्मार्ट कैसे बनते हैं? इनकी ट्रेनिंग कैसे होती है और इसके लिए डेटा कहां से आता है? इस लेख में हम इस प्रक्रिया को सरल भाषा में समझेंगे।

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AI चैट टूल्स की ट्रेनिंग प्रक्रिया

AI चैट टूल्स को ट्रेन करने के लिए मशीन लर्निंग की एक खास स्टेप का उपयोग किया जाता है, जिसे नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) कहते हैं। यह प्रक्रिया कई चरणों में होती है। आइए जानते हैं इनके बारे में...

  • डेटा संग्रहण- किसी भी AI मॉडल को सिखाने के लिए सबसे पहले बड़ी मात्रा में डेटा की जरूरत होती है। यह डेटा टेक्स्ट के रूप में होता है, जिसमें किताबें, लेख, वेबसाइट्स, सोशल मीडिया पोस्ट्स, और बातचीत के रिकॉर्ड शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, चैटजीपीटी जैसे मॉडल को इंटरनेट से लिए गए अरबों शब्दों के डेटा पर प्रशिक्षित किया गया है। ग्रोक जैसे टूल्स भी इसी तरह के व्यापक डेटा स्रोतों का उपयोग करते हैं ताकि वे विभिन्न विषयों पर जानकारी दे सकें।
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  • प्री-प्रोसेसिंग- कच्चे यानी रॉ डेटा को सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे साफ करना पड़ता है यानी छंटाई करनी होती है, जैसे व्याकरण की गलतियों को ठीक करना, अनावश्यक जानकारी को हटाना और डेटा को एक समान प्रारूप में लाना। इस चरण में डेटा को टोकनाइज भी किया जाता है, यानी शब्दों या वाक्यों को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ा जाता है ताकि मशीन इसे समझ सके।

  • मॉडल का प्रशिक्षण- इसके बाद एक न्यूरल नेटवर्क, जैसे ट्रांसफॉर्मर मॉडल का उपयोग करके AI को प्रशिक्षित किया जाता है। यह मॉडल डेटा से पैटर्न सीखता है, जैसे लोग कैसे बात करते हैं, शब्दों का क्रम क्या होता है और संदर्भ के आधार पर जवाब कैसे बदलते हैं। यह प्रक्रिया बहुत अधिक कम्प्यूटेशनल पावर मांगती है और कई बार हफ्तों या महीनों तक चल सकती है।

  • फाइन-ट्यूनिंग- प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद मॉडल को विशिष्ट कार्यों के लिए फाइन-ट्यून किया जाता है। इस चरण में मानव फीडबैक भी शामिल हो सकता है, जहां लोग मॉडल के जवाबों को रेट करते हैं या सुधारते हैं। इसमें इंसानों द्वारा चुने गए डेटा  का उपयोग किया जाता है। मॉडल को अलग-अलग भाषाओं, विषयों और यूज-केस के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। फाइन ट्यूनिंग के तहत ग्रोथ मोडरेशन की प्रक्रिया होती है जिसमें AI को गलत, हानिकारक या पक्षपाती जवाब देने से रोकने के लिए अतिरिक्त ट्रेनिंग दी जाती है।

  • लगातार अपडेट- सभी एआई मॉडल को लगातार अपडेट किया जाता है ताकि वे नवीनतम डेटा और रुझानों के साथ तालमेल बनाए रखें। यह उन्हें पुराने मॉडल्स से अलग बनाता है जिनका ज्ञान एक निश्चित समय सीमा तक सीमित होता है।

ट्रेनिंग के लिए डेटा कहां से आता है?

  • इंटरनेट: वेबसाइट्स, ब्लॉग्स, ऑनलाइन किताबें, और फोरम्स डेटा का सबसे बड़ा स्रोत हैं। उदाहरण के लिए, विकिपीडिया जैसे प्लेटफॉर्म से लेकर समाचार साइट्स तक सब कुछ शामिल हो सकता है।
  • पब्लिक डोमेन सामग्री: कॉपीराइट-मुक्त किताबें, सरकारी दस्तावेज, और ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी उपयोग किए जाते हैं।
  • यूजर्स कंटेंट: सोशल मीडिया पोस्ट्स, कमेंट्स और चैट लॉग्स भी डेटा का हिस्सा बन सकते हैं, बशर्ते गोपनीयता नियमों का पालन हो।
  • कृत्रिम डेटा: कुछ मामलों में, डेटा की कमी को पूरा करने के लिए AI खुद डेटा उत्पन्न करता है, जिसे फिर प्रशिक्षण में इस्तेमाल किया जाता है।
  • लाइसेंस्ड डेटा: कुछ कंपनियां प्रकाशकों या डेटा प्रदाताओं से विशेष डेटासेट खरीदती हैं।
हालांकि डेटा संग्रहण में गोपनीयता और नैतिकता के सवाल भी उठते हैं। कई बार व्यक्तिगत जानकारी अनजाने में डेटा में शामिल हो सकती है, जिसके लिए कंपनियां डेटा को गुमनाम करने की कोशिश करती हैं।

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